मंडी में देव मिलन की अनोखी मिसाल
16वीं शताब्दी से चली आ रही शिवरात्रि, प्राचीन देवी-देवता प्रमुख आकर्षक
मंडी —मंडी की शिवरात्रि न सिर्फ धर्म व देवी-देवताओं से जुड़ी हुई है, बल्कि छोटी काशी की शिवरात्रि व शिवरात्रि महोत्सव अपने बीच प्राचीन परपंरा और मानव व देव मिलन की अनोखी मिसाल को समेटे हुए है। 16वीं शताब्दी से राजा सूरज सेन के समय से चली आ रही मंडी शिवरात्रि की प्राचीन परपंरा को आज भी उसी तरह से निभाया जा रहा है। मंडी शिवरात्रि में न सिर्फ यहां के प्राचीन देवी देवता प्रमुख आकर्षक हैं, बल्कि पूरा शिवरात्रि महोत्सव भगवान राज माधव के ईद गिर्द घूमता है। शिवरात्रि महोत्सव में आज भी 16 शताब्दी के समय बनाई गई भगवान राजमाधव की चांदी की प्रतिमा के आगे देवी-देवता नतमस्तक होते हैं और इसी प्रतिमा को शाही जलेब में पालकी में बिठाकर घुमाया जाता है। मंडी रियासत का इतिहास सुकेत रियासत की सातवीं पीढ़ी से प्रारंभ होता है। बाहूसेन ने हाटेश्वरी माता के मंदिर की स्थापना की थी। इसके पश्चात बाहूसने मंगलौर में जा बसा था। 1280 ई.में बाणसेन ने यूली में मंडी रियासत की राजधानी स्थपित की। बटोहली होते हुए 1527 ई.में अजबर सेन ने बाबा भूतनाथ के मंदिर के साथ ही आधुनिक मंडी शहर की स्थापना की थी। मंडी शिवरात्रि को शैव के साथ—साथ वैष्णव और लोकवादी स्वरूप प्रदान करने का श्रेय राजा सूरज सेन को जाता है। सूरज सेन की दस रानियां और अठारह पुत्र थे, मगर एक के बाद एक सभी बेटे काल का ग्रास होने पर राजा भयभीत हो उठा। उसे अपना राज्य छीन लिए जाने की आशंका सताने लगी, मगर उसने कूटनीति से काम लेते हुए अपना राज्य भगवान विष्णू के प्रतीक माधोराय को समर्पित कर दिया और स्वयं राज्य का संरक्षक बनकर राजकाज देखने लगा। मंडी के भीमा सुनार ने माधोराय की चांदी की प्रतिमा बनाई, जो आज भी मौजूद है, जिसे पालकी में रखकर धूमधाम के साथ पड्डल मैदान तक ले जाया जाता है। सूरज सेन ने ही मंडी शिवरात्रि को लोकोत्सव का स्वरूप प्रदान करते हुए जनपद के देवी-दवेताओं को एक सप्ताह तक मंडी नगर में मेहमान बनाकर रखने की परंपरा भी डाली। मंडी शिवरात्रि में शैव मत का प्रतिनिधित्व जहां मंडी नगर के अधिष्ठदाता बाबा भूतनाथ करते हैं, तो वैष्णव का प्रतिनिधित्व राज देवता माधोराय और लोक देवताओं की अगुवाई बड़ादेव कमरूनाग और देव पराशर करते हैं। उस समय से आज भी इस परपंरा का निर्वाह मंडी प्रशासन करता आ रहा है और इसे अब अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का रूप दे दिया गया है।
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