अस्पतालों से नशेडि़यों का रिकार्ड तलब

By: May 21st, 2019 12:15 am

शिमला –सभी जिलों में अब नशा निवारण केंद्र खोलने की प्रकिया शुरू कर दी गई है। काफी समय से लटके पड़े इन केंद्रों के बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है, जिसके बाद अब जिला सीएमओ से यह डाटा इकट्ठा किया जा रहा है कि संबंधित जिला अस्पतालों में नशेडि़यों की संख्या आखिर कितनी संख्या में अस्पताल पहुंच रही है। इसके बाद कार्यक्रम का एक प्रस्ताव अस्पताल प्रशासन द्वारा तैयार किया जाएगा। प्रदेश के सभी जिलों में नशा निवारण केंद्र की तस्वीर पर गौर करें, तो अभी तक सभी स्थानों पर केंद्र ही नहीं खुल पाए हैं। प्रदेश सरकार के बार-बार घोषणा करने के बावजूद सभी जिलों में ये केंद्र मात्र फाइलों में ही दफन हो कर रह गए। अब फिर से इस प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने पर विचार किया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक सभी जिलों में ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर खोले जाने क ी योजना गत पांच वर्षों से तो तैयार की गई, लेकिन कई वर्षों से यह अभी तक सिरे ही नहीं चढ़ पाई है। इसके लिए प्रदेश महिला आयोग ने सरकार को पत्र भी लिखा था, जिसमें साफ किया गया था कि यदि ये केंद्र नहीं खोले गए, तो राज्य में नशेडि़यों के ग्राफ में बढ़ोतरी देखी जाएगी। उधर, प्रदेश सरकार को आयोग ने यह पत्र लिखा था कि कई बार हुई घोषणाआें के बावजूद प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर नहीं खुल पाए हैं। नतीजा यह हुआ है कि प्रदेश में हर वर्ष 50 परिवार नशे के कारण टूट रहे हैं। प्रदेश महिला आयोग ने इसे लेकर चिंता जाहिर की थी, जिस पर अब स्वास्थ्य विभाग काम कर रहा है। आयोग के आंकड़ों पर गौर करें, तो पत्नी की शिकायत सबसे ज्यादा यह रहती है कि पति नशा करता है और उसके कारण वह जो कमाता है, उसे नशे में ही उड़ा देता है। आयोग के पूर्व सचिव द्वारा लिखे गए पत्र में यह साफ कहा गया था कि सभी जिला और जोनल अस्पतालों में नशा निवारण केंद्र खोले जाएं।

अभी सारा दबाव आईजीएमसी पर

अभी प्रदेश के कोने-कोने से नशा छुड़वाने के लिए प्रभावित आईजीएमसी आ रहे हैं। प्रति माह सौ लोग अस्पताल आ रहे हैं। मनोविभाग के पास काम का पहले ही काफी दबाव रहता है उसके साथ ही नशा छुड़वाने आए प्रभावितों का इलाज भी किया जाता है। आयोग ने साफ किया है कि यदि राज्य में जिलों के अस्पतालों में नशा निवारण केंद्र खोले जाते हैं, तो उससे प्रभावित को नशे से दूर किया जा सकता है और टूट रहे परिवारों को बचाया जा सकता है।


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