बैंकिंग फ्रॉड की बढ़ती समस्या

By: Apr 25th, 2019 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

बैंकिंग व्यवस्था में सेंध लगाने वाले हैकर्स और साइबर अपराधियों से आम नागरिकों को होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए विशेष उपाय खोजने की जरूरत भी है। बैंकिंग सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों और अफसरों की कुछ समस्याएं भी हैं, जिनका समाधान होना अनिवार्य है…

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में नादौन के गांव कुलहेड़ा की महिला के बैंक खाते से शातिरों ने करीब पौने सात लाख रुपए उड़ा लिए, तो दिसंबर 2018 में बैजनाथ में सुशीला नामक महिला द्वारा एटीएम निकासी के कुछ देर बाद ही 47 हजार रुपए की निकासी हो गई। बैंक फ्रॉड के ऐसे अनेक मामलों की खबरें आए दिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं, लेकिन नागरिकों को फिर भी ठगी से राहत मिलती नहीं दिखती। 2017 में 18 फीसदी भारतीय ऑनलाइन ठगी के शिकार हुए थे। सरकार चाहती है कि डिजिटल लेन-देन बढ़े, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग की बारीकियों से अनजान अधिकांश भारतीय जगह-जगह रोजाना लूटे-ठगे जा रहे हैं। 2014 से 2017 के बीच ही प्राइवेट बैंकों में 4156 और सरकारी बैंकों में धोखाधड़ी के कुल 8622 मामले सामने आ चुके हैं। आम भारतीय नागरिक बैंकों में खाता इसलिए खोलते हैं, ताकि उनकी जमा पूंजी सुरक्षित भी रहे और उन्हें उस पर कुछ ब्याज भी मिल जाए, लेकिन बढ़ते बैंकिंग साइबर धोखाधड़ी के मामलों के चलते आम ग्राहकों की नींद उड़ी हुई है। वित्तीय समावेशन को लेकर शुरू की गई प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अंतर्गत अभी तक कुल 35 करोड़ 39 लाख खाते खुल चुके हैं और लगभग 97 हजार 665 करोड़ रुपए इन बैंक खातों में जमा हुए हैं। 2014 में भारत में 53 प्रतिशत लोगों के बैंक खाते थे और उनमें से भी मात्र 15 फीसदी खातों से ही वित्तीय लेन-देन होता था, लिहाजा इसमें भी सुधार की गुंजाइश है।

पिछले कुछ वर्षों से सभी प्रकार की अनुदान योजनाओं के रुपए, विद्यार्थियों की छात्रवृत्तियां और सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किए जा रहे हैं, जो एक सराहनीय कदम है। कुछ मामलों में कम आय वर्ग के नागरिकों एवं विद्यार्थियों के लिए बैंकिंग सिस्टम बेहद घाटे का सौदा साबित हो रहा है, क्योंकि बैंकों द्वारा खातों में न्यूनतम धनराशि रखने की बाध्यता के कारण वसूले जाने वाले जुर्माने के चलते नागरिकों के खातों से बैंकों द्वारा जमकर लूटपाट की जा रही है। 3  अगस्त, 2018 को वित्त मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार वर्ष 2017-18 की अवधि में खातों में न्यूनतम धनराशि न रहने पर जुर्माने के रूप में अकेले भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 2433.9 करोड़ रुपए, एफडीएफसी द्वारा 590.8 करोड़, एक्सिस बैंक ने 530 करोड़,  आईसीआईसीआई बैंक ने 317.6 करोड़, पंजाब नेशनल बैंक द्वारा 210.8 करोड़ रुपए, तो सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 173.9 करोड़ रुपए सहित भारत के प्रमुख बैंकों द्वारा लगभग 5000 करोड़ रुपए की मोटी रकम आम गरीब खाताधारकों के खातों से उड़ा ली गई। इतना ही नहीं, एटीएम से लोगों द्वारा किए जाने वाले अतिरिक्त ट्रांजेक्शन के नाम पर 4145 करोड़ रुपए की वसूली भारतीय बैंकों द्वारा की गई है और यह मार भी गरीब एवं मध्यम वर्गीय लोगों पर ही पड़ती है। इसके अलावा इस समय सर्विस एवं वार्षिक शुल्क और रख-रखाव के नाम पर तिमाही, अर्धवार्षिक और वार्षिक शुल्क के नाम पर भी सभी बैंकों द्वारा सालाना करोड़ों रुपए की बिना बताए उगाही कर गरीब जनता और विद्यार्थियों के खातों को शून्य पर लाकर रख दिया जाता है, तो वहीं एसएमएस एवं अन्य सेवाएं भी पूरी तरह से नहीं मिलती हैं। सरकार द्वारा शिकायत एवं निगरानी प्रकोष्ठ की व्यवस्था भी की गई है, लेकिन इस बात से सभी भलीभांति परिचित हैं कि भारत में लंबी कागजी प्रक्रिया के चलते लोगों को न्याय नहीं मिलता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में बैंकिंग उद्योग का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। विश्वभर में सबसे ज्यादा बैंक शाखाएं भारत में हैं। केंद्र सरकार और वित्त मंत्रालय के उच्च अधिकारियों को यह सुनिश्चित बनाना होगा कि भारत में अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई को कैसे पाटा जाए और बढ़ती आर्थिक असमानता पर कैसे रोक लगाई जा सकती है। वित्त मंत्रालय को बैंकों की लूट और मनमानी पर रोक लगाने के साथ-साथ पूंजीपतियों और बड़े उद्योगपतियों द्वारा बैंक से  उठाए गए मोटे ऋणों की वसूली पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि बैंकों के बढ़ते एनपीए पर लगाम लगाई जा सके। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को दुर्गम और ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाओं की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में तो प्रायः एटीएम को लूटने की वारदातें सामने आती ही रहती हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के उपाय भी करने होंगे। बैंकों की नई शाखाएं खोलने के साथ ही अधिकारियों और कर्मचारियों की नई नियुक्तियां करने की भी नितांत आवश्यकता है। केंद्र एवं राज्य सरकारों को अर्धशिक्षित एवं अपना अधिकतर लेन-देन नकदी में करने वाले नागरिकों को कैशलेस व्यवस्था अपनाने के लिए प्रेरित करने को विशेष अभियान शुरू करने की जरूरत है।

साथ ही बैंकिंग व्यवस्था में सेंध लगाने वाले हैकर्स और साइबर अपराधियों से आम नागरिकों को होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए विशेष उपाय खोजने की जरूरत भी है। बैंकिंग सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों और अफसरों की कुछ समस्याएं भी हैं, जिनका समाधान होना अनिवार्य है। कर्मचारियों को नवंबर 2017 से मिलने वाले वेतन रिवीजन का लाभ अभी तक नहीं मिला है।

हाल ही में दिसंबर 2018 में यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन ने बैंकों के पारस्परिक विलय के विरोध में, पे-रिवीजन में देरी और बैंकों में बढ़ते कामकाज के दबाव के विरोध में हड़ताल की थी। आज भी बड़ी संख्या में राज्य एवं केंद्र सरकारों के पेंशनर्स पहली तारीख को सुबह ही बैंकों के दरवाजों पर स्वयं अपनी पेंशन का भुगतान प्राप्त करने के लिए लाइन में खड़े मिल जाएंगे, क्योंकि उन्हें वित्तीय असुरक्षा के चलते एटीएम कार्ड जैसी सामान्य सुविधाओं पर भी भरोसा नहीं है। उनमें इस भरोसे को बहाल करने की आवश्यकता है। अच्छी बैंकिंग सेवाएं एवं सहूलियतें आज समृद्ध भारत और भारतीयों की आर्थिक मजबूती के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, लिहाजा इन सेवाओं को किस प्रकार से और आकर्षक बनाया जा सकता है, इस पर त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।


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