ताड़केश्वर महादेव मंदिर

By: Mar 30th, 2019 12:07 am

उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बेहद ही खूबसूरत जगह पर मौजूद है और वह है ताड़केश्वर महादेव का मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं…

देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं। उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बेहद ही खूबसूरत जगह पर मौजूद है और वह है ताड़केश्वर महादेव मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी आते हैं। इस मंदिर के पीछे एक बेहद रोचक कहानी छिपी है। आइए जानते हैं इसके विषय में। ताड़केश्वर महादेव मंदिर बलूत और देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है, जो देखने में बहुत अच्छा लगता है। साथ ही यहां कई पानी के छोटे- छोटे झरने भी बहते हैं। यह मंदिर सिद्ध पीठों में से एक है। सालभर इस मंदिर में केवल चार बार पूजा होती है। मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों को लाना वर्जित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा। ताड़कासुर का अंत केवल भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र कार्तिकेय कर सकते थे। भगवान शिव के आदेश से कार्तिकेय ताड़कासुर का वध करने के लिए पहुंच जाते हैं। अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मानता है। भोलेनाथ असुर ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलियुग में इसी स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी। इसीलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलनाथ ताड़केश्वर कहलाते हैं। ताड़कासुर के वध के कारण भगवान शिव ने यहां विश्राम किया था। विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव को छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुई। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित 7 देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।


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