मृत्युंजय जप कैसे करें

By: May 18th, 2019 12:06 am

अब प्रयोग कहते हैं। नित्य क्रिया को समाप्त कर स्वस्तिवाचनपूर्वक संकल्प करें। फिर पंचगव्य को लाकर इस मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित कर प्रणव से यंत्र को उसमें निक्षेप करें। फिर उस यंत्र को शीतल जल, चंदन, गंध, कस्तूरी और कुमकुम स्नान कराएं। फिर इस मंत्र को उच्चारण कर प्रणव से शोधन कर स्नान कराएं। क्रम यह है-प्रथम दूध से स्नान कराकर धूप प्रदान करें। इसी प्रकार दही, घृत, शहद, शर्करा से स्नान कर अष्ट कलश से स्नान कराएं। कुमकुम, रोचन चंदन, मिश्रित कराएं। सर्वत्र मूल मंत्र से स्नान कराएं। फिर यंत्र को उठाकर कुशा से अग्रभाग से छूकर गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर प्राण-प्रतिष्ठा करें…

-गतांक से आगे…

अब प्रयोग कहते हैं। नित्य क्रिया को समाप्त कर स्वस्तिवाचनपूर्वक संकल्प करें। फिर पंचगव्य को लाकर इस मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित कर प्रणव से यंत्र को उसमें निक्षेप करें। फिर उस यंत्र को शीतल जल, चंदन, गंध, कस्तूरी और कुमकुम स्नान कराएं। फिर इस मंत्र को उच्चारण कर प्रणव से शोधन कर स्नान कराएं। क्रम यह है-प्रथम दूध से स्नान कराकर धूप प्रदान करें। इसी प्रकार दही, घृत, शहद, शर्करा से स्नान कर अष्ट कलश से स्नान कराएं। कुमकुम, रोचन चंदन, मिश्रित कराएं। सर्वत्र मूल मंत्र से स्नान कराएं। फिर यंत्र को उठाकर कुशा से अग्रभाग से छूकर गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर प्राण-प्रतिष्ठा करें। उक्त विनियोग प्रदान करें ः आं ह्रीं क्रौं यं लं वं शं षं सहं हौ हंसः अमुकदेवतायाः प्राणा इह प्राणाः। जीव इह स्थितः इत्यादि उच्चारण कर देवता का आवाहन कर पंचोपचार तथा षोडशोपचार पूजन करें और रेशमी वस्त्र आदि देकर 108 बार अथवा 1000 मंत्र जप करें। यदि शक्ति हो तो बलिदान भी कर दें। फिर 108 बार हवन करें। होमभाव में द्विगुण जप करना चाहिए। तदनंतर दक्षिणा देकर छिद्रावधारण करें। अब शिव यंत्र कहते हैं। प्रथम षटकोण मंडल करके उसके बीच में साध्य व्यक्ति के नाम और प्रसाद बीच को लिखें। छओं कोणों में प्रणवसहित पंचाक्षर मंत्र के वर्ण को और विवरों में षडंग यंत्रों को लिखें। यंत्र के बहिर्भाग में पंचदल बनाकर नाम मंत्रों को लिखें। नाम मंत्र यह है – ओउम वामदेवाय नमः। ओउम ईशानाय नमः। ओउम तत्पुरुषाय नमः। ओउम अघोराय नमः। ओउम सघोजाताय नमः। इस प्रकार इन पांच मंत्रों को प्रागादि क्रम से लिखें। पुनः यंत्र के बहिर्भाग में अष्टदल निर्माण करके उसमें मातृकाओं के वर्णों को लिखें। दलों के बहिर्भाग को त्रयम्बक मंत्र से वेष्टित करके यंत्र का विधिवत जप-पूजन करें। इसके बाद प्रथम प्रसादबीज, तत्पश्चात मृत्युहर तारक तथा व्याहृतिका उच्चारण कर जो मनुष्य निरंतर संपुट तथा अनुलोम त्रयंबक मंत्र का जाप करते हैं, उनको सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। हौं यह प्रसादबीज है। मृत्युहर तीन अक्षर का ओं जूं सः यही त्रयंबक मंत्र है। ओं को तारक कहते हैं। भूर्भवः स्वः इनको व्याहृति कहते हैं। हौं ओं जूं सः ओं भूर्भव स्वः। इस अनुलोम क्रमानुसार संपुटितकर जप करने से सिद्धि  प्राप्त होगी। फिर गायत्री मंत्र के प्रथम पाद और त्रयंबक मंत्र को प्रथमपाद को सझपुटित कर जप करें।


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