ट्रांसमिशन का काम निगम का या बोर्ड का!

By: Mar 4th, 2019 12:01 am

फिर बाहर आया बिजली एक्ट-2003 का जिन्न, 66 केवी सब-स्टेशन के मुद्दे पर समझौते में मतभेद

शिमला – बिजली बोर्ड से 66 केवी व इससे अधिक क्षमता के ट्रांसमिशन सब-स्टेशनों को ट्रांसमिशन कारपोरेशन को दिए जाने का मुद्दा एक दफा फिर से गहरा गया है। बाकायदा इसको लेकर एक पत्र भी जारी कर दिया गया है। सरकार का मत है कि जब ट्रांसमिशन का पूरा काम अलग निगम को सौंपा गया है, तो यह काम बिजली बोर्ड क्यों करे, मगर बिजली बोर्ड के कर्मचारी इसके हक में नहीं हैं, क्योंकि उनके साथ पहले ही समझौता हो चुका है। बोर्ड के विघटन के समय हुए समझौते को अब सरकार मानने को तैयार नहीं है। अतिरिक्त मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्रीकांत बाल्दी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी में बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक जेपी काल्टा, ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन के एमडी, राज्य बिजली बोर्ड के निदेशक तकनीकी को सदस्य बनाया गया है, जबकि विशेष सचिव ऊर्जा कमेटी के सदस्य सचिव होंगे। कमेटी को 15 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। राज्य सरकार का तर्क है कि विद्युत एक्ट-2003 की शर्तों को पूरी तरह से लागू करने के लिए यह प्रक्रिया शुरू की जा रही है। इस पर कर्मचारी यूनियन ने तर्क दिया है कि 66 केवी के सब-स्टेशन ट्रांसमिशन कारपोरेशन को सौंपने से सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। कारपोरेशन बिलिंग चार्जेज लेगा। 1300 से 1400 करोड़ का यह ढांचा है। यदि इसे कारपोरेशन को सौंप दिया जाता है तो यह 25 हजार पेंशनरों की पेंशन को भी प्रभावित कर सकता है। यूनियन ने तर्क दिया है कि इससे बोर्ड और कारपोरेशन के बीच तालमेल की भी कमी होगी।

एक्ट में तीन हिस्सों में बांटा गया था बिजली बोर्ड

बिजली एक्ट-2003 की शर्तें लागू होने के बाद बोर्ड को तीन हिस्सों में तो बांटा गया था। इसमें बिजली बोर्ड, पॉवर कारपोरेशन और ट्रांसमिशन कारपोरेशन का गठन किया गया था। इसी के अनुरूप बोर्ड और कारपोरेशन के बीच काम का विभाजन किया गया था। बावजूद इसके कुछ काम ऐसे हैं, जो बिजली बोर्ड भी कर रहा है और कारपोरेशन भी। वहीं एक्ट की कुछ शर्तें अभी तक लागू नहीं हुई हैं। विद्युत मंत्रालय राज्य सरकार पर इसको लेकर लगातार दबाव बना रहा है। इसके चलते प्रदेश सरकार भी इसकी सभी शर्तों को लागू करने की पूरी तैयारी कर चुकी है। केंद्र ने राज्यों को आर्थिक मदद देने के लिए इस एक्ट को लाया था।

फैसले के विरोध में उतरी कर्मचारी यूनियन

राज्य बिजली बोर्ड कर्मचारी यूनियन के महासचिव हीरालाल वर्मा ने कहा कि सरकार में कार्यरत अफसरशाही ने बिजली बोर्ड को एक प्रयोगशाला बना दिया है। पहले भर्ती के लिए कुछ पदों पर जूनियर शब्द लगाकर विभिन्न पदों में विसंगतियां खड़ी कर दीं, उसके बाद बोर्ड में 48 श्रेणियों के वेतनमानों को कम कर दिया गया। उत्तराखंड की तर्ज पर बोर्ड कर्मचारियों की संख्या को 8500 तक नीचे लाने की मुहिम चला रहा है। अब एक नई साजिश के तहत बिजली कर्मचारियों के विरोध के बावजूद 66 केवी से ऊपर के विद्युत उपकेंद्र को ट्रांसमिशन कारपोरेशन को दिया जा रहा है। इस मसले को लेकर छह मार्च को यूनियन की बैठक बुलाई गई है।


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