ये हौसलों की उड़ान है…

By: May 30th, 2019 12:02 am

पिता की मौत भी नहीं डगमगा पाई साक्षी के जज्बे को, दो साल पहले हो गई थी पिता की मौत, आईएएस बन गरीबों की मदद करना है लक्ष्य

नेरवा –‘कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता,एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।  इसी जज़्बे को लेकर आगे बढ़ रही है शहीद श्याम सिंह राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय नेरवा की जमा एक की छात्रा साक्षी।  भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाकर गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा का जज़्बा रखने वाली साक्षी पर दो साल पहले दुःखों का ऐसा पहाड़ टूट पड़ा कि उसकी पढ़ाई पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए।  दो वर्ष पूर्व 2017 में जब साक्षी अपने गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल कांदल में नवीं श्रेणी में पढ़ रही थी तो अकस्मात उसके पिता सुरेंद्र की मृत्यु हो गई।  तीन भाई बहन की पढ़ाई सहित घर का खर्च चलाने वाले उसके पिता सुरेंद्र के चले जाने के बाद दो बहनों साक्षी, ईताक्षी और सबसे छोटे भाई रोहण की पढ़ाई पर संकट के बादल खड़े हो गए,परंतु दोनों बहनों व  भाई  ने अपनी मां सत्या देवी, बुआ बिन्ता रणाइक एवं भारतीय सेना में कार्यरत चाचा सुभाष चंद द्वारा सुहानुभूति से भरे आश्वासन मिलने के उपरांत साहस दिखाते हुए अपनी पढ़ाई को निरंतर जारी रखने का निर्णय लिया।  अब बड़ी बहन ईताक्षी अपने गांव के स्कूल में बाहरवीं कक्षा में पढ़ रही है एवं छोटी बहन साक्षी और रोहण राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल नेरवा में क्रमशः जमा एक व आठवीं क्लास में पढ़ाई जारी रखे हुए हैं।  माता सत्या देवी गांव में साग सब्जियां उगा कर ईताक्षी की पढ़ाई और अपना घर का खर्च चला रही है तथा उसके चाचा सुभाष भी परिवार की मदद कर रहे हैं।  साक्षी ने सात सौ में से 658 अंक लेकर 94 फीसदी अंकों के साथ दसवीं की परिक्षा पास कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं।  साक्षी अपने भाई रोहण संग नेरवा पंचायत के गढ़ा गांव के समीप अपनी बुआ बिन्ता रणाइक के घर रहकर आगे की पढ़ाई जारी रखे हुए है।  उसने ने बताया कि जब उसने दसवीं की परिक्षा पास की तो उसके सामने अगली क्लास के लिए वर्दी और किताबों का इंतजाम करना एक चुनौती थी, क्योंकि जमा एक की एक किताब की कीमत सात आठ सौ रुपये तक थी।  परंतु परिजनों के सहयोग से इन सबका भी इंतजाम हो गया है।  वर्दी का इंतजाम बुआ बिन्ता ने कर दिया है, जबकि बड़ी बहन ईताक्षी ने जमा एक के पुराने छात्रों से लेकर किताबों का जुगाड़ भी कर दिया है।  साक्षी ने दिव्य हिमाचल के साथ बात करते हुए कहा कि अब वह पिछला समय भूल कर एवं पूरा ध्यान लगा कर उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती है, ताकि अपने लक्ष्य तक पंहुच सके।  आईएएस बन कर गरीब,मजलूम और जरूरतमंद लोगों की मदद करना साक्षी के जीवन का सपना है।  


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