एचपीयू…पीएचडी दाखिले पर एसएफआई लाल

By: May 22nd, 2019 12:10 am

शिमला—हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में मंगलवार को विश्वविद्यालय की एसएफ आई की रिसर्च स्कॉलर इकाई ने एक प्रेस कान्फ्रेंस का आयोजन किया। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस विश्वविद्यालय में फर्जी तरीके से पीएचडी में प्रवेश दिलाने और विश्वविद्यालय की रैंकिंग में भारी गिरावट आने के विरोध में की गई। एसएफआई रिसर्च स्कॉलर इकाई का मानना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन लगातार गैर कानूनी तरीकों से व नियमों को नजरअंदाज करके विश्वविद्यालय में अपनी मनमानी कर रहा है। फर्जी प्रवेश और फिर पीएचडी की थीसिस मात्र 11 महीने में जमा करवाना जैसे मामले सामने आए हैं। इस निंदनीय कार्य से पूरे प्रदेश विश्वविद्यालय की किरकिरी हुई है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का आर्डिनेंस 16.13(ड्ड) भी यह कहता है कि पीएचडी की न्यूनतम अवधि तीन वर्ष होनी चाहिए, परंतु आर्डिनेंस को पूर्णतः दरकिनार किया गया। इसके साथ ही विश्विद्यालय में इन धांधलियों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। अधिष्ठाता अध्ययन पर भी छात्र संघ ने आरोप लगाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में पीएचडी में टीचर के प्रवेश के लिए साफ  नियम हैं, जिसके तहत अगर पीएचडी की कोई भी सीट विश्वविद्यालय का कोई भी विभाग भरता है तो उसे विज्ञापित किया जाना चाहिए। ऐसे में एसएफआई ने उन पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने नियमों के बाहर जाकर पीएचडी में प्रवेश दिलाया गया है। ऐसा करके प्रदेश के कालेजों में सेवाएं देने वाले अध्यापकों के साथ सरासर बेइमानी और धोखा किया जा रहा है। एसएफआई रिसर्च स्कॉलर इकाई ने बताया कि यह धोखाधड़ी एक बेलगाम घोड़े की तरह लगातार चलती ही जा रही है। निजी महाविद्यालय में ही पढ़ रहे व्यक्ति को पास्ट प्रेक्टिस के आधार पर पीएचडी में टीचर कोटे से प्रवेश के लिए अनुमति दी जा चुकी है। एसएफआई रिसर्च स्कॉलर इकाई का कहना है कि वर्तमान के अधिष्ठाता जब से विश्वविद्यालय में अध्यापन के पद पर आसीन हुए हैं तभी से अध्यापन कार्य कम और धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार करते हुए अधिक पाए गए हैं। वहीं संघ ने बताया कि जब एमसीए करने के लिए ग्रेजुएशन में गणित विषय पढ़ा होना अनिवार्य होना चाहिए तो कॉमर्स पढ़े व्यक्ति को प्रवेश कैसे दिया जा सकता है। इस तरह की कार्य प्रणाली अध्यापक जैसे गरिमामयी पद को शर्मसार कर रही है। इसके साथ शोध छात्र संघ ने कहा कि विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर साइंस विभाग में भी एक मामला सामने आया है।  जिसमंे  पीएचडी भी सवाल के घेरे में हैं। संघ ने कहा है कि पीएचडी में एनरोलमेंट 18/04/2007 में अधिष्ठाता अध्ययन के अधीन हुई, जबकि उनकी एमएससी कम्प्यूटर साइंस एमडी यूनिवर्सिटी रोहतक से जून 2008 में पूरी हुई है। शोध छात्र संघ का मानना है कि विश्वविद्यालय शोध और संवाद परिसंवाद के लिए जाना जाता है। किंतु जिस तरीके से अयोग्य व्यक्तियों को पीएचडी में प्रवेश दिया जा रहा है उससे शोध के सत्र में गिरावट आना लाजमी है। शोध छात्र संघ ने मांग की है कि डीएस के खिलाफ उचित कार्रवाई करते हुए उन्हें उनके पद से बर्खास्त किया जाए। संघ ने मांग की है कि उपरोक्त सभी मामलों पर जांच कमेटी बिठाई जाए। साथ ही दोषियों के खिलाफ  उचित कार्रवाई की जाए।


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