विश्वकर्मा पुराण

By: Mar 23rd, 2019 12:05 am

सूतजी बोले, हे ऋषियो! परम कृपालु परमात्मा श्रीविश्वकर्मा की आज्ञा से जो मनुष्य नवनिर्माण में अथवा जीर्णोद्धार में वास्तु की पूजा करते हैं, वे उत्तम सुखों को पाते हैं। विविध प्रकार की संपत्तियों को प्राप्त करके अपने सब परिवार सहित निवास करते हैं, परंतु उनकी इस आज्ञा का जो मनुष्य अनादर करते हैं, वे सब तरह से दुखी होते हैं तथा दरिद्री रहते हैं और अनेक प्रकार से पीड़ा पाते हैं…

हे नाथ! समस्त जगत के उद्वार करने की अलौकिक शक्ति वाले आपको हम प्रणाम करते हैं तथा अपने स्थान की तरफ जाने के लिए हम आपकी आज्ञा मांगते हैं। सूतजी बोले, हे ऋषियो! इस प्रकार से प्रभु में लीन उन आठों गंधर्वों ने प्रभु को प्रणाम किया तथा प्रभु की आज्ञा मिलते ही तुरंत वह आकाश मार्ग से अपने स्थान की तरफ चले गए। उनकी बात जानकर सब देवता प्रभु के प्रति अत्यंत भक्ति से देख रहे थे तथा वास्तु की प्रशंसा करते हुए वह सब देवता प्रभु की अकल्प्य गति का स्मरण करते हुए स्वर्ग में विचार करने लगे। हे ऋषियो! इस प्रकार के आठ महाशल्यों का प्रहार किया, फिर कृपालु प्रभु विश्वकर्मा ने इसके बाद सब देवताओं के आवासों की रचना की तथा सब देवताओं के सामने भगवान विश्वकर्मा बोले, हे देवताओ! कोई भी नवनिर्माण अथवा जीर्णोद्धार करवाएं, तब वहां सबसे पहले वास्तु का निवास करना चाहिए तथा उत्तम प्रकार से उनका पूजन करना चाहिए। इस तरह करने से अष्ट महाशल्यों सहित पृथ्वी के सब दोषों का नाश होगा फिर इसके उपरांत नवरचना में होने वाले अनेक छोटे-बड़े दोषों के निवारण के लिए जो कोई मनुष्य उत्तम प्रकार से वास्तु पूजन कराएगा उसके घर में निरंतर देवताओं का निवास होगा, जिस घर में वास्तु का पूजन नहीं किया जाता है, उस घर में देवता कभी निवास नहीं करेंगे तथा सब प्रकार के अमंगलों से नित्य भययुक्त रहेंगे। देवता तो वास्तु पूजन किए हुए आवास में नित्य अनेक प्रकार के सुख को देने वाले अनेक मंगल तथा उत्सव होंगे। फिर उस घर में निरंतर लक्ष्मी का वास होगा तथा उस घर में धनधान्य के भंडार निरंतर भरे रहेंगे, फिर वास्तु पूजन करने से उस आवास में रहने वाले मनुष्य हमेशा शारीरिक तथा मानसिक उपाधियों से रक्षित रहकर निरंतर अनेक प्रकार से सुख समृद्धि को प्राप्त करेंगे। इस प्रकार कहकर श्रीविश्वकर्मा सबके देखते-देखते वास्तु सहित अंतर्ध्यान हो गए। प्रभु जिस दिशा में अंतर्ध्यान हुए उस दिशा को प्रणाम करके सब देवता प्रभु के रचे हुए अपने नव आवासों में उत्तम प्रकार से वास्तु की पूजा करके तथा विश्व ब्राह्मणों की भी शिल्पियों की भांति पूजा करके उन सबको उत्तम प्रकार से दान दक्षिणा वगैरह से पूर्ण संतुष्ट किया। इसके बाद उन देवताओं ने अपने-अपने आवासों में वास शुरू किया और अनेक प्रकार से आनंद करने लगे। सूतजी बोले, हे ऋषियो! परम कृपालु परमात्मा श्रीविश्वकर्मा की आज्ञा से जो मनुष्य नवनिर्माण में अथवा जीर्णोद्धार में वास्तु की पूजा करते हैं, वे उत्तम सुखों को पाते हैं। विविध प्रकार की संपत्तियों को प्राप्त करके अपने सब परिवार सहित निवास करते हैं, परंतु उनकी इस आज्ञा का जो मनुष्य अनादर करते हैं, वे सब तरह से दुखी होते हैं तथा दरिद्री रहते हैं और अनेक प्रकार से पीड़ा पाते हैं। हे ऋषियो! इस प्रकार से वास्तु की ख्याति तथा दैवत्व की प्राप्ति के लिए आपने जो कुछ पूछा वह मैंने तुमको बताया अब तुमको और क्या सुनने की इच्छा है वह कहो। हे सूत! हे वक्ताओं मेें श्रेष्ठ! हे भाग्यशाली सूत तुम ने शिल्पी की पूजा की जो बात कही उसका कारण क्या है। हे तात! तुम हमको वह कारण बताओ। हे परम ज्ञानी सूत सब प्रकार से देवताओं की पूजा योग्य है। फिर भी वह हमारे बड़े तथा महान पुरुष और सत पुरुषों का तथा अति पवित्र ऐसे उत्तम पुरुषों का पूजन भी शास्त्र संगत है। परंतु हे सूत! सर्वसामान्य ऐसे शिल्पी की पूजा की जो बात आपने कही वह हमारे समझ में नहीं आती, इसलिए आप उसका कारण विस्तारपूर्वक कहो।


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