मन की गहराई

By: Mar 30th, 2019 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

नरेंद्र की मां जब उसे इस हालत में देखती तो उन्हें क्रोध आने की बजाय हंसी आ जाती और वह जोर-जोर से हंसने लगती थी। न जाने उस वक्त उनका गुस्सा कहां हवा हो जाता था। नरेंद्र की इन बचकानी हरकतों को देखकर कभी तो उनकी मां को गुस्सा आ जाता तो कभी बड़ा प्यार आने लगता। कभी वे हैरतभरी नजरों से उसे ताकने लगती थीं और कभी हृदय के सैकड़ों भाव को मिलाकर एक अनोखे भाव की सृष्टि करने लगती थीं। कभी-कभी वे नरेंद्र के भविष्य के बारे में सोचती थीं फिर अपने आप ही कहने लगती, मैं क्यों चिंता करूं। भगवान की जैसी मर्जी होगी वैसा ही होगा और मैं तो होती भी कौन हूं चिंता करने वाली। नरेंद्र ने रामायण व महाभारत के अनेक प्रसंगों को अपने दिमाग में बिठाकर उन्हें कंठस्थ कर लिया था और कभी-कभी अकेले में मग्न होकर वह इन्हें गाने लगता था। नरेंद्र को रामायण के अंतर्गत हनुमान जी का चरित्र बेहद पसंद आया था। स्वामीभक्त, ब्रह्मचारी, सेवानिवृत्ति हनुमान का जीवन रूप असंभव कार्य को संभव कर दिखाने वाला वह पात्र उनकी एक-एक बात को नरेंद्र गहराई से सोचता और मन ही मन उन पर मुग्ध होता रहता था। मां ने उसे बताया कि हनुमान जी तो अजर अमर हैं। वह कभी नहीं मरते, वे जीवित हैं। इस बात को सुनकर नरेंद्र ने सोचा अगर ऐसी बात है, तो फिर हनुमान जी से तुरंत मिलना चाहिए, लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि वह मिलेंगे कहां। हनुमान जी से मिलने के लिए नरेंद्र व्याकुल हो उठे। ऐसे ही एक बार की घटना है कि धार में कथा के दौरान पंडित जी हनुमान जी के चरित्र का वर्णन कर रहे थे। वे सब लोगों को बता रहे थे कि हनुमान जी को फलों का भोजन बहुत पसंद  था और इसी वजह से वे बाग-बागीचों में ज्यादा रहते हैं। इतना सुनते ही नरेंद्र उठकर पंडित जी के पास पहुंच गया और बोला पंडित जी, क्या बाड़ी में हनुमान जी मिलेंगे? वहां वह जरूर केले खाने आते होंगे। बालक समझकर पंडित जी ने यूं ही कह दिया हां क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे। बच्चे की इस बात पर किसी ने ध्यान न दिया था। वहां से उठकर नरेंद्र सीधे केला बाड़ी की ओर चल दिए। वहां जाकर वह हनुमान जी की तलाश करने लगे। बहुत ढूंढा मगर वहां कोई नहीं मिला। थक हार कर एक जगह जाकर बैठ गए और मन ही मन सोचने लगे कि हनुमान जी कहीं गए हुए हैं, अभी थोड़ी देर बाद लौट आएंगे। मगर हनुमान जी नहीं आए। शाम होने लगी। अंधकार बढ़ता ही जा रहा था। फिर नरेंद्र क्या करता। निराश होकर मुंह लटकाए घर पर आ गया। घर पर आकर उसने अपनी मां से पूरी घटना के बारे में बताया। मां ने बच्चे की बात गौर से सुनी और फिर इस डर से कि कहीं इसका विश्वास न टूट जाए, बोली मायूस होने की जरूरत नहीं। हो सकता है कि राम जी ने उन्हें अपने किसी काम से भेज दिया हो। वे राम जी के सेवक हैं। अबकी बार तुम जाओगे तो वो तुम्हें जरूर मिल जाएंगे। नरेंद्र के बेचैन मन को मां की बात सुनकर थोड़ी सी राहत मिली। बाद में वे फिर न जाने उस जगह गए या नहीं, इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता।


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