शिव शक्ति मंदिर  पंथाघाटी

By: Mar 2nd, 2019 12:07 am

हिमाचल  प्रदेश के हर गांव और हर पहाड़ी  पर कोई न कोई मंदिर अवश्य है इसलिए  इसे देवभूमि का अलंकार  हासिल  है। लोगों  की  देवी- देवताओं के प्रति अथाह  श्रद्धा, आस्था और विश्वास है। कहीं शिवालय हैं,  तो कहीं  देवियों के मंदिर।  कहीं सिद्ध मंदिर  हैं , तो कहीं हनुमान के। प्रदेश  की राजधानी शिमला के पंथाघाटी  में हरिहर  उदासीन  आश्रम शिव  शक्ति  मंदिर है जो धार्मिक  विश्वास  और आस्था  का केंद्र  है। यह  मंदिर  शिमला  जिला  मुख्यालय  से दक्षिण दिशा  की ओर करीब 15 किलोमीटर  की दूरी  पर  स्थित  है । यह मंदिर  अपने  अद्भुत आकर्षक  और मनोहर  दृश्य  के लिए  प्रसिद्ध  है।  जनश्रुति  के मुताबिक  यहां पंथा  नाम  की सती  हुई, जिसकी  आत्मा  भटकती  रहती थी।  शरघीन गांव  व आसपास  के क्षेत्रों  के लोगों  को वहां से गुजरने  पर  भय  हुआ करता था।  कहते हैं  कि लोग आते-जाते माता के नाम  पर पत्थर उठाते  और उस पत्थर  को चुमकर  वहां  फेंक दिया करते।  धीरे-धीरे वहां पत्थरों का एक ढेर इकट्ठा  हो गया । ऐसा  मानना है कि पंथा  सती के नाम  पर ही क्षेत्र  का नामकरण  पंथाघाटी हुआ है।  कहते  हैं  कि क्षेत्रीय  देवता डोम क्षेत्र  में आते रहते और  भक्तजनों  के आग्रह  पर डोम देवता ने भय वाली जगह पर अपना  स्थान  सुनिश्चित  कर लिया । समय -समय पर वहां साधु-संत आते रहते और अपना डेरा लगाकर  साधना  में लीन हो जाते । अगर साधना में कोई त्रुटि हो जाए, तो उन्हें माता सती और डोम देवता के प्रभाव से वह स्थान  छोड़  कर जाना पड़ता। धीरे -धीरे माता सती शांत  होने लगी। बताते हैं कि करीब 30 -40 वर्ष  पहले एक परम तपस्वी संत बाबा महावीर दास जी का वहां आगमन हुआ।  बाबा महावीर दास जी दिल्ली  के बाबा हरिहर जी की सिद्ध गद्दी के संत थे और श्री 108 से अलंकृत  थे। क्षेत्र  वासियों  ने वहां बाबा के लिए  एक गोलाकार  स्वरूप  में कुटिया बनाई।  जिसमें बाबा साधना में लीन रहते।  लोगों  का कहना  है कि रात के समय जुगनू  की तरह कोई ज्योति  स्वरूप  कुटिया के चारों ओर घूमती। एक  दिन  माता सती ने स्वयं  प्रकट होकर  बाबा जी को दर्शन  दिए। कुछ समय पश्चात  बाबा जी अपने दिल्ली  प्रवास चले गए और मंदिर की सेवा-पूजा अपने  गुरु भाई निरंकार मुनि जी पर छोड़ दी। वर्तमान  मंदिर  का निर्माण  का कार्य  स्थानीय  जनता के सहयोग  से दिल्ली  के हरिहर उदासीन  संप्रदाय  के तत्कालीन  मठाधीश्वर महंत बाबा गुरुशरण दास जी ने नौ जून 2005 में संपूर्ण  करवा उद्घाटन  किया । इस  मंदिर  में  श्री राधा कृष्ण,  जगतगरु चंद्रदेव, श्री गौरी शंकर, श्री दुर्गा  माता और श्री सीता राम  दरबार  की मूर्तियां हैं । इन मूर्तियों  के अलावा मंदिर  में तीन शिवलिंग नर्मदेश्वर  शिवलिंग, पारदेश्वर  शिवलिंग  और स्फटिकेश्वर शिवलिंग हैं। स्फटिकेश्वर शिवलिंग और डोम  देवता मंदिर के बाहर  बायीं ओर अवस्थित  किए गए हैं।  मंदिर  के भीतर  श्री 108 बाबा महावीर दास  जी की दो प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर  में सेवारत उदासीन  संप्रदाय  के बाबा सीमांत मुनि (38 वर्षीय, केरल निवासी) ने बताया  कि मंदिर  में  52 किलो का पारदेश्वर शिवलिंग है । यह शिवलिंग  केवल मात्र इसी मंदिर में है। हिमाचल  प्रदेश  के किसी  अन्य  मंदिर  में ऐसा  शिवलिंग  नहीं  है।  महाशिवरात्रि के पर्व पर ही इस पारदेश्वर  शिवलिंग  का महाअभिषेक किया जाता है। मंदिर  में हर माह के ज्येष्ठ मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ किया जाता  है।  शिवरात्रि, जन्माष्टमी और गुरुपूर्णिमा के अवसर पर विशेष समारोह  आयोजित  किया  जाता  है। सुबह-शाम  हरिहर  उदासीन  संप्रदाय के आचार्य जगतगरु चंद्र भगवान  की आरती की जाती है। सुबह  पके  हुए भोज्य पदार्थ का भोग तथा शाम को देशी गाय के दूध का भोग लगाया जाता है।

– अनिल शर्मा नील, बिलासपुर


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