मर्यादाओं को शिक्षक भी समझें

By: Mar 4th, 2019 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

यहां अल्फ्रेड एडलर का कथन भी दृष्टव्य है ‘बुद्धिमान व्यक्तियों की प्रशंसा की जाती है, धनवान व्यक्तियों से ईर्ष्या की जाती है, बलशाली व्यक्तियों से डरा जाता है, लेकिन विश्वास केवल चरित्रवान व्यक्तियों पर ही किया जाता है’। शिक्षकों को अपनी तमाम कमियों को परे रखकर विद्यार्थियों के समक्ष एक आदर्श शिक्षक की भूमिका निभाने के लिए उन सभी उच्च कोटि के विशिष्ट गुणों का समावेश और प्रदर्शन करना चाहिए, जिससे बच्चों और समाज में शिक्षकों का महत्त्व तथा इज्जत बनी रहे…

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में कांगड़ा-चंबा से लोकसभा सांसद शांता कुमार ने जिला चंबा की एक पाठशाला के अध्यापक को नन्हीं-नन्हीं मासूम बच्चियों के साथ यौन शोषण के अपराध के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाने को न्यायपालिका का साहसपूर्ण एवं प्रशंसनीय निर्णय करार देते हुए, इसे पूरे शिक्षा जगत तथा अध्यापकों के लिए आंखें खोलने वाला बताया है। निस्संदेह थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद हिमाचल प्रदेश में स्कूली बच्चियों के साथ कदाचार की खबरें जहां संवेदनशील नागरिकों को विचलित करती हैं, वहीं उन हजारों मां-बाप की चिंताओं में भी इजाफा करती हैं, जिनकी बच्चियां ज्ञान प्राप्ति एवं अपने उज्ज्वल भविष्य की चाह लिए रोजाना दूरदराज के स्कूलों में शिक्षा प्राप्ति के लिए पहुंचती हैं। प्रायः विद्यालयों की दीवारों पर यह बात पढ़ने को मिल जाएगी कि  विद्यालय में अध्यापक ही विद्यार्थियों के दूसरे अभिभावक हैं और घर पर अभिभावक ही बच्चों के दूसरे अध्यापक हैं।

आशय स्पष्ट है दोनों ही परिस्थितियों में मां-बाप एवं अध्यापकों को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, लेकिन विद्यालयों में कतिपय दूषित मानसिकता वाले अध्यापकों की करतूतों का संताप समस्त शिक्षक जगत को भुगतना पड़ता है। वर्तमान आधुनिक जमाने में जब इंटरनेट से सोशल मीडिया की पहुंच, मोबाइल में कैमरों के चलते अब छोटी से छोटी घटना भी तत्काल राष्ट्रीय स्तर पर वायरल हो जाती है और ऐसे में कुकर्मी और शराबी अध्यापकों के वीडियो भी समाचार चैनलों में प्रमुखता से प्रसारित किए जाते हैं और इससे समस्त शिक्षक समाज की साख को बट्टा लगता है। शिक्षण एक पवित्र कर्म और पेशा है। इस महती जिम्मेदारी को लेने वाले किसी भी स्त्री अथवा पुरुष को इस व्यवसाय से जुड़ीं तमाम मर्यादाओं एवं संस्कार संबंधित बातों को भलीभांति अपने चरित्र में आत्मसात कर लेना चाहिए। विनोबा भावे के अनुसार ‘किसी भी देश का आने वाला कल इसी बात पर निर्भर करता है कि आज उस कल को दिशा देने वाले कौन हैं’। विनोबा भावे का यह कथन शिक्षकों के लिए ही है। शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बिंदु है और उसके बिना नन्हें विद्यार्थियों को शिक्षा का हस्तांतरण अकल्पनीय है। यही वजह है कि आज भी वैश्विक समाज में शिक्षक का स्थान बेहद गरिमापूर्ण माना गया है। विदेशों में तो अध्यापकों का दर्जा अन्य सेवाओं में लगे लोगों से भी ऊंचा रखा जाता है। एक अच्छे शिक्षक के क्रियाकलाप, शिक्षण योग्यता,  व्यवहार और दूरदर्शिता का प्रभाव विद्यार्थियों के साथ-साथ अभिभावकों और समाज पर भी पड़ता है। जब भी एक आदर्श शिक्षक के गुणों की चर्चा होती है, तो फिर उसकी अध्यापन शैली, उसके ज्ञान, मनोविज्ञान, कुशल वक्ता होने, परिपक्वता, सहयोगी अध्यापकों और अभिभावकों के साथ उसके मधुर संबंधों की भी चर्चा होती है। इसके साथ ही उसकी विनोदप्रियता, नेतृत्वशक्ति, धैर्य, वेशभूषा और व्यक्तित्व की छाप भी समाज पर पड़ती है, लेकिन जिस बात को लेकर एक श्रेष्ठ अध्यापक का सर्वाधिक प्रभाव समाज पर पड़ता है, वे हैं उसकी चारित्रिक विशेषताएं। यदि अध्यापक का आचरण और चरित्र संस्कारयुक्त है, तो उसका अनुकरण हमारे बच्चे भी करते हैं। कबीर दास ने सदियों पहले बता दिया था कि शिक्षक का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है। आज के भौतिकतावादी जमाने में शिक्षकों की भूमिका का महत्त्व अपने आप बढ़ जाता है। यहां अल्फ्रेड एडलर का कथन भी दृष्टव्य है ‘बुद्धिमान व्यक्तियों की प्रशंसा की जाती है, धनवान व्यक्तियों से ईर्ष्या की जाती है, बलशाली व्यक्तियों से डरा जाता है, लेकिन विश्वास केवल चरित्रवान व्यक्तियों पर ही किया जाता है’।

अध्यापकों को न केवल विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकों की बातों से भलीभांति परिचित करवाना होता है, बल्कि शिष्यों को सुसंस्कारित बनाकर समाज को भी सौंपना होता है। वर्तमान समय की भाग-दौड़ और आपाधापी वाली जिंदगी में परिवार, शिक्षक और बच्चे सभी बुरी तरह से सक्रिय हैं। ऊपर से एकल परिवारों का चलन और कामकाजी मां-बाप अपनी-अपनी नौकरियों में व्यस्त हैं। पहले संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों के सान्निध्य में रहकर बच्चों में प्रेमभाव, मेलजोल और अपने से बड़ों को आदर देने के गुण स्वयंमेव ही उनकी आदत में शुमार हो जाते थे। अब इसकी जगह बच्चों का अधिकतर समय मोबाइल के सान्निध्य में बीत रहा है, ऐसे समय में एक सुसंस्कारित और चरित्रवान शिक्षक की भूमिका और बढ़ जाती है, ताकि वह अपने विद्यार्थियों में भी उचित चारित्रिक गुणों का परिमार्जन कर सके। इसके लिए जरूरी है कि इस पवित्र कार्य की जिम्मेदारी संभालने वाले शिक्षकों को अपनी तमाम कमियों को परे रखकर विद्यार्थियों के समक्ष एक आदर्श शिक्षक की भूमिका निभाने के लिए उन सभी उच्च कोटि के विशिष्ट गुणों का समावेश और प्रदर्शन करना चाहिए, जिससे बच्चों और समाज में शिक्षकों का महत्त्व तथा इज्जत बनी रहे। शिक्षक भी समाज का अभिन्न अंग हैं।

जहां अच्छाई है, वहां बुराई भी है। जैसे गुलाब के साथ कांटे होते हैं, लेकिन हमारा समाज शिक्षकों से उच्चकोटि के आदर्श चारित्रिक आचरण की आशा रखता है और हमारे शिक्षक समुदाय को इस पर खरा उतरकर दिखाना होगा, तभी इस पवित्र कार्य से जुड़े लोगों की विश्वसनीयता बरकरार रहेगी।


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