फलों की तलाश में सैर का सफरनामा

By: May 20th, 2019 12:03 am

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक का नाम : दुनिया जैसी मैंने देखी

लेखक का नाम : डा. चिरंजीत परमार

प्रकाशक : ब्ल्यू रोज पब्लिशर्ज

मूल्य : 170 रुपए

फलों की किताब में साहित्य के फूल। जिंदगी भर जंगली फलों की तलाश करते-करते एक वैज्ञानिक ने अपनी सैर को सफरनामा बना डाला। इस घुमक्कड़ी के हजारों रंग किताब के रूप में आज हम सबके सामने हैं। ‘दुनिया जैसी मैंने देखी’ : 43 किस्से मेरी विदेश यात्राओं से। इस किताब के लेखक डाक्टर चिरंजीत परमार हैं, जो कि पेशे से फल वैज्ञानिक हैं। बतौर वैज्ञानिक उन्होंने कई देशों का भ्रमण किया और विदेशों में अपने अनुभवों पर आधारित एक पुस्तक की रचना कर डाली। उनकी विदेश यात्राओं के 43 किस्से इसमें संकलित किए गए हैं। आप इसे हवाई घुमक्कड़पन कह सकते हैं। हवाई यात्राओं को ललचाते लेखक चिरंजीत 1984 में पहली बार इंग्लैंड पहुंचे। उन्होंने इस यात्रा में मित्र के साथ वहां के वैरीगुड मौसम का आनंद लिया, जो उन्हें अभी तक फील गुड करवाता है। किताब ‘दुनिया जैसी मैंने देखी’ के जरिए इसके पाठक कई देशों की कुछ महत्त्वूपर्ण जानकारी ले सकते हैं। बकौल लेखक, वह 34 देशों में घूमे। अफ्रीकी देश लाइबेरिया का उनका अनुभव सीखने-सिखाने जैसा रहा। बतौर प्राध्यापक वे 1982 से 84 तक वहां रहे। भारतीय ताबीज का लाइबेरिया में प्रसिद्ध होना पाठकों को हैरान करने जैसा है। न्यूयार्क में सिस्टम और अनुभव पर लेखक ने बात रखी है। डाक्टर चिरंजीत जितना चलते गए, ग्रहण करते गए। लाइबेरिया में भोजन का बिल सिर्फ पुरुष ही चुकाते हैं और इंडियन को इंडिया मैन बुलाते हैं। इनके सफर की कहानी रीति-रिवाजों को एक सूत्र में पिरोने जैसी है जिसमें विविध संस्कृतियों के मोती चमकते हैं। मुख्यतः फल अनुसंधान से जुड़े रहे चिरंजीत बेशक लेखक नहीं हैं, मगर हवाई यात्राओं  में उन्होंने जो भी इकट्ठा किया, वही अनुभव की समृद्ध पोथी बन गया। अमरीका का भैंसा पालन व्यवसाय और इंडोनेशिया के बाली द्वीप की रामलीला का जिक्र उल्लेखनीय तौर पर पुस्तक में है। पत्नी के साथ कोपनहेगन में लिटिल मर्मेड के साथ फोटो खिंचवाना अभी भी उन्हें एक सुखद एहसास दिलाता रहा होगा। स्मृतियों को पुस्तक के रूप में सहेजना एक बड़ा कार्य है। अलबत्ता इससे बड़ी बात यह है कि  हम और आप भी इनसे जुड़ जाते हैं, जब वे शब्दों  के रूप में हमारे सामने हों। डाक्टर सुंदर लोहिया से प्रभावित डाक्टर चिरंजीत का यह लेखन कई लेखकों की कहानियों से उन्हें अलग खड़ा करता है। रंग लगातार बदलते जाते हैं। चलचित्र की तरह एक पूरी पटकथा लगातार आकर्षित करती जाती है। और कड़ी दर कड़ी जुड़ती भी जाती है। हवाई यात्राओं के इस संस्मरण में जाहिर है कल्पना की कोई गुंजाइश नहीं। और सीधे शब्दों में विवरण है, जो प्रभावित करता है। बागबानी से लेकर जीवन-मरण के रंगों में सजी किताब ‘दुनिया जैसी मैंने देखी’ हाथोंहाथ बिकनी चाहिए, ऐसी  उम्मीद है। इसमें समाहित 43 किस्से दरअसल किस्सों से बढ़कर अनुभवों का वह खजाना हैं, जिसे आंखों ने देखा, मन ने महसूस किया और दिल से लिखा गया। बाजार में 170 रुपए मूल्य की इस किताब को ब्लू रोज़ पब्लिशर ने आकर्षक आवरण के साथ छापा है, जिसमें 155 पन्ने हैं। वर्ष 2019 में इसका प्रथम संस्करण प्रकाश में आया है।

– ओंकार सिंह


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