पोलिथीन-प्लास्टिक का इस्तेमाल न करें

By: Apr 23rd, 2019 12:05 am

शिमला —विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के छात्रों ने सोमवार को लोगों को रैली निकाल कर अधिक से अधिक पौधारोपण, पोलिथीन, प्लास्टिक का उपयोग न करने और जल की एक-एक बंूद बचाने के लिए लोगों को जागरूक किया। प्रर्यावरण को संतुलित रखने के लिए वनों के साथ-साथ  जीव जंतु को बचाने का संदेश दिया। धरती पर जीवन के लिए प्राकृतिक संपदा को बनाए रखना जरूरी है। अपने स्वार्थ की वजह से लोग पृथ्वी का दोहन कर रहे हैं। पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन है, जिसे 22 अप्रैल को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है। इसी के तहत एचपीयू भूगोल विभाग के छात्रों ने सोमवार को पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य पर एचपीयू परिसर में रैली भी निकाली। इस रैली में छात्रों ने बढ-चढ़कर भाग लिया व लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक किया गया। इस मौके  पर छात्रों के लिए प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया। इसमें भाषण प्रतियोगिता व पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिताओं  में छात्रों ने बढ-चढ़कर भाग लिया। रैली के माध्यम से छात्रों ने वनों के अत्यधिक कटाव पर भी चिंता जताई है। छात्रों ने बताया कि अगर वनों का इसी तरह से कटाव होता जाएगा तो आने वाले समय में लोगों को साफ जीने के लिए वायु भी नहीं मिल पाएगी।

पृथ्वी दिवस मनाने का कारण

पृथ्वी बहुत ही सुंदर ग्रह है जिसका एक बड़ा भाग पानी से ढका हुआ है, जिसको पानी की अधिकता के कारण ब्लू प्लानेट के रूप में भी जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यह सुंदर ग्रह अब खतरे में नजर आ रहा है, जिसको बचाने के लिए पृथ्वी दिवस जैसे जागरूक कार्यक्रम करने की आवश्यकता है।

साइकिग का प्रयोग करने की दी सलाह

भूगोल विभाग के छात्रों ने पृथ्वी दिवस के मौके पर लोगों को पर्यावारण को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए लोगों को साइकिलिंग करने की सलाह दी है। 

लोगों को किया जागरूक

पृथ्वी दिवस  के मौके पर एचपीयू के भूगोल विषय के छात्रों ने पर्यावरण में विलुप्त होती जा रही प्रजातियों पर चिंता जताई है। लोगों व सरकार से अपील की है कि वनों को न काटें, पर्यावरण में रहने वाले जानवरों, जीव जंतुओं के लिए भी उचित आवास की जरूरत होती है।

पर्यावरण को नष्ट करने वाले कारक

पोलिथीन पृथ्वी के लिए सबसे घातक है, पेड़ों को काटना और नदियों, तालाबों को गंदा करना लोगों के दैनिक जीवन का मानो हिस्सा ही बन गया है। विश्व का मानव संसाधन पर्यावरण जैसे मुद्दों के प्रति कम जागरूक है। 


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