पूंछ कटा चूहा
पशुशाला में रखी चूहेदानी में एक भूरे रंग का चूहा फंसा था। खुश होते हुए वह दादा जी से बोला, ‘कितना प्यारा चूहा है दादा जी!’ ‘हां बिजु, बहुत प्यारा है, लेकिन तेरे दादा का नुकसान भी ये खूब करते हैं।’ दादा जी ने अपनी बात रखी। विजय नुकसान वाली बात को नहीं समझ पाया। वह आगे बोला, ‘दादा जी, क्या मैं इसको पाल सकता हूं।’
‘बिलकुल नहीं बेटा। तुम इसको नहीं पाल सकते…
विजय ने जब से अपने मामा के यहां सफेद चूहा देखा है तब से वह चूहा पालने की जिद्द पर अड़ा है। उसके मामा ने उसे चूहा पालने के लिए दिया भी, लेकिन घर वाले चूहा पालने के बिलकुल खिलाफ थे। विजय इस बात से बहुत दुखी हुआ। अर्धवार्षिक परिक्षाएं जल्द शुरू होने वाली थी इसलिए विजय उसकी तैयारी में लग गया था। परिक्षाओं की तैयारी में चूहे वाली बात को वह भूलता भी गया। परिक्षाओं के बाद की छुट्टियों में इस बार विजय अपने माता-पिता के साथ अपने गांव में एक शादी में शामिल होने के लिए पहुंच गया था। गांव में दादा जी ने गायें पाल रखी थीं। वे अपने बड़े बेटे के साथ गांव में ही रहते थे। अब तक सर्दी के मौसम ने दस्तक दे दी थी। इस समय तक किसान फसल काटकर घर के अंदर रख चुके होते हैं। बाहर जब अब खेतों में दाना नहीं मिलता तो चूहे घरों की तरफ आ जाते हैं। वे बहुत नुकसान करते हैं इसलिए दादा जी ने घर और पशुशाला में दो तीन जगहों पर चूहों को पकड़ने के लिए चूहेदानियां लगाई होती थीं। विजय जब भी गांव आता तो अपने दादा जी के साथ खूब हंसता-खेलता, काम भी करता और मौज भी मनाता था। आज सुबह जब विजय उठा और दादा जी के साथ पशुशाला के अंदर गाय से दादा को दूध दुहते देखने के लिए गया तो वह खुशी के मारे एकदम चिल्ला पड़ा। पशुशाला में रखी चूहेदानी में एक भूरे रंग का चूहा फंसा था। खुश होते हुए वह दादा जी से बोला, ‘कितना प्यारा चूहा है, दादा जी!’ ‘हां बिजु, बहुत प्यारा है, लेकिन तेरे दादा का नुकसान भी ये खूब करते हैं।’ दादा जी ने अपनी बात रखी। विजय नुकसान वाली बात को नहीं समझ पाया। वह आगे बोला, ‘दादा जी, क्या मैं इसको पाल सकता हूं।’ ‘बिलकुल नहीं बेटा। तुम इसको नहीं पाल सकते।’ दादा बोले। ‘पर क्यों दादा जी?’ हैरानीवश विजय ने पूछा। ‘यह तुम्हारे सफेद चूहों की तरह नहीं हैं। ये खतरनाक होते हैं। ये तुम्हें काट सकते हैं और यह सफेद चूहों की तरह एक जगह टिककर भी नहीं रहते।’ दादा जी समझाते हुए बोले। ‘लेकिन दादा जी मुझे इसे पालना है। मुझे इसे पालने दो न।’ विजय मासुमियता भरी आवाज में बोला। ‘ठीक है तुम थोड़ी देर इससे खेल लो। फिर बाद में हम इसे घर से दूर छोड़ आएंगे।’ छोड़ने वाली बात पर विजय दुखी हुआ, लेकिन चूहे के साथ खेलने वाली बात को सुनकर खुश होते हुए बोला, ‘ठीक है दादा जी। बहुत मजा आएगा।’ विजय ने चूहेदानी उठाई और आंगन में उस जगह बैठ गया जहां सुबह की धूप पहुंच रही थी। सर्दी के मौसम में यह हल्की-हल्की धूप खूब आनंदित कर रही थी। चूहेदानी नीचे रखते ही विजय एक बार फिर जोर ये चिल्लाया, लेकिन इस बार की उसकी चिल्लाहट दुख भरी थी। ‘दादा जी इसकी आधी पूंछ तो बिल्ली खा गई है। इसकी कटी पूंछ पर खून जमा हुआ है।’ दादा जी चूहेदानी में गहरी नजर डालते हुए बोले, ‘बेटा, इसे बिल्ली ने नहीं खाया है बल्कि यह चूहेदानी का दरवाजा एकदम से बंद होने से कट गई है। ऐसा अकसर हो जाता है।’ विजय से चूहे की कटी पूंछ नहीं देखी जा रही थी। उसे जहां चूहे पर बड़ा तरस आ रहा था वहीं दादा जी पर इस बात के लिए गुस्सा भी आ रहा था कि वे ऐसी चूहादानी क्यों लेकर आए हैं जो चूहों को नुकसान पहुंचाती है। इससे पहले कि वह कुछ और सोचता, वह फटाफट चूहे के लिए रोटी का टुकड़ा लेकर आ गया और बहुत छोटा-छोटा करके उसे चूहेदानी के अंदर डालने लगा। चूहा शायद बहुत समय पहले से फंसा था। उसे भूख भी लगी थी। इसलिए बारी-बारी से रोटी का एक-एक टुकड़ा अपनी अगली दोनों टांगों से उठाता और पिछले दो पैरों पर खड़ा होकर कुतर-कुतर कर बड़े प्यार से खाता। उसकी खाने की ऐसी स्थिति देखकर विजय को वह बहुत प्यारा लग रहा था। यदि वह कोई टुकड़ा चूहेदानी के ऊपर से लटकाता तो वह एकदम से लपककर उसे खाने लगता। रोटी को खिलाने के बाद विजय ने दादा जी से जख्म पर लगाने के लिए ट्यूब और पट्टी ली। फिर जैसे ही चूहे की पूंछ चूहेदानी से बाहर निकली, उसे एकदम से पकड़कर उसमें जख्म वाली टयूब लगाकर पट्टी को फटाफट बांध दिया। दादा जी इस कार्य में विजय की पूरी मदद कर रहे थे। पूंछ में पट्टी बंधा चूहा बहुत अजीब लग रहा था। विजय उसे एक हल्की-सी मुस्कराहट के साथ लगातार देखे जा रहा था। उसे वह बहुत ही प्यारा लग रहा था। उसकी छोटी-छोटी, लेकिन बाहर को निकली बड़ी-बड़ी आंखें, उसकी मूंछों के बाल और उसकी प्यारी-सी हरकतें उसका सम्मोहन बढ़ा रही थी। वह काफी देर तक उसके साथ तरह-तरह की हरकतें लिए खेलता रहा। चूहा भी अब उससे डर नहीं रहा था। वह विजय के साथ बराबर खेल रहा था। यदि विजय कोई छोटी लकड़ी चूहेदानी के अंदर घुसाता तो वह उसे अपने अगले दोनों पैरों से पकड़ लेता। यदि वह अपने पिस्तौल की छोटी-छोटी प्लास्टिक की गोलियां उसकी तरफ फेंकता तो वह उन्हें मुंह में लेकर चूहेदानी से बाहर फेंक देता। विजय जिस ओर अपनी अंगुली करता, वह उसी तरफ अपनी गर्दन घुमा लेता। विजय को चूहे की इन प्यारी हरकतों को देखकर बहुत मजा आ रहा था। ,विजय को चूहे के साथ खेलते हुए आज पूरा दिन बीत चुका था। अब शाम ढलने लगी थी। दादा जी विजय से बोले, ‘बिजु बेटा, अब हमें इसे छोड़ देना चाहिए।’ परंतु विजय का दिल अभी भी इसके साथ खेलने को कर रहा था, लेकिन दादा जी के दोबारा कहने पर वह मान गया। दादा चूहेदानी को उठाकर घर से थोड़ी दूरी पर ले गए। विजय भी साथ था। दादा ने चूहेदानी का दरवाजा खोला तो चूहा बाहर निकल आया। परंतु वह भागा नहीं, वहीं खड़ा रहा। दादा जी ने उसे अपने अंदाज में डराकर भगाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं गया। यह सब देखकर दादा जी हैरान हो रहे थे। उन्होंने अपने जीवन में कई चूहे पकड़े थे। परंतु ऐसा नजारा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। चूहे तो चूहेदानी का दरवाजा खुलते ही एकदम से बाहर भाग जाया करते थे। पर आज तो अजीब ही बात हो गई थी। विजय यह सब देख रहा था। चूहे की यह हरकत उसे भी हैरान कर रही थी। वह नीचे झुका और जेब से एक प्लास्टिक की गोली धरती पर फेंक दी। अबकी बार चूहा गोली की ओर बढ़ा और मुंह में दबाकर भाग गया। वह इसे शायद दोस्ती की निशानी समझकर ले गया था। पूंछ पर पट्टी बंधा भागता चूहा बहुत ही मजेदार लग रहा था। विजय उसे नजरों के ओझल होने तक देखता रहा। अब तक रात का अंधेरा छाने लग गया था। गाय और उसकी बछिया भी रंभाने लगी थी। उनका पशुशाला में बांधने का समय हो चुका था। दादा जी के साथ विजय बुझे मन से घर की ओर चल पड़ा था। उसे वह प्यारा-सा पूंछ कटा पट्टी बंधा प्यारा दोस्त बार-बार याद आ रहा था।
– पवन चौहान, गांव व डाकघर महादेव,
तहसील -सुंदरनगर, जिला मंडी
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