By: Apr 12th, 2019 12:10 am

वन अधिकार को सड़कों पर मंडी

मंडी—भारत के 17वें लोकसभा चुनाव के माहौल में क्षेत्रफल के हिसाब से हिमाचल के सबसे बड़े संसदीय निर्वाचन क्षेत्र मंडी में वन अधिकार कानून के लिए 600 से ज्यादा लोग सड़क पर उतरे। हिमाचल वन अधिकार मंच के संयोजक अक्षय जसरोटिया ने कहा कि वन भूमि पर अपनी रोजमर्रा की जरूरतों व आजीविका के लिए निर्भर समुदायों के हितों एवं हकों की रक्षा के साथ-साथ उनको कानूनी मान्यता देने के लिए वन अधिकार कानून को भारत की संसद ने 2006 में पारित किया था। 10 वर्षों में पूरे देश में लाखों लोगों को वन अधिकार कानून के तहत फायदा मिला है, जबकि हिमाचल प्रदेश में अभी तक केवल 129 दावों को ही मान्यता मिली है। प्रदेश के भीतर भी किन्नौर, लाहुल-स्पीति और कांगड़ा में कम से कम दावे तो किए गए हैं, जबकि  मंडी जिला का मामला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यहां 2014 से प्रशासन ने सभी गांवों की वन समितियों से शून्य दावों के प्रमाण पत्र लिए हैं, जो दर्शाता है कि इस कानून के तहत लोगों का कोई दावा नहीं है। संयोजक अक्षय जसरोटिया ने बताया यह कदम जिला उपायुक्त ने प्रिंसीपल सेक्रेटरी (वन) द्वारा जून, 2014 में जारी प्रपत्रों के आधार पर उठाया था। उन्होंने कहा कि हम इन प्रपत्रों को खारिज करने के लिए लगातार मांग उठा रहे हैं, क्योंकि ये प्रपत्र वन अधिकार कानून का उल्लंघन करते हैं। श्याम सिंह चौहान करसोग जिला परिषद सदस्य ने इस दौरान बताया कि उन्होंने जनवरी में इस कानून के तहत गठित राज्य स्तरीय निगरानी समिति को इन शून्य दावों के प्रपत्रों पर ज्ञापन लिखा था। समिति ने 15 जनवरी की अपनी बैठक में यह कहा था कि इस प्रपत्रों की वजह से कानून लागू करने में गड़बड़ हुई है और राजस्व तथा वन विभाग को कानून की धारा 3 (1) के तहत अधिकारों को मान्यता देने पर तुरंत कार्रवाई के आदेश देने का निर्णय लिया था। इस पर पिछले 3 महीनों में कार्रवाई नहीं हुई। हिमधरा समूह के कार्यकर्ता प्रकाश भंडारी, लाहुल स्पीति संस्था के अध्यक्ष प्रेम कटोच सहित मंच के अन्य पदाधिकारी भी शामिल रहे। इसके बाद मंच ने अतिरिक्त उपायुक्त के माध्यम से ज्ञापन भी सौंपा।

इन धाराओं का दिया हवाला

राज्य में लाखों परिवार खेती और रिहायश के लिए दिसंबर 2005 से पहले से वन भूमि पर बिना पट्टे के काबिज हैं।  ऐसे परिवारों पर बेदखली का खतरा मंडराता रहता है। ऐसे परिवार इस कानून की धारा 3(1) के तहत हकदार हो सकते हैं। साथ ही अपने गुजर बसर के लिए वन भूमि पर लकड़ी, पत्ती, घास, जड़ींं—बूटी, खड्ड, नाले, रेत बजरी आदि के लिए कानून की धारा 3 (1) के तहत ग्राम सभा को सामूहिक वन अधिकार के लिए दावा पेश कर सकते हैं।


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