सबक सिखाने का सबब

By: Mar 17th, 2019 12:04 am

सबक सिखाने का सीधा-सीधा मतलब है हम बिल्कुल सही हैं और सामने वाला पूरी तरह गलत और बकवास। सिखा डालने का कटु आग्रह अपने आप में ही विडंबना का कृत्य लपेटे हुए है क्योंकि इसमें खुद को बेहद पाक साफ मानने की जिद समाई है। अपने आपको समझ सकने वाला ही इस तरह के उन्मादी बयान दे सकता है। जो शख्स अपने भीतर से दो-चार होने को तरजीह देगा, वह पहले अपने वजूद की निगरानी को प्राथमिकता देगा। सामने वाले को अपने बाजू चढ़ाकर शिक्षा देने का तात्पर्य है अभी सिखाने वाली ही अपरिपक्व है, अधकचरा है। सिखाने की जद्दोजहद में उलझा हुआ व्यक्ति अपने प्रति घोर सोया हुआ होना जरूरी है, वरना उसे सिखाने की यह उतावली इतना बेचैन नहीं कर सकती। हमारे भीतर का बिखराव हमें अकसर धोखेबाज की श्रेणी में ला पटकता है। जो हम होते नहीं, उसका खालीपन इतना चुभता है कि वह इसे अपने आस-पास हर किसी को इसी चुभन से भर देना चाहता है। मानसिक यंत्रणा का यह पहलू बाहरी आवरण में दिखेगा नहीं, लेकिन बाहर की दुनिया को नष्ट करने में इसका हाथ हमेशा रहता है। न्यायिक नीयत और सम्यक नीतियों के खालीपन से उपजा सूनापन इस तरह के सबक सिखाने की इबारत लिखने में ही सार्थकता ढूंढा करता है। सत्ता के अनर्थ से हुई टकराहट ने भी अकसर कई शैतानों को जन्म दिया है। इतिहास इसका सच्चा गवाह रहा है।

अपनी श्रेष्ठता के अहंकार का आवेग इतिहास के समंदर में बहुत बार उप्लवी हुआ है, लेकिन वक्त के चश्मों ने इन्हें हमेशा धोया और उन्हें काल-कलवित कर आगे बढ़ गया। अपने को जान व समझ चुका आदमी अपने ज्ञान का अग्नि की भांति प्रयोग नहीं कर सकता, जो अभी अपने आप से अनजान है वही सिखाने की बेसब्री का मारा हुआ होगा। अहमन्यता इसी उचाट उद्भव से बहती है। खुद में बंटे और बांटने के बेताब आग्रहों के चलते सत्ता की देवी का आचमन होगा। सत्य कहीं और ठिकाना और ठौर ढूंढेगा।


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