राहुल गांधी की ‘मास्टर’ योजना

By: Mar 27th, 2019 12:05 am

1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। उसी मुद्दे पर कांग्रेस को शानदार जनादेश प्राप्त हुआ था। उसके बाद परिस्थितियां और समीकरण बिलकुल बदल चुके हैं। करीब 48 साल बाद उनके पौत्र एवं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ‘मास्टर’ योजना का एलान किया है-न्यूनतम आय गारंटी। उन्होंने देश को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि यदि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी, तो सबसे गरीब 20 फीसदी परिवारों को 72,000 रुपए सालाना की आर्थिक मदद मुहैया कराई जाएगी। प्रयास रहेगा कि औसत नागरिक की माहवार आमदनी 12,000 रुपए जरूर हो। उससे अधिक आय वाले प्रस्तावित योजना के दायरे से बाहर होंगे। राहुल गांधी का दावा है कि योजना से पांच करोड़ परिवारों के 25 करोड़ लोगों को फायदा होगा। यह योजना गरीबी पर अंतिम प्रहार साबित होगी। कांग्रेस इस घोषणा को ही ‘मास्टर स्ट्रोक’ मान रही है। बहरहाल अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि योजना पर 3.60 लाख करोड़ रुपए सालाना खर्च होंगे। कांग्रेस के भीतर भी अर्थशास्त्रियों से विमर्श करने का दावा किया गया है। बुनियादी सवाल है कि इतना पैसा कहां से आएगा और राजकोषीय घाटे से कैसे बचा रहा जा सकेगा? किन क्षेत्रों की सबसिडी कम की जाएगी? रक्षा बजट और सामाजिक सरोकारों की अन्य योजनाओं का क्या होगा? एक और पक्ष मोदी सरकार का है, जो आवास, सामाजिक सुरक्षा, गैस, बिजली और आयुष्मान भारत आदि योजनाओं के जरिए कुल सात लाख करोड़ रुपए गरीबों में बांट रही है। सिर्फ 55 विभागों की विभिन्न योजनाओं पर ही करीब 1.8 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। अकेले स्वास्थ्य पर ही 20,000 करोड़ रुपए की मदद दी जा रही है। ये दावे और आंकड़े वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ही दिए हैं। यह राशि गरीबों के बैंक खातों में सीधे ही जमा कराई जाती है। एक बेहद महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील सवाल है कि इतना धन आता कहां से है? महत्त्वपूर्ण योजनाओं में किसान की कर्जमाफी और मनरेगा भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘किसान सम्मान निधि’ योजना के तहत 6000 रुपए सालाना बांटना भी शुरू कर दिया है। उससे करीब 12 करोड़ किसानों को ‘जेब खर्च’ मुहैया कराने का लक्ष्य तय किया गया है। देश में योजनाएं खूब हैं, बल्कि इस देश को तो ‘योजना राष्ट्र’ नाम दे देना चाहिए। लेकिन सवाल है कि 1971 से लेकर आज तक अंततः गरीब क्यों मौजूद है? गरीबी का उन्मूलन क्यों नहीं किया जा सका? हास्यास्पद तथ्य यह है कि आज तक ‘गरीब’ और ‘गरीबी’ की बुनियादी और सर्वसम्मत परिभाषा तक तय क्यों नहीं की जा सकी है? कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार ने रंगराजन कमेटी का गठन किया था, लेकिन उसकी रपट अगस्त, 2015 में मोदी सरकार के दौरान ही पेश की गई। उसके मुताबिक देश में तब दस करोड़ से ज्यादा ‘गरीब’ थे। कमेटी ने उस व्यक्ति को ‘गरीब’ माना, जिसकी रोजाना की औसत कमाई गांव में मात्र 32 रुपए हो और शहर में 47 रुपए हो। इससे पहले सुरेश तेंदुलकर कमेटी ने हररोज 27 रुपए गांव में और 33 रुपए शहर में कमाने वाले को ‘गरीब’ की श्रेणी में रखा था। इसी तर्ज पर आज तक आधा दर्जन कमेटियों की रपटें आ चुकी हैं, लेकिन ‘गरीब’ की सर्वसम्मत परिभाषा तय नहीं हो पाई, लिहाजा सवाल है कि कांग्रेस जिन गरीबों को न्यूनतम आय की गारंटी दे रही है या मोदी सरकार योजनाओं की रेवडि़यां बांट रही है, उस ‘गरीब’ के किस डाटा को प्रामाणिक आधार माना गया है? 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों का डाटा कौन-सा है? कमेटियों ने गरीब की आय का जो आंकड़ा दिया है, वह बीते सात दशकों के दौरान चलाई गई ‘गरीबी हटाओ’ मुहिम के बावजूद है। जाहिर है कि ऐसी योजनाएं अधिकतर ‘चुनावी’ साबित हुई हैं। बहरहाल अभी इस घोषणा पर अंतिम टिप्पणी करना उचित नहीं होगा, क्योंकि 23 मई को जनादेश की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App