प्लास्टिक की कैद से छूटेंगे दूध-ब्रेड-चिप्स

By: Mar 24th, 2019 12:08 am

पालमपुर में आईएचबीटी के वैज्ञानिकों ने खोजा खास तरह का बैक्टीरिया

हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बैक्टीरिया की पहचान की है जो प्राकृतिक बायो डी-ग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है तथा एक माह की अवधि में स्वतः ही नष्ट हो जाता है। प्रयोगशाला में इस दिशा में किए गए प्रयोग सफल रहे हैं। उम्मीद है कि भविष्य में हमें यह पूरी तरह से प्लास्टिक से छुटकारा दिला देगा

अकसर हमें दूध-ब्रेड और चिप्स जैसी खाने की चीजें प्लास्टिक में पैक होने से खूब अखरती हैं। प्लास्टिक या पोलिथीन से कई तरह की बीमारियां लगने का खतरा रहता है। प्लास्टिक आज के दौर में हमारी सेहत और पर्यावरण के लिए खतरा बन चुका है। इसी खतरे के खिलाफ बड़ी कामयाबी हासिल की है आईएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिकों ने। हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बैक्टीरिया की पहचान की है जो प्राकृतिक बायो डी-ग्रेडेबल प्लास्टिक बनाता है तथा एक माह की अवधि में स्वतः नष्ट हो जाता है। प्रयोगशाला में इस दिशा में किए गए प्रयोग सफल रहे हैं। उम्मीद है कि भविष्य में हमें यह पूरी तरह से प्लास्टिक से छुटकारा दिला देगा। बताते हैं कि संस्थान ने अब व्यावसायिक स्तर पर इसके उत्पादन के प्रयास आरंभ किए गए हैं। वैज्ञानिकों ने हिमालय में 3 हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर इस बैक्टीरिया को खोजा है। इस बैक्टीरिया की विशेषता यह है कि यह अपने आप में से ही प्लास्टिक बनाता है तथा एक माह के  पश्चात यह प्लास्टिक स्वतः समाप्त भी हो जाता है। यह माइक्रोब अपने शरीर के अंदर से 70 प्रतिशत से बायो प्लास्टिक बनाता है। जैसे ही यह प्राकृतिक बायो डी-ग्रेडेबल प्लास्टिक गंदे पानी आदि के संपर्क में आता है तो यह नष्ट हो जाता है। आईएचबीटी के निदेशक डा. संजय कुमार ने कहा कि यह बैक्टीरिया एक विशेष प्रकार का डाई भी तैयार करता है। नीले रंग का यह डाई कैंसर के उपचार में उपयोग में लाया जाता है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इसका उपयोग दूध की थैलियों, ब्रैड के कवर, पोलिथीन बैग, चिप्स के पैकेट आदि में किया जा सकता है।    -जयदीप रिहान, पालमपुर

साल में 10 टन शहद बेचते हैं दौलतराम्र

बंगाणा के होनहार ने मधुमक्खी पालन से लिखी कामयाबी की तस्वीर

ऊना जिला के बंगाणा उपमंडल में जसाणा गांव निवासी दौलतराम ने मधुमक्खी पालन से कामयाबी की इबारत लिख दी है। वह साल में करीब दस टन शहद बेचकर लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं तथा युवाओं को लिए प्रेरणास्रोत भी बन गए हैं। वह पिछले 22 वर्षों से इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। उन्होंने वर्ष 1997 में मौन के दो डिब्बों से यह कारोबार शुरू किया था। कड़ी मेहनत के दम पर वह आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। आज उनके पास मौन पालन के साढे़ तीन सौ डिब्बे हैं। इन मधुमक्खियों को ऐसे स्थानों पर ले जाया जाता है, जहां पर फूल होते हैं। इन्हीं के चलते अग्रणी ग्रामीण मधुमक्खियों को मौसम के अनुसार हिमाचल, हरियाणा व राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर ले जाते हैं। सालभर में करीब दस टन शहद पैदावार होती है। इस शहद को अग्रणी ग्रामीण प्रोसैसिंग प्लांट में भेजते हैं। जिससे ग्रामीण की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। उद्यान विभाग ने भी दौलतराम की पीठ थपथपाई है। जिसके चलते अब ग्रामीण ने विभाग से मौन पालन के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए डिब्बों की मांग की है। जिसके चलते अब उद्यान विभाग दौलतराम को 50 मौन पालन के डिब्बे 80 फीसदी अनुदान पर उपलब्ध करवा रहा है।

– एमके जसवाल- ऊना

गांव की कुश्ती

कभी न हारने वाले जस्सा पट्टी का सबको इंतजार

हिमाचल में दंगल का सीजन जोरों पर है। बिलासपुर नलवाड़ी, गंगथ, चैहड़, सल्याणा जैसे बड़े दंगल हो रहे हैं। ऐसे में देश-विदेश के पहलवान कुश्ती में दम दिखाने आ रहे हैं, लेकिन प्रदेश के कुश्ती प्रेमियों को इंतजार है पारंपरिक कुश्ती के सबसे बड़े दंगल सम्राट जस्सा पट्टी का। तरणतराण (पंजाब) के रहने वाले जसकंवर सिंह उर्फ जस्सा पारंपरिक कुश्ती में देश-विदेश में लोकप्रिय हैं। जस्सा उस समय सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने तुर्की में हो रही वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में पटका उतारने की शर्त को नहीं माना और स्पर्धा को छोड़ दिया। अब तक एक भी मुकाबला नहीं हारने वाले जस्सा एक दो बार हिमाचल आ चुके हैं। वह कहते हैं कि जितना प्यार हिमाचल में मिलता है,उतना कहीं भी नहीं। फिलहाल उम्मीद है कि जस्सा जल्द हिमाचली दंगलों में नजर आएंगे।

-पूजा चोपड़ा

बागबानों को सलाह

अगले पांच दिनों में मौसम शुष्क रहने की संभावना है। दिन व रात के तापमान में 1 से 2 डिग्री सैलसिय की बढ़ोतरी होने की संभावना  है। किसान भाई फ्रासबीन की बौनी किस्मोंः वीएल-1, पूसा पार्वती व कंटेंडर इत्यादि की 45×15 सैंमी. की दूरी पर बुआई  करें। खीरे, करेले और कद्दू की बीजाई भी पूरी करें।

बागबानी संबंधित कार्यः सेब में संजोस स्केल तथा माईट की रोकथाम के लिए हिंदुस्तान पैटरोलियम तेल 4 लीटर/200 लीटर पानी का छिड़काव करें। स्टांबेरी में फलों को जमीन पर न लगने दें तथा बैविस्टीन 100 ग्राम/200 लीटर पानी या कैप्टान 600 ग्राम/200 लीटर पानी का छिड़काव करें।

माटी के लाल

जीरो बजट की खेती से किया कमाल

शिव शशि कंवर फोन नं.: 98167-24759

सैंसोवाल के शिव शशि कंवर 8 साल से कर रहे आर्गेनिक खेती के प्रयोग।

आर्गेनिक और जीरो बजट खेती जैसे शब्द कहना जहां जितना आसान हैं, उसे कर दिखाना उतना ही कठिन है, लेकिन यह हिमाचल किसान का जज्बा ही है, जो अपने रिस्क पर ऐसी खेती कर लाखों लोगों को प्रेरित भी कर रहा है। शिव शशि कंवर  पिछले 8 साल से गाय के गोबर, गोमूत्र से वह गेहूं, माल्टा, आंवला, मक्की और लहूसुन उगा रहे हैं। शुरुआत में उन्हें कुछ कठिनाई आईं, लेकिन बाद में सब ठीक हो गया। उन्होंने गेहूं के  खेतों में कोई भी रासायनिक खाद का छिड़काव नहीं किया। इस अग्रणी किसान खुद ही जीवामृत तैयार किया है। इसमें गाय का गोबर ,गाय मूत्र  और बेसन , गुड और जैविक मिट्टी का मिश्रण डाला गया है । अग्रणी  किसान  जैविक खेती को लेकर  कुरुक्षेत्र  व  हरिद्वार का भ्रमण कर जीरो बजट खेती की तकनीक सीख चुके है।

टिप्स: आज के बेरोजगार युवाओं को मेरी यही सलाह है कि वह खेती की ओर बढ़ें यही हमें सोना देगी, और एक स्वस्थ जीवन भी।

– मुकेश जसवाल, ऊना

4 किलो की मूली, ढाई की गोभी

सोहन सिंह फोन नं.: 98160-77514

सरकाघाट की ग्राम पंचायत चौरी के गांव गम्धौल के सोहन सिंह में हाल ही मे 4 किलो मूली व अढ़ाई किलो गोभी का फूल उगाया है। यही नहीं बड़ी इलायची की भी बड़ी खेप तैयार की है। 800 ग्राम प्याज अपने खेतों मे उगाकर मिसाल पेश की थी। सोहन लाल सभी खर्चे निकाल कर करीब 35  से 40 हजार रुपए कमा लेते हैं। सोहन सिंह का कहना है कि खेतीबाड़ी करने से हर व्यक्ति बड़ी आसानी से परिवार का पालन-पोषण कर सकता है और इसमें सरकार भी किसानों प्रोत्साहित करती है।

टिप्स: सोहन सिंह का कहना है कि आज के युवा कृषि में काम नहीं करना चाहते, अगर करें तो इसमें काफी स्कोप हैं।

      -पवन प्रेमी, सरकाघाट

रतन चंद के पास पांच क्विंटल चीकू

रतन चंद फोन नं.:98162-25050

जिला ऊना के तहत झंभर गांव के बागबान रतन चंद ने अपेक्षा से अधिक ऊंचा चीकू का पेड़ उगाकर नई मिसाल कायम की है। गौर रहे कि ऊना का मौसम चीकू के लिए बेहतर नहीं माना जाता है, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है। उनके चीकू में  हर साल करीब पांच किवंटल चीकू होते हैं। हालांकि इस बागबान को उद्यान विभाग की ओर से भी कोई मदद नहीं मिली है, फिर भी उन्होंने शानदार कार्य कर किसानों के लिए मिसाल कायम की है। विभाग की मानें तो यदि यह बागबान व्यवसायिक तौर पर पैदावार करता है तो उसकी मदद की जाएगी।  इस बारे में उद्यान विभाग उप निदेशक केके भारद्वाज ने कहा कि इस बागबान की मदद की जाएगी। वहीं, अन्य बागबान को भी इस ओर प्रेरित किया जाएगा।

टिप्स : रतन चंद का कहना है कि युवाओं को  एक बार कृषि की तरफ जाने की जरूरत है फिर तो यह सोना उगलेगी। आय का सबसे अच्छा साधन है कृषि।

अनिल पटियाल, ऊना

कोई कहे चोरा कोई कहे चोरू

स्थानीय औषधीय जड़ी-बूटियों व उनके उत्पादों का अपनी विशेष क्षमता, दुष्प्रभाव रहित गुणों व सकारात्मक विश्वास को साथ-साथ देशी पारंपारिक ज्ञान का महत्त्व लगातार बढ़ रहा है। हमारे देश का हिमालयी भू-भाग अपनी जैव-विविधता की विशेषता के लिए जाना जाता है। आओ इनमें से ऐसे ही एक औषधीय पौधे के बारे में जान लेते हैं। जिसे हम चोरक, चोरा, चोरू, स्मूथ, एंजेलिका इत्यादि नामों से जानते हैं। इसका वानस्पतिक नाम एंजेलिका ग्लाउका है। यह भारत में मुख्य रूप से हिमालयी भागों में जैसे कि हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में पाया जाता है। यह सामान्यता एक से तीन मीटर ऊंचा रहता है। यह एक सुगंधित पौधा है। यह अनेक गुणों का भंडार है। इसका उपयोग मसाले के तौर पर भी किया जाता है। इसकी जड़ें घावों को भरने और  पेट के कई विकारों को ठीक करने में मदद मिलती है। इसकी जड़ों का पाउडर शहद के साथ उपयोग करने पर खांसी और सर्दी में सहायक  सिद्ध होता है। इसकी जड़ों में पाउडर का सेवन करने से यादाशत बढ़ती है और दिमागी विकार को ठीक करने में भी सहायता प्रदान करता है।  यह हमारी भूख को भी बढ़ावा देता है। और गर्म पानी के साथ सेवन करने पर कब्ज से भी राहत दिलाता है। हमारे राज्य की जलवायु इस पौधे के लिए अति उत्तम है।

मंजू लता सिसोदिया

सहायक प्राध्यापक वनस्पति

विज्ञान, एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर एवं भूतपूर्व सहायक प्राध्यापक वनस्पाति विज्ञान केंद्रीय विश्वविद्यालय वाराणासी

 डेहलिया का लीड सेंटर बना धौलाकुआं

नौणी यूनिवर्सिटी के क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, धौलाकुआं को देश में डेहलिया फूल की टेस्टिंग का ‘लीड सेंटर’ के रूप में नामित किया गया है। भारत सरकार के कृषि सहकारिता और किसान कल्याण विभाग के पौधा किस्म और कृषक अधिकार प्राधिकरण ने धौलाकुआं अनुसंधान केंद्र को इस प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर का ‘लीड सेंटर’ बनाया है, जिससे आने वाले समय में राज्य में डेहलिया की खेती को बढ़ावा मिलेगा। यह पहली बार है किसी परियोजना के तहत इस फूल को विभिन्न किस्मों को हिमाचल में टेस्टिंग के लिए लाया गया है। स्टेशन पर चल रहे अनुसंधान से आने वाले समय में प्रदेश के किसानों के बीच डेहलिया की व्यावसायिक खेती को लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी। वर्ष 2012 में सजावटी पौधों पर काम शुरू किया गया था।  प्रशिक्षण केंद्र, धौलाकुआं के एसोशिएट डाइरेक्टर डा. एके जोशी ने बताया कि यह एक बड़ी उपलब्धि है

– मोहिनी सूद-नौणी

डेहलिया – डेहलिया को बीज और कंदों के विभाजन और कलमों के माध्यम से उगाया जाता है। निचली पहाड़ी वाले क्षेत्रों में डेहलिया की कुछ किस्में अक्तूबर से दिसंबर महीनों के दौरान खिलती है।

उपयोग – डेहलिया एक अत्यंत सुंदर और बहुउपयोगी फूल है। कट फ्लावर और सजावटी पौधों के अलावा, डेहलिया का उपयोग फार्मास्यूटिकल उद्योग, कॉस्मेटिक और खाद्य उद्योग में रंग निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

किसान बागबानों के सवाल

नया पावर टिल्लर खरीदने पर सबसिडी के लिए कैसे आवेदन किया जाता है ?

– राजेश कुमार, सोलन

फूलगोभी में पत्तों को सफेद कीड़ा लग रहा है। इसके लिए क्या करना चाहिए ?

– कर्ण सिंह, ऊना

– उत्तर आगामी अंकों में

आप सवाल करें, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सएप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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