प्रशासनिक ट्रिब्यूनल भंग करने की तैयारी

By: Apr 28th, 2019 12:03 am

सिफारिशों के बाद भी प्रदेश सरकार ने रोकी सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया

 शिमला -राज्य सरकार ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को भंग करने की गुपचुप तैयारी कर ली है। चयन समिति की सिफारिशों के बावजूद सरकार ने हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया को रोक दिया है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने दो सदस्यों की नियुक्ति की फाइल सरकार को भेजी है। अंतिम मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाने वाली इस फाइल को प्रदेश सरकार ने एक माह से अपने पास रोक रखा है। इसके चलते प्रदेश के सचिवालयों में यह चर्चा तूल पकड़ रही है कि भाजपा सरकार एक बार फिर प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को भंग कर सकती है। बताते चलें कि पहली सितंबर, 1986 को गठित हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को धूमल सरकार ने 2008-09 में खत्म कर दिया था। राज्य के कर्मचारियों की मांग के चलते वीरभद्र सरकार ने इसे फरवरी, 2015 में दोबारा गठित किया था। जयराम सरकार ने सत्ता में काबिज होने के बाद प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के धर्मशाला तथा मंडी में सर्किट बेंच स्थापित करने के संकेत दिए थे। इस कड़ी में दोनों ही शहरों में भूमि चयन प्रक्रिया शुरू की गई है। अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि मंडी में सर्किट बेंच के लिए लैंड बैंक भी फाइनल कर लिया गया है। धर्मशाला में भी इसकी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इसी बीच जयराम सरकार ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के दो सदस्यों के रिक्त पदों की भर्ती प्रक्रिया भी आरंभ की है। इसके तहत हाइकोर्ट के मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली कमेटी ने दो सदस्यों के नामों पर मुहर लगा कर फाइल सरकार को भेजी थी।

कमेटी ने बाल्दी नंदा के सुझाए नाम

प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के लिए मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डा. श्रीकांत बाल्दी और एसीएस मनीषा नंदा के नामों की चयन समिति ने सिफारिश की है। श्रीकांत बाल्दी दिसंबर माह में तथा मनीषा नंदा मई माह में रिटायर हो रही हैं। इन दोनों अधिकारियों के नाम तय किए जाने के बावजूद प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की फाइल रोक दी गई है।

कोर्ट में निपटाने पड़ेंगे सर्विस मैटर

प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के भंग होने पर हिमाचल के अधिकारी-कर्मचारियों को अपने सर्विस मैटर के लिए प्रदेश उच्च न्यायालय पर निर्भर रहना होगा। इस परिस्थिति में तबादला आदेशों से लेकर सर्विस के छोटे-छोटे मुद्दों को भी हाइकोर्ट में ले जाना पडे़गा। जाहिर है कि प्रदेश के कर्मचारियों के लिए प्रशासनिक ट्रिब्यूनल राहत का सबसे बड़ा दरबार है।

चुनाव तक रोकी जा सकती है फाइल

पुख्ता सूचना के अनुसार प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की फाइल लोकसभा चुनावों तक रोकी गई है। इसके बाद यह मामला सितंबर-अक्तूबर में प्रस्तावित इन्वेस्टर मीट तक लटकाया जा सकता है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि हिमाचल में आईएएस अधिकारियों का टोटा है। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापसी के लिए अफसरशाही कम दिलचस्पी दिखा रही है। इसी साल 15 आईएएस अफसरों की रिटायरमेंट है।


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