पुजारी ने कुल्हाड़ी से पेट पर किया वार
मंडी –कुल्हाड़ी से पेट पर वार हो और वार सहने वाले का कुछ न बिगडे़, यह सुनने में तो अजीब लगता है, लेकिन ऐसा ही नजारा मंडी में अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के दौरान दैविक देव खेल के दौरान देखने को मिला। आजादी के बाद पहली बार सदियों पुरानी परपंरा के तहत मंडी में देव खेल का आयोजन हुआ, जिसमें चौहारघाटी के देवताओं के गूर देव ध्वनियों पर देव खेल में डूबे हुए व झूमते नजर आए, जिसके हजारों लोग गवाह बने। देव खेल की सदियों पुरानी परंपरा इस बार के अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में देखने को मिली। प्रशासन और देव समाज के प्रयासों से सेरी मंच पर देव खेल का आयोजन हो सका। प्रदेश की प्राचीन देव संस्कृति का अपना एक समृद्ध इतिहास है। इसी देव संस्कृति का एक अहम हिस्सा है देव खेल। इसका अधिक प्रचलन मंडी की चौहारघाटी में है। यहां देव हुरंग नारायण को आराध्य देव माना जाता है और यह देव खेल इनके आह्वान पर ही होती है। 400 वर्षों से मनाए जा रहे शिवरात्रि महोत्सव में कई दशक पहले देव खेल का आयोजन होता था, लेकिन जब राजाओं के राज समाप्त हुए और बागडोर प्रशासन के हाथों में आई तो देव खेल की परंपरा भी बंद हो गई, लेकिन इस बार प्रशासन और देव समाज ने मिलकर इस परंपरा को फिर से शुरू करवाया। रविवार को शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच पर इस देव खेल का आयोजन किया गया, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ सेरी मंच पर पहुंची। देव खेल में देव हुरंग नारायण के मुख्य पुजारी ने विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद देवता की शक्तियों का आह्वान किया। देव खेल के दौरान देव हुरंग नारायण के पुजारी रामलाल ने इस परंपरा का निर्वहन किया। राम लाल ने पहले देवता की विधिवत पूजा की और उसके बाद दैवीय शक्तियों का धूप जलाकर आह्वान किया। इस दौरान रामलाल ने अपने हाथ में छोटी कुल्हाड़ी भी पकड़ी और अपने शरीर पर उससे वार भी किए लेकिन रामलाल को कोई चोट नहीं आई। रामलाल ने बताया कि जब यह सारी प्रक्रिया होती है तो उसे कुछ भी याद नहीं रहता। यह सब देवता के आदेश और आशीर्वाद से ही संभव होता है। वहीं बाकी पुजारी अपनी जटाओं से अपने मंुह को ढंकते हुए दिखाई दिए। बताया गया कि देव खेल के दौरान किसी भी पुजारी को बात करने की अनुमति नहीं होती, इसलिए सभी अपना मुंह बंद रखते हैं। इस परंपरा को देखने के लिए लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचे। यह पहला मौका था जब लोगों को इस प्राचीन संस्कृति को अपनी आंखों से देखने का अवसर मिला।
पड्डल मैदान में उमड़ा जनसैलाब
मेले के छठे दिन रविवार को अवकाश के चलते हजारों लोगों ने सपरिवार देवताओं के दर्शन किए। यहां तीन कतारों में देवता सुबह से ही बैठे हुए थे और लोगों ने आकर धूपबत्ती कर पूजा की और आशीर्वाद मांगा। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी आसानी से दर्शन कर पाए। मेले में भी काफी भीड़ खरीददारी व मनोरंजन के लिए उमड़ी रही। देवलु नाटी का फाइनल भी मुख्य आकर्षण रहा।
देव खेल से इलाके को सुरक्षा कवच
गूर रामलाल ने कहा कि देव खेल से जहां इलाके को सुरक्षा कवच मिलता है वहीं मौके पर मौजूद लोग यदि कोई मन्नत मांगते हैं तो उसकी पूर्ति भी होती है। देव खेल में हालांकि अन्य देवी-देवताओं के पुजारी भी शामिल हुए, लेकिन सिर्फ देव हुरंग नारायण के पुजारी ने ही इस परंपरा का निर्वहन किया।
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