मन आखिर है क्या

By: May 25th, 2019 12:05 am

श्रीश्री रवि शंकर

एक शिक्षक ने कहा था कि ईश्वर उत्तम है। ईश्वर ने हमें बनाया है, पर जब हम उत्तम हैं, तो क्या एक इंजीनियर का काम भी उत्तम नहीं होना चाहिए, पर ऐसा तो नहीं होता। प्रश्न उत्तम है और उत्तर और भी उत्तम है। सृष्टि में हरेक चीज उत्तमता के एक स्तर से दूसरे स्तर पर अग्रसर हो रही है। दूध उत्तम है, और जब वह दही बन जाता है, दही भी उत्तम है। आप दही से क्रीम निकाल सकते हैं और वह भी उत्तम है। फिर आप मक्खन बनाते हैं और वह भी उत्तम है। ये एक दृष्टि हुई। दूसरी दृष्टि से देखें तो, दूध खराब हो गया तो आप ने उस से पनीर बनाया। जब दही खराब हो गया तो आप ने उस में से मक्खन निकाला। ये देखने का दूसरा तरीका हुआ। आप की दृष्टि पर निर्भर है कि आप कैसे देखें। अनुत्तमता से ही उत्तमता को महत्त्व मिलता है। आप किसी चीज को उत्तम कैसे कह सकते हैं? किसी भी वस्तु को दोष रहित तभी समझ सकते हैं, जब कहीं पर दोष देख चुके हैं। इसलिए दोषयुक्त वस्तु का होना भी आवश्यक है, किसी दोषहीन उत्तम चीज को समझने के लिए।  मैं सोच रहा हूं कि ये मन आखिर है क्या? क्या यह हमारे दिमाग में किसी एक जगह में है या यह पूरे जगत में व्याप्त है? मन ऊर्जा का स्वरूप है जो कि पूरे शरीर में व्याप्त है। हमारे शरीर के हर कोष से ऊर्जा प्रसारित होती है। आपके आसपास पूरी ऊर्जा को सम्मिलित रूप से मन कहते हैं। मन दिमाग के किसी एक भाग में नहीं स्थित है, अपितु शरीर में सभी जगह व्याप्त है। चेतना विषयक ज्ञान बहुत गहरा है। हमें कभी- कभी इस गहराई में जाना चाहिए। जितना गहराई में जाएंगे, उतना ही इसे समझ सकेंगे। जितना समझोगे, उतने ही चकित होते जाओगे! वाह! तुम्हें पता लोगों का एक भूतिया हाथ होता है, जिसका अर्थ है कि सच में उनका हाथ नहीं है, पर उन्हें फिर भी उस हाथ में संवेदना होती है, पीड़ा और खुजली होती है! जो लोग अपना हाथ या पैर किसी दुर्घटना वश खो देते हैं, उन्हें बाद में कभी-कभी उस खोए हुए हाथ या पैर के अस्तित्व का अभास होता है। हालांकि वो सचमुच नहीं होता है। इस से ये साबित होता है कि मन शरीर के किसी एक भाग में स्थित न होकर, पूरे शरीर के इर्द-गिर्द रहता है। शरीर का आभा मंडल ही मन है। हम सोचते हैं कि मन शरीर के भीतर है, पर सत्य इसका उल्टा है। शरीर मन के भीतर है। शरीर एक मोम्बत्ती की बाती की तरह है और मन इसकी ज्योति है। गुरुजी, हम सब यहां मौन की गहराई की अनुभूति को समझने आए हैं। मुझे यहां बहुत अच्छा भी लग रहा है और मैं एकांत व मौन में रहना पसंद करने लगा हूं। पर जब मैं वापस आफिस या अन्य सामाजिक जगह पर जाऊंगा, तो क्या मौन रखना वहां ठीक होगा। जीवन में संतुलन रखो। किसी भी चीज में अति करना ठीक नहीं है। बहुत बोलना भी ठीक नहीं और बहुत मौन भी ठीक नहीं है, तुम्हारे लिए  इस वक्त। हम जानते हैं कि जीवन में भाग्य महत्त्व रखता है। जीवन में सफलता और असफलता भाग्य से ही संबंधित हैं तो फिर हमारा कार्य भार क्या रह जाता है जीवन में? तुम अपना भाग्य खुद बनाते हो। तुमने कल जो किया वह आने वाले कल का भविष्य होगा और तुम आज जो करोगे, वह आने वाले कल के बाद के दिनों का भाग्य बनेगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App