मुगल सत्ता समाप्त होने पर राजसिंह ने रेहलू पर फिर कब्जा कर लिया

By: May 8th, 2019 12:05 am

मुगल सत्ता समाप्त होने पर चंबा के राजा राजसिंह ने रेहलू पर दोबारा अपना अधिकार जमा लिया। संसार चंद ने राजसिंह को रेहलू के साथ लगते हुए गांव को छोड़ देने के लिए लिखा, परंतु उसने इनकार किया और स्वयं रेहलू चला गया। कुछ समय के भीतर उसने वहां पर एक किला बनवाया …

गतांक से आगे …

जगत सिंह (1778-1828 ई.)  हिंदूर और कांगड़ा के विरुद्ध अपनी सहायता के लिए गोरखों को जो उस समय गढ़वाल तक पहुंच चुके थे, बुलाया। उन्होंने हिंदूर पर अधिकार किया। इसके साथ-साथ हिंदूर के अधीनस्थ ठकुराइयां भी गोरखों के मातहत हो गईं। इनमें बाघल भी एक थी। सन् 1783 ई. में कांगड़ा किला के अंतिम मुगल सूबेदार सैफ अली खां की मृत्यु हो गई। उस समय कांगड़ा का राजा संसार चंद था। उसके बहुत प्रयत्न करने पर भी किला उसके हाथ से निकलकर सरदार जय सिंह कन्हैया के हाथ आ गया। 1786 ई. में जब जय सिंह को स्वयं मैदानी भाग में हार खानी पड़ी तो उसने कांगड़ा का किला खाली करके संसार चंद को दे दिया। जब कांगड़ा में मुगलों का प्रभुत्व समाप्त हो गया तो सभी पहाड़ी राजाओं ने अपने-अपने उन क्षेत्रों को अपने अधिकार में ले लिया, जिन पर मुगलों ने कब्जा कर रखा था। ऐसा ही एक क्षेत्र ‘रेहलू’ था। इस क्षेत्र के साथ कांगड़ा के मुगल सूबेदार ने कांगड़ा के ही कुछ गांव जोड़ रखे थे। मुगल सत्ता समाप्त होने पर चंबा के राजा राजसिंह ने रेहलू पर दोबारा अपना अधिकार जमा लिया संसार चंद ने राजसिंह को रेहलू के साथ लगते हुए गांव को छोड़ देने के लिए लिखा, परंतु उसके इनकार किया और स्वयं रेहलू चला गया। कुछ समय के भीतर उसने वहां पर एक किला बनवाया। इस पर संसार चंद ने गुलेर के एक वजीर ध्यान सिंह से जो उन दिनों कोटला में था, सांठ-गांठ करके रेहलू पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उधर, राजसिंह ने भी नूरपुर से कुछ सहायता प्राप्त की। राजसिंह की सेना कनीद, चड़ी, गहरदह और नठर में थी और वह स्वयं नरेटी में था। उसके साथ थोड़े से नूरपुर के सैनिक और कुछ अपने सैनिक थे। संसार चंद चुपके से आगे बढ़ा और एकदम चंबा की सेना पर टूट पड़ा। नूरपुर के सैनिक इस हड़बड़ी में भाग खडे़ हुए। वहां पर राजा केवल अपने 45 सैनिकों के साथ ही रह गया। राजसिंह ने साथियों ने उससे अनुरोध किया कि लड़ाई टाल दी जाए, परंतु राजा ने एक न सुनी और वह बराबर लड़ता रहा। एक-एक करके उसके साथी भी ढेर हो गए और राजसिंह की टांग में भी एक गोली लगी, परंतु वह फिर भी लड़ता ही रहा। इसी समय पीछे से अजीत सिंह पूर्विया नामक व्यक्ति ने आकर उसके सिर में तलवार से घाव लगाया। अजीत सिंह पूर्विया को कहीं पर अजीत सिंह हजूर भी लिखा गया है। राजा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा। संसार चंद उसे बंदी बनाकर कांगड़ा ले जाना चाहता था, परंतु उसे मायूसी हुई। राजा राजसिंह की मृत्यु 30 वर्ष राज्य करने के पश्चात 40 वर्ष की आयु में सन् 1794 ई. में हुई। राजा राजसिंह युद्ध की देवी चामुंडा का भक्त था तथा उसने मां चामुंडा से युद्ध में वीर गति को प्राप्त होने का आशीर्वाद ले रखा था।


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