शूलिनी माता मंदिर

By: Apr 6th, 2019 12:07 am

शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है। कहते हैं जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि-मुनि तंग हो गए थे, तो वे भगवान शिव और विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी थी। तो भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा प्रकट हुई थी। जिससे सभी देवता खुश हो गए थे और अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट करके दुर्गा मां का सम्मान किया था। इसके बाद भगवान शिव ने त्रिशूल से एक  शूल देवी मां को भेंट किया था, जिसकी वजह से देवी दुर्गा मां का नाम शूलिनी पड़ा था…

पहाड़ी राज्य हिमाचल देवभूमि के रूप में विख्यात है, क्योंकि यहां  पर असंख्य देवी-देवताओं के प्राचीन ऐतिहासिक पावन स्थल मौजूद हैं, इसीलिए इनके दर्शनों को हर मौसम में बड़ी संख्या में देश-विदेश से भक्त यहां पहुंचते हैं। हिमाचल प्रदेश में देवी-देवताओं के बहुत से मंदिर हैं और हर मंदिर का अपना अलग महत्त्व है। राजधानी शिमला का नाम मां श्यामा (श्यामला)काली के नाम पर पड़ा है। इसी प्रकार कालका व शिमला के मध्य बसे सोलन का नाम मां शूलिनी देवी के नाम पर पड़ा। माता शूलिनी सोलन की अधिष्ठात्री देवी हैं। देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा के असंख्य नामों में शूलिनी नाम भी  शामिल है। दशम गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी शूलिनी नाम से ही देवी की आराधना की है। मां शूलिनी की अन्य बहनें  हैंः हिंगलाज, लुगासनी, जेठ ज्वाला, नाग देवी, नैना देवी, तारा देवी। इन सभी को  ही दुर्गावतार माना गया है। माता शूलिनी साक्षात देवी मां दुर्गा का स्वरूप है। शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है। कहते हैं जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि- मुनि तंग हो गए थे, तो वे भगवान शिव और विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी थी। तो भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा प्रकट हुई थी। जिससे सभी देवता खुश हो गए थे और अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट करके दुर्गा मां का सम्मान किया था। इसके बाद भगवान शिव ने त्रिशूल से एक शूल देवी मां को भेंट किया था, जिसकी वजह से देवी दुर्गा मां का नाम शूलिनी पड़ा था। ये वही त्रिशूल है, जिससे मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था जोकि मां शूलिनी की अपार कृपा से दिन-प्रतिदिन समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है। सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करता था। इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी तदोपरांत कोटी और बाद में सोलन बनी। राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे। रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है। जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे। बदलते समय के दौरान यह मेला आज भी अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार चल रहा है। माता शूलिनी के इस मंदिर का पुराना इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। बघाट रियासत के लोग माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते थे, तभी से माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों के लिए उनकी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। वर्तमान समय में माता शूलिनी का भव्य मंदिर सोलन शहर के दक्षिण दिशा में बना हुआ है। इस मंदिर के अंदर माता शूलिनी के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती है जैसे कि शिरगुल देवता,माली देवता इत्यादि तथा मंदिर के अंदर इनकी बड़ी प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं। कहते हैं कि इस मेले के जरिये मां शूलिनी शहर के भ्रमण पर निकलती हैं और जब वापस आती हैं, तो अपनी बहन के पास दो दिन के लिए रुकती हैं। इसके बाद मां शूलिनी मंदिर वापस आती है, यही वजह है कि मेले का आयोजन किया जाता है। साथ ही पूरे शहर में भंडारों का आयोजन भी किया जाता है। हर साल मेले की शुरुआत मां शूलिनी देवी की शोभा यात्रा से होती है, जिसमें माता की पालकी के अलावा विभिन्न धार्मिक झांकियां भी निकाली जाती हैं। इस यात्रा में हजारों की संख्या में लोग माता शूलिनी के दर्शन करके सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां शूलिनी के दर से कोई भक्त निराश नहीं लौटता,  क्योंकि शिव की शक्ति होने से देवी शूलिनी भी दया व कृपा  ही बरसाती हैं। नवरात्रों में लाखों भक्त मां के दरबार में नतमस्तक होने पहुंचते हैं।


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