दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्

By: Apr 6th, 2019 12:07 am

-गतांक से आगे…

इत्युक्तवांतर्हितायां तु हृदये स्फुरितं तदा।

नाम्नां सहस्रं दुर्गायाः पृच्छते मे यदुक्तवान् ।। 11।।

मङ्गलानां मङ्गलं तद् दुर्गानाम सहस्रकम्।

सर्वाभीष्टप्रदां पुंसां ब्रवीम्यखिलकामदम्।। 12।।

दुर्गादेवी समाख्याता हिमवानृषिरुच्यते।

छंदोनुष्टुप जपो देव्याः प्रीतये क्रियते सदा।।13।।

ऋषिच्छंदांसि दृ अस्य श्रीदुर्गास्तोत्रमहामंत्रस्य।

हिमवान् ऋषिः। अनुष्टुप छंदः। दुर्गाभगवती देवता।

श्रीदुर्गाप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

श्रीभगवत्यै दुर्गायै नमः।

देवीध्यानम

ओउम हृं कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेंदुरेखां

शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहंतीं त्रिनेत्राम्।

सिंहस्कंधाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयंतीं

ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः।।

श्री जयदुर्गायै नमः।

ओउम शिवाऽथोमा रमा शक्तिरनंता निष्कलाऽमला।

शांता माहेश्वरी नित्या शाश्वता परमा क्षमा।। 1।।

अचिंत्या केवलानंता शिवात्मा परमात्मिका।

अनादिरव्यया शुद्धा सर्वज्ञा सर्वगाऽचला।। 2।।

एकानेकविभागस्था मायातीता सुनिर्मला।

महामाहेश्वरी सत्या महादेवी निरञ्जना।। 3।।

काष्ठा सर्वांतरस्थाऽपि चिच्छक्तिश्चात्रिलालिता।

सर्वा सर्वात्मिका विश्वा ज्योतीरूपाऽक्षराऽमृता।। 4।।

शांता प्रतिष्ठा सर्वेशा निवृत्तिरमृतप्रदा।

व्योममूर्तिर्व्योमसंस्था व्योमधाराऽच्युताऽतुला।। 5।।


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