निजी एफएम रेडियो की बकबक
अक्षित, आदित्य, तिलक राज गुप्ता, रादौर
मनोरंजन के साधन के रूप में एफएम रेडियो का अपना ही महत्त्व और उपयोगिता है, मगर बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि निजी एफएम रेडियो चैनल, एफएम रेडियो की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। रेडियो जॉकी के नाम के प्रस्तोता तो इतनी तेजी से और लगातार बकबक करते हैं कि सिर दर्द करने लगता है। न कोई गीत ढंग से, पूरा चलता है और न ही बातचीत सामान्य रूप से प्रस्तुत की जाती है। सिर्फ कुछ सेकंड का गीत, फिर बकबक और विज्ञापन। इस संदर्भ में आकाशवाणी के एफएम चैनलों को अपवाद कहा जा सकता है। हमारा सुझाव है कि बातचीत, विज्ञापन, गीत और फिजूल की बकबक की खिचड़ी न पकाकर, निजी एफएम चैनल सिलसिलेवार तरीके से कार्यक्रम चलाएं, क्योंकि एफएम रेडियो का उद्देश्य जनता को मनोरंजन और जानकारी उपलब्ध करवाना है, न कि सिर दर्द देना।
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