केजरीवाल पर बार-बार हमले क्यों

By: May 7th, 2019 12:05 am

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक रोड शो के दौरान थप्पड़ रसीद करना उन पर 9वां हमला था। खुद केजरीवाल ने भी इसका खुलासा किया है। कभी उन पर स्याही फेंकी गई, तो कभी जूता उछाला गया, कभी लाल मिर्च का पाउडर फेंका गया। एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर थप्पड़ मारना न केवल घोर अलोकतांत्रिक है, बल्कि हिंसात्मक प्रयास भी है। यह राजनीतिक असहमति या विरोध की शैली भी नहीं है। हमारा देश कोई ‘केला गणतंत्र’ नहीं है, लेकिन बड़ा और महत्त्वपूर्ण सवाल मुख्यमंत्री की सुरक्षा का है। केजरीवाल को जेड श्रेणी की सुरक्षा हासिल है। उनकी सुरक्षा में तीन पीएसओ हमेशा तैनात रहे हैं। एक एस्कॉर्ट और एक पायलट गाड़ी हमेशा चलती है। रोड शो के दौरान मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए 21 पुलिसकर्मियों का स्टाफ भी तैनात किया गया था। ऐसे सुरक्षा-चक्र के बावजूद एक आम नागरिक रोड शो के दौरान ही मुख्यमंत्री के वाहन पर चढ़ जाए और उनके चेहरे पर थप्पड़ भी मार दे, तो ऐसी सुरक्षा व्यवस्था को लानत है। चूंकि सुरक्षा व्यवस्था केंद्र सरकार का दायित्व है, दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, लिहाजा पुलिस आयुक्त की तुरंत छुट्टी की जानी चाहिए। नैतिकता के आधार पर प्रधानमंत्री या गृहमंत्री भी इस्तीफा दें। केजरीवाल का यह आरोप भी है और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के इस्तीफे की मांग भी की है। उनके उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया है – ‘क्या मोदी और अमित शाह अब केजरीवाल की हत्या कराना चाहते हैं? पांच साल सारी ताकत लगाकर जिसका मनोबल नहीं तोड़ सके, चुनाव में भी हरा नहीं सके, अब उसे रास्ते से इस तरह हटाना चाहते हो कायरो! यह केजरीवाल ही तुम्हारा काल है।’ ये कथन अतिशयोक्ति हो सकते हैं, लेकिन सुरक्षा हमारा राष्ट्रीय सरोकार है। हम ऐसी सोच से भी सहमत नहीं हैं कि केंद्र की मोदी सरकार ने जानबूझ कर ये हमले कराए या भाजपा दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार गिराने पर आमादा है अथवा प्रधानमंत्री मोदी मुख्यमंत्री केजरीवाल की ‘राजनीतिक आवाज’ खामोश करना चाहते हैं। केजरीवाल हमारे लोकतंत्र की चुनिंदा शख्सियत हैं। यदि कोई उनकी नीतियों से सहमत नहीं है या प्रधानमंत्री मोदी के विरोध की उनकी सियासत को नापसंद करता है अथवा सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक पर केजरीवाल के सवालों पर सवाल करता है, तो उसके मायने ये नहीं हैं कि मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर थप्पड़ रसीद किया जाए। प्रतिरोध की यह अभिव्यक्ति स्वीकार्य नहीं है। मुख्यमंत्री केजरीवाल पर न केवल नौ बार हमले किए गए हैं, बल्कि उनके खिलाफ 33 केस भी दर्ज हैं। उनकी वजह क्या है? यदि सीबीआई ने मुख्यमंत्री के घर और दफ्तर में छापे मारे हैं, तो उसे भी सामान्य कार्रवाई नहीं माना जा सकता। यदि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के प्रति केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों का व्यवहार ऐसा ही रहेगा, तो फिर भारत में संघीय ढांचा भी सवालिया है। बेशक केजरीवाल ने भी असामान्य व्यवहार दिखाया है। हर निर्णय और काम न करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार को दोषी करार दिया है। दिल्ली के उपराज्यपाल के आवास में धरना दिया है। प्रशासनिक वर्चस्व के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक गए हैं कि उपराज्यपाल बॉस हैं या चुनी हुई सरकार…! हालांकि संविधान में सब कुछ स्पष्ट है कि केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र क्या हैं और दिल्ली की चुनी हुई सरकार क्या-क्या कर सकती है। दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। उसे संविधान के विशेष प्रावधानों के तहत विधानसभा और सरकार दी गई है। केजरीवाल पूर्ण राज्य के लिए आंदोलन चला सकते हैं, लेकिन तब तक उन्हें मौजूदा संवैधानिक उल्लेखों के मुताबिक काम करना पड़ेगा। यदि कोई आम नागरिक केजरीवाल और उनकी ‘आप’ के असामान्य रवैये से तिलमिला जाए, तो उसका अर्थ थप्पड़ मारना नहीं हो सकता। वह अदालत में जा सकता है या अंतिम निर्णय के लिए जनता को जागरूक कर सकता है। मुख्यमंत्री को थप्पड़ मारना बुनियादी तौर पर लोकतंत्र और संविधान का अपमान भी है। बहरहाल थप्पड़बाज  के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में है। कहा तो यह भी जा रहा है कि आरोपी ‘आप’ का सदस्य रहा है और केजरीवाल से नाराज है। थप्पड़ मारना उसका प्रतिरोध नहीं हो सकता।


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