जादुई मशरूम का कैप्सूल तैयार

By: Apr 14th, 2019 12:08 am

विटामिन डी की कमी पूरा करने के लिए रामबाग

सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल

नई तकनीक से किसान भी पैदावार कर करेंगे कमाई

विटामिन डी की कमी से जूझने वालों के लिए राहत भरी खबर है। सीएसआईआर ( हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान) पालमपुर के वैज्ञानिकों ने शटाके मशरूम का कैप्सूल तैयार कर दिखाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शटाके मशरूम का कैप्सूल विटामिन-डी से भरपूर है व इसको सुखाकर कैप्सूल के माध्यम से उपभोक्ताओं को परोसा जा सकता है। डब्ल्यूएचओ के सर्वेक्षण अनुसार विश्व में अधिकतर लोगों में विटामिन की कमी पाई गई है। इससे बीमारियों को बढ़ावा मिल रहा है। हालांकि कुदरती तौर पर विटामिल-डी का सबसे बड़ा स्त्रोत सूर्य का प्रकाश है जो हर समय किसी को उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। कई संस्थानों में लोग सुबह से शाम तक कमरे के अंदर कार्य करते हैं व धूप में बैठने को समय नहीं मिलता। संस्थान में सिटाके नामक मशरूम तैयार किया है। इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन-डी की उपलब्धता है। संस्थान ने इसे सुखाकर कैप्सूल बनाकर ग्राहकों को परोसने की तकनीक भी इजाद की है। इसके तहत 500-500 मिली ग्राम के कैप्सूल के माध्यम से एक कैप्सूल से सारे दिन में विटामिन की कमी को दूर करेगा। संस्थान का दावा है कि इस कैप्सूल से धूप के अभाव में विटामिन-डी की कमी से हड्डियों की समस्या से जूझ रहे मरीजों को सहायता मिलेगी। वैसे तो मशरूम को पोष्टिक आहार से युक्त माना गया है। इसमें फोलिक एसिड व लौह तत्व विद्यमान है, जो लाल रक्त कण बनाने में मदद करते हैं। संस्थान निदेशक डा. संजय कुमार ने बताया कि संस्थान में विटामिन-डी से भरपूर कैप्सूल की तकनीक विकसित की है। इसे सिटाके मशरूम की मदद से बनाया गया है। इसके बाजार में आने पर लोगों को अन्य दवाइयों की जगह शाकाहारी दबाई उपलब्ध होगी। वहीं देश विटामिन-डी के मामले में सक्षम होगा।

– जयदीप रिहान, पालमपुर

नमस्ते धर्मशाला हल्दी-लाल चावलकमाल

पहाड़ पर पैदा होने वाली आर्गेनिक हल्दी हो या फिर लाल चावल, एक भरोसेमंद ब्रांड बन चुका है नमस्ते धर्मशाला। हल्दी ही क्यों नमस्ते धर्मशाला की सेपू बड़ी,उड़द बड़ी व चने की बड़ी हर किसी को खूब भा रही है। नमस्ते धर्मशाला से जुड़ी हैं एक छोटे से गांव में शिव शक्ति नाम से सेल्फ हेल्प ग्रुप चला रही शालिनी चौधरी। किसान परिवार से संबंधित शालिनी चौधरी के ग्रुप में कुल सात सदस्य हैं। उन्होंने वर्ष 2013 में मिलजुल कर बडि़यां बनाने का कार्य शुरू किया था। खंड विकास कार्यालय से मदद मिली,तो हौसला भी बढ़ा। धीरे धीरे उनके ग्रुप के प्रोडक्टों में भी इजाफा हुआ। आखिर एक मौका वह भी आया,जब 27 दिसंबर 2018 के दिन शालिनी चौधरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी रू- ब-रू होने का मौका मिला। उस दौरान धर्मशाला में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं की कामयाब महिलाओं से बात की थी। शालिनी कहती हैं, इससे उन्हें काम को और बेहतर ढंग से करने की प्रेरणा मिली। फिलहाल अभी उनके ग्रुप को पैकिंग का भी प्रशिक्षण मिल चुका है। उनके उत्पादों की पैकिंग देखते ही बनती है। आज समूचे हिमाचल को शालिनी जैसी होनहार महिलाओं पर गर्व है।

अलसी पाउडर और सीरा है कमाल

शालिनी के ग्रुप द्वारा तैयार अलसी पाउडर और सीरे की भी खूब मांग है। उनके पास लाल चावल की वह किस्म है, जिसमें पानी तीन गुना डालने की जरूरत होती है। इसी तरह आटे की सेमियां, आमचूर और खट्टियां भी लोगों को खूब भा रही हैं।

शालिनी चौधरी

फोन नंबर : 94186-57006

अबदेश कुमार

फोन नंबर : 94188-30884

आम की निम्‍न फ्लावरिंग बागबान मायूस

फलों के राजा आम के चाहवानों को इस वर्ष सीजन में आमरस की मिठास का जायका उठाने के लिए महंगे दाम चुकाने पड़ सकते हैं। आम की कम फ्लावरिंग होने के कारण कम पैदावार होना तय है, जिसके चलते बाजारों में आम की फसल कम मात्रा में पहुंचने से महंगें दामों पर उपलब्ध होगी। जिला मंडी के डैहर उपतहसील के क्षेत्र को आम की बंपर फसल का गढ़ माना जाता है, लेकिन इस वर्ष आमों के गढ़ माने जाने वाले डैहर उपतहसील के अंर्तगत आने वाले क्षेत्रों में गत वर्ष की अपेक्षा एक तिहाई से भी कम आम के पौधों की फसल की फ्लावरिंग हुई है। इससे इस वर्ष बागबान मायूस हैं। डैहर उपतहसील के अंर्तगत आने वाले क्षेत्रों के बागबानों से व्यापारी बागीचों में आम की खड़ी फसल पर ही सौदा कर लेते थे व फसल की तैयार होने पर आमों को तोड़कर मंडियों में बेचा जाता रहा है। गत वर्ष की अपेक्षा इस मर्तबा क्षेत्र में आम के बागीचों में एक तिहाई से भी कम पेड़ों पर फ्लावरिंग हुई है। आम की कम फ्लावरिंग होने से और आने वाले दिनों में तूफान व ओलावृष्टि प्राकृतिक प्रकोपों के चलते आम की फसल की पैदावार में और ज्यादा कमी आने का अनुमान है। गत वर्ष जहां पर आम की बंपर फसल के बाद बाजार में आम के दशहरी किस्म की किमत 20 से 30 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपलब्ध था, लेकिन इस मर्तबा एक तिहाई से भी कम आम की फ्लावरिंग होने से बाजार में आम के दामों में भारी उछाल देखने को मिलेगा। बागबानों ने बताया कि गत वर्ष आम की फसल खरीदने हेतु खरीददार नहीं थे और इस वर्ष खरीददार होने पर आम की निम्न फसल है, जिससे वे काफी मायूस व हताश हैं। एक वर्ष आम की बंपर होती है तो अगले वर्ष फसल बिलकुल निम्न हो जाती है, हालात इस कद्र हो गए हैं कि क्षेत्र के ज्यादातर बागबानों ने आम की फसल से किनारा करते हुए अब इससे मुंह मोड़ते हुए लो हाइट सेब और लीची के बागीचों को लगाने की ओर रूख कर दिया है।

– गगन शर्मा, डैहर

आम के बागीचे हटाएं,  सेब-लीची लाएं

क्षेत्र के बागबानों द्वारा प्राकृतिक प्रकोप व बाजार में आम के कम दाम मिलने के बाद इस ओर रुझान खत्म हो रहा है। बागबानों ने भारी संख्या में आम के बागीचों को हटाकर अब लो हाइट सेब, लीची और नकदी फसलों की ओर रूख करना शुरू कर दिया है। बागबानों ने बताया कि आम की फसल के बाजार में निम्न दाम व प्राकृतिक प्रकापों के चलते उन्होंने अपने बागीचों को लो हाईट सेब ,लीची और नकदी फसलों की ओर करना शुरू कर दिया है। बाजार में गत वर्ष आम के भाव कौडि़यों के भाव बिकने के बाद फलों के राजा आम की बागीचों में दूर्दशा होने के बाद बागवान काफी आहात हुए थे।

क्या कहते हैं उद्यान विभाग के अधिकारी

उद्यान विभाग के विशेषज्ञ के अनुसार फलों के राजा आम की फसल में ऑन व ऑफ ईयर होता है। इसमें एक वर्ष में ऑन ईयर में आम की बंपर फसल और ऑफ ईयर में कम फसल होती है। इसके कारण एक वर्ष ज्यादा तो दूसरे वर्ष कम फसल पैदा होती है। फसल की कम पैदावार का दूसरा मुख्य कारण इस साल अत्यधिक मात्रा में वर्षा और ज्यादा ठंड है। इससे आम की फ्लावरिंग हेतु अनुकूल तापमान न होने के कारण आम की कम फ्लावारिंग हुई है।

पौधे के पास जमीन सूख रही है न… नो प्रोब्लम

डा. एचआर गौतम

नंबर – 94180-63751

इस मौसम में पौधों के आसपास कितना भी पानी लगाएं, कुछ समय बाद जमीन सूख जाती है। इससे फल सब्जियों को कई गंभीर बीमारियां लग जाती हैं। खासकर लहसुन जैसे फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। अपनी माटी के पास इस बार प्रदेश के सैकड़ों किसानों ने यह समस्या रखी है। इस पर हमारी टीम नौणी यूनिवर्सिटी पहुंची। यहां हमारी सहयोगी मोहिनी सूद ने प्रोफेसर गौतम से बात की। उन्होंने माना कि यह एक गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन व्हाइट पोलिथीन शीट इसमें कारगर हो सकती है। उन्होंने कहा कि पौधों में रोग लगने से बचने के लिए वाइट पॅलोथिन शीट का प्रयोग करें, जिससे पौधों को ढ़का जा सकता है, 4-5 हफ्तों तक इस पोलोथिन शीट से ढक कर रखना चाहिए। इस शीट से भूमि का तापमान 7-12 डिग्री सेल्सियस रहता है जिससे पौधे सुरक्षित रहता है । इसके बावजूद भी अगर पौधों में रोग के लक्षण नजर आते है तो रोगों के बारे में नौणी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से सलाह लें।

– मोहिनी सूद, नौणी

जनाब! यह मंदल सहकारी सभा की नई बिल्डिंग है

धर्मशाला। तस्वीर में नजर आ रहे भवन को आप कहीं होटल न समझ लेना। दरअसल, यह दि ढगवार-मंदल सहकारी सभा की नई बिल्डिंग है। यह सहकारी सभा गांव के बीचोंबीच स्थित है। ऐसे में इसका नया भवन हर किसी में आकर्षण का केंद्र बन गया है। सभा के सचिव नारायण स्वरूप (दौलत) ने बताया कि सभा के 900 से ज्यादा सदस्य हैं। उनके पास किसानों की जरूरत का हर सामान है। उनके पास डीजल और पेट्रोल से चलने वाले दोनों तरह के वीडर-टिल्लर उपलब्ध हैं। इसमें 6,8 और 9 हॉर्स पावर तक की मशीनों का हर स्पेयर पार्ट सभा के आउटलेट पर मौजूद है। इसके अलावा टीवी, फ्रिज, अल्मारी, बिजली का घरेलू सामान, एलईडी आदि भी हैं।

टिप्स – नारायण स्वरूप का मानना है कि किसी भी सहकारी सभा की कामयाबी में छोटे डिपोजिट का अहम रोल रहता है। छोटे किसानों को छोटी-छोटी बचत के प्रति प्रेरित करना होगा। जो सहकारी सभा लगातार नए सदस्य जोड़ती है, वह कभी नहीं पिछड़ सकती। 

-नारायण स्वरूप, (फोन नंबर- 94599 48511)

माटी के लाल

क्या आपने कभी देखी है बौनी हल्दी

पूर्व उपप्रधान प्रेमलाल

फोन नंबर : 7310-11406

ग्राम पंचायत कोठी के तहत फ्योड़ी त्यून खास के किसान व पूर्व उपप्रधान प्रेमलाल ने अपने खेतों में जैविक विधि से हल्दी तैयार की है। प्रेम लाल ने बताया कि पिछले वर्ष जिला कांगड़ा में एक किसान ने प्रगति नाम की हल्दी की फसल तैयार की थी उन्हीं के मार्गदर्शन में उन्होंने भी अपने खेतों में हल्दी बीजने की प्रेरणा ली। प्रेमलाल ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रगति नाम की बौनी प्रजाति किस्म की यह हल्दी 7 महीनों में तैयार हो जाती है व काफी अच्छी पैदावार होती है।  उन्होंने 100  रुपए प्रति किलो 40 किलोग्राम हल्दी बीज खरीदा था व लगभग 10 बिसवा भूमि में बिजाई की जिसके अच्छे परिणाम आए हैं। उन्होंने कहा कि जिन क्षेत्रों में जंगली जानवरों व ावारिस पशुओं का आतंक है वहां के किसान इस हल्दी व्यवसाय को अपनाकर अच्छी आजीविका कमा सकते हैं। अगर किसी किसान को इस हल्दी का बीज चाहिए तो वे इनसे संपर्क कर सकते हैं। इस कार्य के लिए उन्होंने कृषि विभाग व उद्यान विभाग ने भी उनके प्रयासों को भी सराहा है।

टिप्स : मैं किसान भाईयों यही कहना चाहूंगा कि फसल कोई भी है। अगर अच्छे से देखरेख करें तो मुनाफा ही देती है नुकसान नहीं।

– सुनील शर्मा कुठेड़ा

नकदी फसलों से अच्छी कमाई कर रहे हैं संगड़ाह के किसान

मटर 42 रुपए किलो बिकने से इलाके के अन्नदाता  खुश

उपमंडल संगड़ाह के किसानों द्वारा करीब तीन दशक पहले शुरू की गई नकदी फसलों अथवा सब्जियों की खेती हालांकि उस दौरान मंडियां दूर होने तथा यातायात के साधनों के अभाव में ज्यादा फायदेमंद साबित नहीं हो सकी, मगर पिछले दशक से यह फसलें क्षेत्र में आमदनी का मुख्य जरिया बन चुकी है। गेहूं, मक्की व धान जैसी परंपरागत फसलों के मुकाबले कई गुणा कम कृषि भूमि पर उगाई जाने वाली कैश क्रॉप से किसान इतनी कमाई कर लेते हैं कि उन्हें मजदूरी अथवा काम की तलाश में पलायन नहीं करना पड़ता। क्षेत्र में इन दिनों तैयार हो चुकी मटर की फसल के वाजिब दाम मिलने अथवा स्थानीय व्यापारियों द्वारा इसे करीब 42 रुपए किलो के भाव से खरीदे जाने से किसान काफी उत्साहित हैं। सुबह सूरज उगने से पहले ही किसान खेतों में मटर के तुड़ान अथवा इसकी फलियां निकालने पहुंच जाते हैं, ताकि इसे समय पर मार्किट पहुंचाया जा सके। कई व्यापारियों अथवा आढ़तियों द्वारा गांव से ही फसल खरीदने की भी व्यवस्था की गई है। मटर के अलावा इन दिनों लहसुन व गोभी के बीज की नकदी फसल में भी किसान व्यस्त हैं। कृषि विकास खंड संगड़ाह की शामरा पंचायत के किसानों के अनुसार इस बार पर्याप्त बारिश व बर्फबारी से इन सभी फसलों के बेहतर उत्पादन की उम्मीद है। मटर का उत्पादन अभी शुरू ही हुआ है। गोभी में फ्लावरिंग शुरू हो गई है तथा जल्द बीज तैयार हो जाएगा, जिसे उनसे सोलन की एक कंपनी खरीदती है। स्थानीय किसान सुशील पुंडीर, पंकज चौहान, हेतराम भारद्वाज व किरण आदि ने बताया कि नकदी फसलों से ही परिवार का साल भर का खर्चा चलता है।

-जय प्रकाश, संगड़ाह

बदलने लगा मेलों को स्वरूप

कुछ समय पहले तक अधिकतर मेले जहां पशुओं की मंडी के लिए जाने जाते थे, वहीं अब मेलों में कुश्तियां सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बनती जा रही हैं। शहरों के मेलों तक सीमित सांस्कृतिक संध्याओं का क्रेज अब गांव के मेलों तक भी पहुंच गया है। पालमपुर क्षेत्र में होली के आसपास से शुरू होने वाले मेले मई माह तक जारी रहते हैं। बुजुर्गों के अनुसार एक समय था जब इन मेलों में पशुओं का जमकर व्यापार होता था। अब तो क्षेत्र में बिरले ही ऐसे मेले रहे गए हैं जहां पर पशुओं का व्यापार होता है और जिन मेलों में अभी भी यह प्रथा जारी है वहां भी पशुओं की संख्या साल-दर-साल कम होती जा रही है। वहीं इन मेलों में कुश्तियों का आकर्षण लगातार बढ़ रहा है। इस कड़ी में पालमपुर होली मेले में शामिल की गई कुश्ती प्रतियोगिता ने तो कुछ ही समय में नए मुकाम हासिल कर कुश्ती को प्रोत्साहित किया है। इसी का परिणाम था कि कुछ साल पूर्व कुश्ती प्रतियागिता के विजेताओं को ईनाम देने के लिए डब्ल्यूडब्ल्यू-एफके पहलवान दिलीप सिंह राणा उर्फ खली विशेष तौर पर पालमपुर पहुंचे थे। उधर मेलों में महिला कुश्ती प्रतियोगिता का आगाज भी हो चुका है। महिला पहलवानों को भिड़ते देखने के लिए भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। मेलों में जिस तरह कुश्तियों के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है उससे स्थानीय युवा भी इस खेल की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उपमंडल के मेलों में अब सांस्कृतिक संध्याएं भी आयोजित की जाने लगी हैं। अब गांव स्तर तक भी सांस्कृतिक संध्याएं आयोजित की जा रही हैं जिनमें कलाकारों को प्रतिभा दिखाने का मौका मिल रहा है। पालमपुर के राज्य स्तरीय होली महोत्सव के साथ धीरा और सलियाणा मेलों में भी बड़े कलाकारों से सजी स्टार नाइट्स लोगों के आकर्षण का केंद्र बन रही हैं।

-जयदीप रिहान, पालमपुर

किसान बागबानों के सवाल

मेरे बागीचे में नींबू के 100 से ज्यादा पौधों को अमरबेल ने जकड़ लिया है। मुझे क्या करना पड़ेगा?

राजेंद्र सिंह, कुडू (देहरा, कांगड़ा)

अगर अमरबेल की जड़ नींबू के पौधे से 2 फीट की दूरी पर हो तो दवाई ग्लाइलफोसेट 41 एसएल का छिड़काव करें।

आप सवाल करो, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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