पुलिस प्रबंधन के छेद

By: May 22nd, 2019 12:05 am

जेल प्रबंधन की दरारों से भागते सजायाफ्ता कैदी ने पुनः पुलिस व्यवस्था को गच्चा दिया और पेशी के लिए बाहर निकलना उसे मुक्त कर गया। उद्योगपति की जघन्य हत्या करने के आरोप में नाहन जेल में बंद कैदी दूसरी बार पुलिस को चकमा दे गया, तो इसे सही परिप्रेक्ष्य में कैसे कबूल करें  और क्यों न व्यवस्था की खामी देखी जाए। पिछले कुछ सालों में हिमाचल की जेलों में दरार ढूंढने की साजिशें अगर परवान चढ़ीं, तो महकमे को इससे सबक लेते हुए पुख्ता इंतजाम कर लेने चाहिएं। यूं तो जेल प्रशासन ने कैदियों के जीवन में सुधार के कई कार्यक्रम चलाए हैं और इनके परिणाम स्वरूप सजा का मंजर बदल कर उनकी कौशल क्षमता में इजाफा कर रहा है, फिर भी प्रबंधन के लिहाज से अधोसंरचना तथा सतर्कता को पुष्ट करने की जरूरत है। हिमाचल में करीब एक दर्जन जेलों में कैदियों को रखने की क्षमता अठारह सौ है, लेकिन किसी तरह 2192 कैदी ठूंसे गए हैं। इसके कारण विभिन्न अपराधों में वर्गीकृत कैदियों को एक जैसी व्यवस्था में देखा जाता है, जबकि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रवृत्ति को सुधार की श्रेणी में आजमाने के लिए अलग-अलग कक्ष  तथा संवाद की जरूरत है। हिमाचल की उपजेलों की व्यवस्था को छोड़ दें, तो भी जो दो-तीन बड़ी जेलें हैं, उनमें भी स्थान तथा चौकसी के इंतजाम कमजोर पड़ जाते हैं। प्रदेश को दो स्तरों पर काम करना होगा। पहले जेल क्षमता में सुधार तथा नए परिसरों का जोनल स्तर पर निर्माण करना होगा। दूसरे कैदियों की शिफ्टिंग या तो पूर्ण सुरक्षा के बीच हो या अदालतों में सुनवाई वीडियो क्रान्फेंसिंग से ही हो। ऐसे में अदालती कार्रवाइयों को जेल प्रबंधन के नए व पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से संचालन को अहमियत देनी होगी। यह तभी संभव है अगर प्रदेश में जोनल स्तर पर तीन या चार बड़ी जेलों का आधुनिक दृष्टि व सुविधाओं से परिपूर्ण ढंग से निर्माण किया जाए। उदाहरण के लिए कांगड़ा, चंबा, हमीरपुर व ऊना जिलों की आवश्यकता को देखते हुए देहरा के आसपास आधुनिक जेल का निर्माण किया जाए, तो क्षमता, सुविधा व सुरक्षा की दृष्टि से यह कदम सहायक होगा। कुल्लू, लाहुल-स्पीति, मंडी तथा बिलासपुर के लिए बिलासपुर की केंद्रीय जेल को और विस्तृत किया जाए, जबकि किन्नौर, शिमला, सोलन व सिरमौर के हिसाब से नया स्थल चिन्हित किया जाए या नाहन जेल को विस्तृत स्वरूप दिया जाए। हिमाचल में अपराध के बढ़ते मामलों को देखते हुए पुलिस व्यवस्था को प्रबंधन की दृष्टि से मजबूत होना पड़ेगा, तो अदालती प्रक्रिया को भी न्यायिक परिसर से प्रबंधकीय नतीजों की ओर बढ़ते हुए नए प्रयोग करने होंगे। प्रदेश में पिछले चार दशकों से चल रही धर्मशाला में हाई कोर्ट खंडपीठ की मांग पूरी होती है, तो न्याय प्रक्रिया सरल, संभव और नजदीक मिल पाएगी। शिमला में हाई कोर्ट होने की वजह से भौगोलिक व आर्थिक दृष्टि से न्याय के आगे सरहदें खड़ी हो जाती हैं और प्रायः प्रदेश के एक बड़े भाग को चाह कर भी अपनी पैरवी से वंचित रहना पड़ता है। बेशक न्यायालय पद्धति का प्रसार हुआ है और अदालतें निचले स्तर तक पहुंची, लेकिन माकूल अधोसंरचना तथा वैज्ञानिक निष्पादन के हिसाब से हिमाचल के प्रयास अभी पूर्ण होते दिखाई नहीं देते। ऊना से भागे कैदी ने यह साबित कर दिया कि पुलिस के प्रबंधन में कितने छेद हैं या कितनी अक्षम है व्यवस्था जो कत्ल के आरोपी को अदालत ले तो जाती है, लेकिन वापस जेल लौटा नहीं पाती। पुलिस कर्मी एक कैदी को अपनी पकड़ में रखने के लिए क्यों नाकाम रहे, इसके कई कारण हो सकते हैं। अपराधी की हिस्ट्री के अनुरूप कैदी को पुलिस की माकूल नफरी दी गई या पुलिस कर्मी पूरी तरह सतर्क नहीं थे। विभागीय अनुशासन या कार्यशैली इतनी लचर हो चुकी है कि कैदी मनमाफिक इरादे पालने को स्वतंत्र हैं। ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है या अतीत के सबक नजरअंदाज हो गए। जो जेल प्रशासन कारागार सुधार कार्यक्रमों में उल्लेखनीय परिवर्तन कर सकता है, उसकी हिफाजत से निकले कैदी के प्रति साधारण पुलिस क्यों लापरवाह दिखाई देती है। क्या कहीं जेल प्रशासन और साधारण पुलिस के बीच तारतम्य और आपसी भागीदारी का कोई खोट तो नहीं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App