नई सरकार से अपेक्षाएं

By: May 28th, 2019 12:06 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

 

हिमाचल के संदर्भ में देखें, तो दो वर्ग आज तक मुख्य धारा की विकास प्रक्रिया से बिलकुल अछूते बने हुए हैं। इनमें एक हैं- घुमंतू विमुक्त जाति से संबंधित लोग और दूसरे हैं- वाल्मीकि समुदाय से जुड़े लोग। हिमाचल में घुमंतू विमुक्त जाति के लोग जिला चंबा और कांगड़ा में बंगाली नाम से चंबा की हटली पंचायत, कांगड़ा के जवाली-हरसर, पालमपुर और इंदौरा के आसपास के इलाकों में बस रहे हैं…

भारत की जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को खुले मन से पूर्ण बहुमत देकर देश में एक सशक्त सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम को बधाई। सारे एनडीए परिवार को भी बधाई। इतने बड़े जन समर्थन ने निस्संदेह जन अपेक्षाओं को भी बहुत बढ़ा दिया है। हिमाचल के संदर्भ में मैं कुछ जरूरी मुद्दों को इस समय नेतृत्व के समक्ष उठाना जरूरी समझता हूं। खास कर वे मुद्दे, जो आज तक सरकारों का ध्यान आकृष्ट करने में असफल रहे हैं, किंतु हैं बहुत जरूरी और न्यायसंगत। एनडीए को नेतृत्व प्रदान करने वाले प्रमुख दल भाजपा का प्रेरणा स्रोत दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानवतावाद रहा है। उसे जमीन पर उतारने के लिए अंत्योदय के मार्ग को चुनकर सामाजिक न्याय को संभव बनाने के संकल्प पर कार्य करने से पिछड़े वर्गों के मन में आशा की किरण जग गई है।

हिमाचल के संदर्भ में देखें, तो दो वर्ग आज तक मुख्य धारा की विकास प्रक्रिया से बिलकुल अछूते बने हुए हैं। इनमें एक हैं – घुमंतू विमुक्त जाति से संबंधित लोग और दूसरे हैं – वाल्मीकि समुदाय से जुड़े लोग। हिमाचल में घुमंतू विमुक्त जाति के लोग जिला चंबा और कांगड़ा में बंगाली नाम से चंबा की हटली पंचायत, कांगड़ा के जवाली-हरसर, पालमपुर और इंदौरा के आसपास के इलाकों में बस रहे हैं। ये लोग पुराने समय में सांप पकड़ने, सांप का तमाशा दिखाने और जड़ी-बूटी तथा टोने-टोटके का काम घूम-घूम कर करते थे। खाने-रहने का गुजारा चल जाता था। कुछ शिकार आदि भी कर लेते थे। इनको कभी जमीनें देकर विधिवत बसाने का प्रयास कम ही हुआ। चंबा के हटली पंचायत में द्रमण स्थान पर पचास के दशक में इन्हें कल्याण विभाग द्वारा एक कालोनी बनाकर बसाने का प्रयास किया गया, जिसमें छोटे-छोटे घर बना कर दिए गए, किंतु रोजगार के लिए उनकी परंपरागत सोच से बाहर निकालकर नए सामाजिक परिवेश और व्यवसायों में पुनर्वासित करने का कार्य नहीं हो सका। यहां तक कि जो रिहायशी क्वार्टर भी इनको बना कर दिए गए, उनकी जमीन भी आज तक कल्याण विभाग के नाम ही चल रही है। भूमिहीन होने के कारण इन्हें हिमाचली प्रमाण पत्र भी नहीं मिलता है, जिससे वे अधिकांश सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में भी असमर्थ रहते हैं। कमोबेश कांगड़ा में बसी इन विमुक्त जातियों की स्थिति भी ऐसी ही है। पिछले दो-तीन वर्षों से ये आवास योग्य 2-3 बिस्वा जगह इनके नाम करके दिए जाने की मांग कर रहे हैं। कल्याण विभाग से इन्होंने द्रमण वाली कल्याण विभाग की जमीन, जिस पर ये लोग बसे हैं, इनके नाम किए जाने के लिए अनापत्ति भी प्राप्त कर ली है, किंतु मामला राजस्व विभाग में अटका पड़ा है। ये एसडीएम  चुवाड़ी और उपायुक्त चंबा से भी कई बार मिल चुके हैं, ताकि अगली कार्रवाई करके जमीन इनके नाम हो जाए और ये हिमाचली होने के चलते मिलने वाले सरकारी लाभों को प्राप्त कर सकें। आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी ये लोग संसाधनहीन बने हैं, यह चिंता का विषय है। कई बार साधनहीनता के कारण ये लोग दारू आदि बेचने के गलत धंधों में भी लिप्त हो जाते हैं, किंतु इसमें दोष तो उस व्यवस्था का है, जो आज तक इनको जीवनयापन के लिए सम्मानजनक संसाधन देने में असमर्थ रही है। जन्म से कोई अपराधी पैदा नहीं होता है, बल्कि हालात उसे उस दिशा में धकेलते हैं और वही लोग, जो इनकी निंदा करते नहीं थकते, इनका गलत कार्यों में इस्तेमाल करने में भी नहीं झिझकते। यदि ये अपने लिए दो नंबर का काम कर रहे होते, तो इस तरह गुरबत में नहीं पड़े होते, बल्कि इनकी भी बड़ी-बड़ी संपत्तियां होतीं। जाहिर है कि इनमें से कोई-कोई यदि गलत कार्यों में भी लिप्त होते हैं, तो ये किसी के द्वारा इस्तेमाल होते हैं। असली शातिर तो संभ्रांत पर्दे में छिपे रहते हैं और इनको अपराध प्रवृत्ति का होने का तमगा मिल जाता है। जरूरत तो इस बात की है कि इन लोगों को जीने योग्य संसाधन दिए जाएं और इनकी संस्कृति को बदलने के लिए इन्हें पढ़ाई-लिखाई के रास्ते पर चलाया जाए तथा देश का एक उत्पादक नागरिक बनाने का कार्य किया जाए, जिसकी शुरुआत तो इनको रहने योग्य जमीन देकर ही की जा सकती है।

दूसरा वंचित वर्ग वाल्मीकि समाज का है। यह समाज स्वच्छता अभियान की रीढ़ है, किंतु स्वयं दड़बों में रहने को अभिशप्त है। हिमाचल में इनका आगमन पंजाब और उत्तर प्रदेश से राजाओं के जमाने से जब शहर बसने लगे, तब शहरी सफाई व्यवस्था संभालने के लिए हुआ। बाद में 1960 के दशक तक ये लोग पंजाब और उत्तर प्रदेश से लाए गए। इनको म्युनिसिपैलिटी द्वारा रहने की व्यवस्था की जाति थी, जिस पर इनका कोई मालिकाना हक नहीं होता था। कुछ एक स्थानों को छोड़कर ये लोग भी भूमिहीन बने हुए हैं और आधी से डेढ़ सदी के बीच यहां आकर बसे लोग आज तक भूमिहीन ही बने हैं। इसी कारण इन्हें अपना व्यवसाय बदलकर कुछ नया करने की भी छूट नहीं मिल सकती, क्योंकि इन्हें हिमाचली प्रमाण पत्र नहीं मिल सकता। पढ़-लिख कर भी ये किसी नई व्यवस्था में रोजी तलाश नहीं कर सकते।

इन्हें भी कम से कम रिहायश के योग्य भूमि तो तत्काल दिए जाने की जरूरत है। हालांकि इनके अपने पेशे से संबंधित भी कई सारी दिक्कतें हैं, जिनका समाधान किया जाना चाहिए। जैसे कि बंद पड़ी नालियों को बिना आधुनिक उपकरणों के हाथों से साफ करना, सेप्टिक टैंकों को बिना उपकरणों के साफ करना आदि। इस काम में कई बार सफाई कामगारों की मौत तक हो जाती है, किंतु उसके लिए भी मुआवजे की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। मैं समझता हूं कि नई सरकार की शुरुआत ऐसे वंचित वर्ग की सुध लेने से हो, तो न्याय का मार्ग प्रशस्त होगा।  सबका साथ और सबका विकास का लक्ष्य हासिल करने की सकारात्मक शुरुआत होगी। पूरे समाज को एक सुंदर संदेश जाएगा कि आजाद देश में एक ऐसी सरकार है, जो सबसे अंतिम सीढ़ी पर बैठे आदमी की सुध लेने वाली है।


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