वन संपदा की रखवाली करने वालों के पास गाडि़यां नहीं

By: Apr 18th, 2019 12:05 am

पांवटा साहिब—प्रदेश में करोड़ों-अरबों रुपए की वन संपदा की रक्षा रामभरोसे ही है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योकि इन वनों की सुरक्षा का जिम्मा जिस वन विभाग के पास है उनके पास न तो वनों की सुरक्षा करने के लिए हथियार हैं और न ही पेट्रोलिंग के लिए वाहन। सुविधाओं के अभाव में बेशकीमती वनों की सुरक्षा की उम्मीद रखना ऐसे में बेमानी ही है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश में वन विभाग सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। यही हाल पांवटा साहिब का भी है। यहां पर वन मंडल पांवटा के तहत पड़ने वाले चार वन रेंज मंे पेट्रोलिंग के लिए कोई सरकारी वाहन की सुविधा नहीं है। सिर्फ मंडल कार्यालय में डीएफओ के पास एक वाहन है। जब अधिकारियों को जंगलों में निरीक्षण के लिए जाना पड़ता है तो उन्हें किराए पर गाडि़यां लेनी पड़ती हैं। पकड़ी गई लकडि़यों के लिए भी किराए की गाड़ी मंगवानी पड़ती है। बिना हथियारों के तो पहले ही वनों की सुरक्षा करने वाले कर्मी हैं। साथ ही जंगलों मंे पेट्रोलिंग के लिए वाहन की कमी भी विभाग को खल रही है। पांवटा वन मंडल के तहत चार वन रेंज आते हैं, जिसमें पांवटा साहिब, माजरा, भंगानी व गिरिनगर वन रेंज हैं। पूरे पांवटा को 14 ब्लॉक में बांटा गया है, जिसमें 58 बीट हैं। पांवटा वन मंडल का दायरा करीब 48 हजार हेक्टेयर मंे फैला हुआ है जो काफी विस्तृत है। यही नहीं यह वन मंडल सीमांत हैं और उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाओं को छूता है। ऐसे मंे यहां पर इंटर स्टेट वन माफिया भी काफी सक्रिय रहते हैं। यहां पर ज्यादातर साल और खैर की बेशकीमती लकडि़यों के घने जंगल हैं। इसके साथ ही पांवटा के जंगलों को अवैध शराब बनाने वालों ने भी अपना ठिकाना बनाया हुआ है। ऐसे में सुविधाओं के अभाव में वन विभाग कितना कार्य कर सकता है। इसका अंदाजा स्वयं ही लगाया जा सकता है। जानकारों की मानंे तो यदि पांवटा वन मंडल के तहत आने वाली करोड़ों रुपए की वन संपदा की सही ढंग से हिफाजत करनी हो तो विभागीय कर्मियों को सुविधाएं देनी पड़ेगी। सरकार को यहां पर हर रेंज में एक एक वाहन समेत फोरेस्ट गार्ड व कर्मियों को हथियारों से लैस करना होगा तभी वन माफियाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है। उधर, इस बारे वन मंडल पांवटा के डीएफओ कुनाल अंग्रिश ने बताया कि पांवटा वन मंडल सीमांत होने के कारण संवेदनशील है। हालांकि उनके कर्मचारी स्तर्क हैं और दिन-रात ड्यूटी कर जंगलों की रखवाली कर रहे हैं। फिर भी यहां पर सरकार व विभाग से जरूरी सुविधाओं को बढ़ाने की मांग की गई है।


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