निर्यात बढ़ाने की नई रणनीति

By: Apr 29th, 2019 12:07 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

 

यह सही है कि अमरीकी प्रशासन द्वारा कतिपय भारतीय वस्तुओं के किए जाने वाले निर्यात की प्राथमिकता को वापस लिए जाने के बाद निर्यात क्षेत्र को वापसी करना और भी मुश्किल होगा। यह बात देश के अभियांत्रिकी निर्यात के लिए खासतौर पर सही है क्योंकि उसे शून्य टैरिफ  वाले देशों से तगड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा। यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि इस समय अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ट्रेड वॉर का रुख चीन के बाद भारत की ओर मोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं…

हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने पिछले वित्त वर्ष 2018-19 से संबंधित भारत के विदेश व्यापार के आंकड़े जारी किए हैं। इनके मुताबिक वर्ष 2018-19 में भारत के निर्यात नौ फीसदी बढ़कर 331 अरब डालर पर पहुंच गए, यद्यपि निर्यात का यह रिकार्ड स्तर है ,लेकिन निर्यात के 350 अरब डालर के लक्ष्य से कम ही है। इसी तरह पिछले वित्त वर्ष में देश का आयात भी करीब नौ फीसदी बढ़कर 507 अरब डालर मूल्य का रहा। ऐसे में पिछले वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान व्यापार घाटा बढ़कर करीब 176 अरब डालर के रिकार्ड स्तर पर रहा, जो वर्ष 2017-18 में 162 अरब डालर था।

इसमें कोई दोमत नहीं कि इस समय देश के व्यापार घाटे के सामने एक बड़ी चुनौती अमरीका से उभरकर दिखाई दे रही है। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि भारत के द्वारा अमरीकी वस्तुओं पर अन्यायपूर्ण तरीके से आयात शुल्क लगाए गए हैं। अब अमरीका भी भारत को विभिन्न प्रकार की निर्यात संबंधी रियायतों पर नियंत्रण करेगा। अमरीका संभवतया मई 2019 के पहले सप्ताह में भारत को दी गई प्राथमिकताओं की सामान्यीकरण प्रणाली (जीएसपी) दर्जा समाप्त कर सकता है। अमरीका से मिली व्यापार छूट के तहत भारत से किए जाने वाले करीब 5.6 अरब डालर यानी 40 हजार करोड़ रुपए के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता है। अमरीका के द्वारा भारत से आयात को दी जा तरजीह बंद करने से भारत से निर्यात किए जाने वाले कपड़े, रेडीमेड कपड़े, रेशमी कपड़े, प्रोसेस्ड फूड,फुटवियर, प्लास्टिक प्रोडक्ट, इंजीनियरिंग उत्पाद, हैंड टूल्स, साइकिल के पुर्जों जैसी संबंधित औद्योगिक इकाइयों की मुश्किलें आएंगी। इन उद्योगों की मुश्किलें बढ़ने से इनमें कार्यरत हजारों लोगों के समक्ष नौकरियां जाने की चिंताएं भी खड़ी होंगी। यह सही है कि अमरीकी प्रशासन द्वारा कतिपय भारतीय वस्तुओं के किए जाने वाले निर्यात की प्राथमिकता को वापस लिए जाने के बाद निर्यात क्षेत्र को वापसी करना और भी मुश्किल होगा। यह बात देश के अभियांत्रिकी निर्यात के लिए खासतौर पर सही है क्योंकि उसे शून्य टैरिफ  वाले देशों से तगड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा। यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि इस समय अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ट्रेड वॉर का रुख चीन के बाद भारत की ओर मोड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।

चूंकि इस समय देश से निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की डगर पर कुछ और चुनौतियां भी दिखाई दे रही हैं। इन चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती पिछले दिनों यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, कनाडा, रूस, श्रीलंका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड ने अमरीका के साथ मिलकर  विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत की निर्यात संवर्धन योजनाओं के खिलाफ प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। भारत की निर्यात संवर्धन योजनाओं के विरोध में डब्ल्यूटीओ में जो आवाज उठाई गई है उसमें कहा गया है कि अब भारत अपने निर्यातकों के लिए सबसिडी योजनाएं लागू नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना डब्ल्यूटीओ के समझौते का उल्लंघन है।

निश्चित रूप से निर्यात परिदृश्य पर दिखाई दे रही मुश्किलों को दूर करना होगा। भारतीय निर्यातकों के संगठन फियो का कहना है कि भारत के मुकाबले कई छोटे-छोटे देश मसलन बांग्लादेश, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों ने अपने निर्यातकों को सुविधाओं का ढेर देकर भारतीय निर्यातकों के सामने कड़ी प्रतिस्पर्धा खड़ी कर दी है। निर्यातकों को वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) में रिफंड संबंधी जो कठिनाई आ रही है, उसे दूर किया जाना होगा। निर्यात को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिए और सभी निर्यातकों के लिए ब्याज सबसिडी बहाल की जानी चाहिए।  सरकार के द्वारा निर्यात वृद्धि के दीर्घकालिक प्रयासों के तहत निर्यात कारोबार का कमजोर बुनियादी ढांचा सुधारा जाना होगा। खासतौर से समुद्री व्यापार से संबंधित बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान देना होगा। विभिन्न क्षेत्रीय कारोबारी समूहों और मुक्त व्यापार समझौतों के क्षेत्र में पूरा नियंत्रण हासिल करना होगा। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के कई पड़ोसी देशों श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान को भारत के निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं। ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका में भी निर्यात बढ़ने की संभावना है। इसी तरह म्यांमार और मलेशिया सहित आसियान देशों को भी निर्यात बढ़ सकते हैं। इनके साथ-साथ कई विकसित देशों में भी भारत के निर्यात बढ़ने की संभावना दिखाई दे रही है।

जरूरी है कि सरकार के द्वारा अन्य देशों की गैर शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना होगा। तुलनात्मक रूप से कम उपयोगी आयातों पर कुछ नियंत्रण करना होगा, वहीं निर्यात की नई संभावनाएं खोजनी होंगी। इस समय भारत-चीन के बीच व्यापार बढ़ने और भारत से चीन को निर्यात बढ़ाने का जो नया परिदृश्य दिखाई दे रहा है, उसका भरपूर लाभ लिया जाना होगा। चीन को निर्यात बढ़ाने के लिए हमें चीन के बाजार में भारतीय सामान की पैठ बढ़ाने के लिए उन क्षेत्रों को समझना होगा, जहां चीन को गुणवत्तापूर्ण भारतीय सामान की दरकार है। वस्तुतः गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के मामले में भारत चीन से बहुत आगे है। चूंकि भारतीय उत्पाद गुणवत्ता और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी होते हैं। इसलिए यहां ऐसा कोई कारण नहीं है कि चीनी उपभोक्ता और कंपनियां इनकी खरीद नहीं कर सकती। देश से कृषि निर्यात की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। देश में खाद्यान्न, फलों और सब्जियों का उत्पादन हमारी खपत से बहुत ज्यादा है। इस तरह कृषि क्षेत्र में अतिशय उत्पादन देश के लिए निर्यात की नई संभावनाएं प्रस्तुत कर रहा है।

हम आशा करें कि सरकार के द्वारा वर्ष 2020 तक निर्यात बाजार में तेजी से आगे बढ़ने और वैश्विक निर्यात में भारत का हिस्सा दो फीसदी तक पहुंचाने के लिए निर्यात की नई संभावनाओं को साकार किया जाएगा तथा निर्यात के नए बाजारों में दस्तक दी जाएगी । हम आशा करें कि जब दुनिया में वैश्विक मंदी का परिदृश्य उभर रहा है और अमरीका के द्वारा ईरान से भारत के द्वारा कच्चे तेल के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के कारण कच्चे तेल की कीमतें एक बार फिर से बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं, तब भारत रणनीतिक रूप से निर्यात बढ़ाने तथा आयात नियंत्रण की उपयुक्त डगर पर आगे बढ़ेगा जिससे हमारे तेजी से बढ़ते हुए व्यापार घाटे में कमी आ सके।


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