माता-पिता का कर्ज
माता-पिता और बच्चों का संबंध अनादि काल से है। माता-पिता और बच्चों के संबंध को आदर्श बनाने के प्रयत्न आपको हर कहीं देखने को मिलते हैं, लेकिन क्या आज कल की युवा पीढ़ी इस रिश्ते को समझती है। मुझे लगता है, बड़ा कम। मैं किसी काम के सिलसिले सें पड़ोस के घर गई थी। उनकी बड़ी बेटी +2 में पढ़़ती है। उसकी और उसकी माता की कहासुनी चली हुई थी, तो उस कहासुनी में बेटी मां को बोलती है कि तुमने हमारे लिए किया ही क्या। और मैं सुन कर वहीं सन्न, कि यह क्या बोल रही है। और जब मां ने यह शब्द सुने वह रो पड़ी। और बोली सही बोल रही है बेटी तुम कि हमने तेरे लिए किया भी क्या। पिता तुम्हारे प्र्राइवेट जॉब करते हैं, घर से बाहर रहते हैं। किसके लिए और तुम बोल रही हो आपने किया ही क्या। मैं सुबह से लेकर शाम तक खेतों में, घर के काम में लगी रहती हूं किसके लिए …। उस मां का हृदय कौन पूछे जिसने खुद कष्ट झेल कर बच्चों की परवरिश की होती है और बदले में जब जवाब आता है कि आपने हमारे लिए किया क्या मेरा सभी बच्चों से अनुरोध है कि अपने माता-पिता को ऐसा जवाब न दें जिससे उन्हें अपनी परवरिश में शर्म आए और मां-बाप का कर्ज तो आजतक कोई नहीं चुका सका। माता-पिता को कभी दुखी नहीं करना चाहिए क्योंकि वह हमेशा अपने बच्चों का भला सोचते हैं उनके गुस्से में भी ममता भरी होती है।
– आंचल, मंडी
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