बुरांस दिल हो या दिमाग रामबाण है

By: Mar 3rd, 2019 12:08 am

हिमाचल के पहाड़ी इलाके इन दिनों सुनहरे लाल व गुलाबी रंग के बुरांस के फूलों से गुलजार हो उठे हैं। बुरांस के फूल चार से सात हजार फुट  की ऊंचाई के वनों में फरवरी से अप्रैल मई तक खिलते हैं। बुरांस एक ऐसा वन पुष्प है, जो अपनी लाल, गुलाबी सुंदरता से हर दार्शनिक को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है और कई इसकी सुंदरता को अपने कैमरे में कैद कर लेते हैं। इस फूल को स्थानीय भाषा में बराह और हिंदी में बुरांस कहा जाता है। आयुर्वेद चिकित्सकों का कहना है कि बुरांस के फूलों का शरवत दिल के मरीजों के लिए रामबाण औषधि है और यह खून के दबाव को कम करने में भी सहायक है। इसके अलावा बुरांस के फूलों से बनी चटनी का नियमित सेवन करने से लू नहीं लगती है और महिलाओं में मासिक धर्म की गड़बड़ी में भी बुरांस के फूलों की चटनी और शरबत लाभप्रद है। इतना ही नहीं सिरदर्द, सुस्ती व जी मचलने में भी यह बेहद फायदेमंद है। आनी क्षेत्र में बुरांस के फूल इन दिनों आनी कुल्लू एनएच 305 सड़क मार्ग पर शमशर से कंडूगाड के मध्य सामने के वनों में देखे जा सकते हैं।

– छविंद्र शर्मा-आनी

फूल कम और पत्तियां ज्यादा

अकसर सर्दियों में बागबानों को यह डर रहता है कि चिलिंग आवर्ज कम रहने से सेटिंग प्रभावित न हो जाए, लेकिन इस बार यह टेंशन बिलकुल खत्म हो गई है। बारिश और बर्फबारी ठीक हुई है। मगर इस बार उन्हें एक नई तरह की टेंशन हो रही है। उन्हें डर है कि अधिक नमी वाले सेब बागीचों में फ्लावरिंग के दौरान पत्तियां अधिक और फू ल कम निकल सकते हैं। ‘दिव्य हिमाचल’ ने अपनी माटी मैगजीन के इस अंक में ऊपरी शिमला के इलाकों में जाकर टोह लेने की कोशिश की, तो ये बातें सामने आई हैं। हालांकि कई बागबान मान रहे हैं कि इसके लिए अभी काफी समय बचा है, लेकिन बागबानों में इस तरह का संशय पैदा हो गया है। खैर, यह सब जब होगा, तब होगा। फिलहाल राहत भरी बात यह है कि बागबानों को बर्फ बारी का सबसे अधिक फायदा चिलिंग आवर्ज को लेकर हुआ है, जिसका सीधा असर सेब की सेटिंग पर पड़ता है। साथ ही वूलि एफिड, जैसी बीमारियों का प्रकोप भी कम होगा। गत वर्ष सेब की फसल काफ ी कम थी, जिसके बाद इस बार उम्मीद लगाई जा रही है कि अच्छी बर्फबारी होने के बाद सेब की फसल पर इसका सीधा असर पड़ेगा और पिछले दो-तीन साल से जिस तरह से बागबान सूखे की स्थिति से जूझ रहे थे, उससे कुछ हद तक राहत मिलेगी।       – रोहित सेम्टा, ठियोग

पंजाब को लगा करसोग के मटर का चस्का

चंडीगढ़-हरियाणा भी मिठास पर फिदा बाहरी राज्यों की होती है हजारों ‌‌‌ ‌‌क्विंटल के सप्लाई

दाम चाहे 40 रुपए हो या फिर 100, पंजाब-हरियाणा और चंडीगढ़ खाएंगे,तो सिर्फ करसोग का मटर। या यूं कह लें कि इन प्रदेशों को करसोग के मटर का चस्का लग चुका है। दिव्य हिमाचल वेब टीवी की टीम ने अपनी माटी बुलेटिन के लिए इस बार मंडी की करसोग वैली का दौरा किया,तो पता चला कि सेब के बाद यहां मटर दूसरी सबसे बड़ी आर्थिकी है। करसोग से हजारों क्विंटल मटर बाहरी राज्यों को सप्लाई होता है। क्योंकि यहां का मटर पूरी तरह आर्गेनिक है, यही वजह है कि बाहरी कारोबारी मटर जुटाने के लिए गांव गांव घूमते हैं तथा इस सब्जी को दूसरे राज्यों की मंडियों में भेजते हैं। उपमंडल मुख्यालय करसोग से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर बनेरा  पंचायत  में ही अनेकों किसान सैकड़ों बीघा पर मटर की खेती कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि कई जगह पानी नहीं पहुंच पाता। सरकार अगर इलाके के लिए छोटी-छोटी सिंचाई योजनाएं प्रदान कर दे, तो यह पैदावार और भी बढ़ सकती है। आइए सुनते हैं किसान और विभाग के अधिकारी इस सफलता को कैसे बयां कर रहे हैं

– नरेंद्र शर्मा,करसोग

रद्दी महंगी, गोभी सस्ती, कैसे डबल होगी इनकम

110 दिन में तैयार नकदी फसलें बिक रही 5 से 7 रुपए किलो, किसानों ने जयराम से पूछा, ऐसे कैसे डबल होगी इन्कम केंद्र की मोदी सरकार और हिमाचल की जयराम सरकार आए दिन बोलती नहीं थकतीं कि हम 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। यही नहीं, हर रोज आर्गेनिक खेती के प्रति छोटे नेता से लेकर अफसरों तक प्रवचन करता मिल जाएगा,लेकिन इनकम डबल कैसे होगी यह कोई नहीं बताता। ये निराशा भरे शब्द हैं कांगड़ा जिला के सगूर गांव के निराश किसानों के।  सगसीपीआरआइूर, टिक्करी, रक्कड़, भरवाना में लगभग 50 कनाल से अधिक भूमि पर खेती करने वाले होशियार सिंह, सुरेश, प्रकाश, रमेश  आदि किसान नकदी फसलें उगाते हैं। इनका कहना है कि नकदी फसलें गोभी, ब्रोकली, मूली, शलगम, मटर, बैंगन आदि 100 से 110 दिन में तैयार होते हैं। वह भी तब,जब बारिश समय पर हो और बंदर,सूअर और लावारिस पशुओं से 24 घंटे पहरा कर बचाया हो। अब सब्जी मंडियों के हाल देख लीजिए। इन दिनों सब्जी मंडी  में  मूली 4 रुपए किलो, फूलगोभी 5 से 7 रुपए और पालक- धनिया  10 रुपए  किलो बिक रहा  है। हर दिन दाम थोड़ा आगे पीछे हो सकते हैं। ऐसे में इन किसानों को यह समझ नहीं आ रहा कि इन्कम डबल कैसे होगी। बहरहाल किसानों का सवाल लाजिब है, क्योंकि इन दिनों में मार्केट से अगर रद्दी खरीदनी हो,तो एक किलो के 15 रुपए चुकाने पड़ते  हैं। किसानों के मन में यह भी सवाल है कि तो क्या यह समझा जाए कि खेती करने से रद्दी का काम बेहतर है।

– उपेंद्र कटोच, पंचरुखी

माटी के लाल

ओम प्रकाश ने उगाया अढ़ाई किलो का शलगम

दौलतपुर चौक के चलेट निवासी ओम प्रकाश 66 ने अपने खेतों में अढ़ाई किलो का शलगम उगाकर प्रगतिशील किसान होने की मिसाल पेश की है। बता दें कि होमगार्ड की नौकरी से रिटायर ओम प्रकाश ने सेवानिवृत्ति के बाद खेतीबाड़ी को ही अपना पेशा बना लिया आज वह अपनी एक कनाल जमीन में सब्जियां उगा रहे हैं, जिससे अच्छी खासी आमदनी भी कमा रहे है।

कृषि के लिए टिप्स

भिंड़ी और खीरा लगाने के लिए अभी मौसम खराब है।

जैसे ही मौसम गर्म होगा हम भिंड़ी और खीरा की बीजाई कर सकते हैं।

अगर जमीन ठंडी है तो बीज को रात को भिगो कर सुबह बिजाई करें।

बागीचों में खाद-गोबर डालने का सही टाइम

भले ही ऊपरी इलाकों में मौसम के तेवर कड़े हों,लेकिन बागबान प्रूनिंग के साथ खाद-गोबर डालने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।  इन दिनों ठियोग सहित ऊपरी शिमला में अधिकतर बागबान बागीचों में देखे जा रहे हैं। सर्दी का मौसम काफी लंबा चलने से अभी तक खासतौर से ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पौधों की प्रोनिंग के अलावा खाद गोबर डालने का कार्य लटका हुआ था। ऐसे में सभी अब इन कार्य को जल्द खत्म करने चाह रहे हैं। बागबानी विशेषज्ञ के अनुसार बागबानों को सेब के तोलिए बनाने की विधि पर विशेष ध्यान उेना चाहिए। बागबानों को सबसे पहला ध्यान यह रखना चाहिए कि तौलिए को हमेशा नमी के समय मे ही करना चाहिए, क्योंकि इससे एक तो पौधों के तोलिए में जड़ों को कम नुकसान होगा तथा इससे पौधें में बीमारियों के पनपने की संभावना कम रहती है। उन्होंने इसकी विधि पर विस्तार से बताते हुए कहा कि पौधे के तने वाले भाग को बिलकुल न छेड़ा जाए पौधे के आधे भाग की मिटटी को सख्त रखें और तोलिए करते समय इसे बिलकुल भी नहीं खोदना चाहिए। बागबानी अधिकारी बताते हैं कि खाद उरर्वक का प्रयोग फलदार पौधों के बाहरी आधे भाग में ही डालकर करना चाहिए तथा तने के समीप से आधे भाग तक या एक से डेढ़ मीटर के घेरे में किसी खाद व उवर्रक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

-मोहिनी सूद, नौणी

पथरी का दुश्मन और फेफड़ा का दोस्त

मंजु लता सिसोदिया सहायक प्राध्यापक, वनस्पति विज्ञान,  एमएलएसएम कालेज सुंदरनगर की कलम से

अकसर नदी-नालों , तालाबों या बावड़ी को पार करते हुए आपकी नजर शायद इस हर्बल पौधे पर जरूर गई होगी जिसे छूछ वाटर क्रैस इत्यादि नामों से जाना जाता है। इसका वनस्पातिक नाम नसट्रिटियम आफिसनेले है। यह साफ-सुधरे, ताजे,ठंडे पानी में पाया जाता है। जहां पानी का बछाव धीमी गति से रहता है वहां यह ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। यह हर्बल पौधा 1-2 फीट लंबा होता है और इसकी पत्तियां पानी की सतह से उपर बिछी रहती है। जो कि हरी इौर तरो-ताजा होती हैं। इसका इस्तेमाल इतिहास में रोमन्स और प्राचीन मिस्रा के समय से औषधि के रूप में किया जाता था। उनका यह मानना था कि इसका सेवन करने से दिमाग तेज होता है और यह घावों को भरने में भी मदद करता है। बाद में इसका उपयोग हरी सब्जी, सलाद के रूप में किया जाने लगा। इस पौधे में सल्फर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो अनेक गुणों के साथ इसे अलग गंध देता है। इसके पत्तों में विटामिन सी, सी1 और मिनरल पाए जाते हैं जो कि पाचन में सहायक है। यह पित और गुर्दे की पत्थरी को पिघलने और तोड़ने में मदद करता है। इसके पत्तों के जूस का इस्तेमाल करने से हमारी त्व्चा तरो-ताजा रहती है और त्वचा के संक्रमण से छुटकारा दिलाता है। यह अनेकों रोगों जैसे कि स्क्रब, टिबी हाईबल्डप्रैशर, गठिया, फेफड़ों को संक्रमण से बचाता है। इसमें मौजूद उच्च मात्रा में एंटिआक्सीडेंट हमारे हृदय की सेहत को बनाए रखते हैं। यह हर्बल पौध औषधिय गुणों से भरपूर है और इसके अनेकों स्वास्थ्य संबंधी फायदे हैं। बिना कोई कीमत चुकाए हम इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

किसान-बागबानों के सवाल

-अगर टमाटर में धब्बा रोग लग जाए तो क्या करें?

-गुलाब की कटाई-छंटाई के बाद उसमें इवाई का लेप लगाएं?

-मुर्गियों को हो रही इकोलाई व कोकसिडीया बीमारी से बचाने के लिए क्या करें?

क्या आप जानते हैं

हिमाचल में उद्यान विभाग 1970 में अस्तित्व में आया था।

सिरमौर जिला के गिरिपार का अदरक अपने औषधीय गुणों के लिए दुनिया भर में मशहूर है।

कृषि विभाग का भूसंरक्षण विंग कूहलों-नालों और दरिया  किनारे डंगे  भी लगवाता है।

जिन इलाकों में बिजली नहीं, वहां सरकार सोलर वाटर से सिंचाई का प्रबंध करती है।

आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सएप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

edit.dshala@divyahimachal.com

 (01892) 264713, 307700, 94183-30142, 88949-25173

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