विश्वकर्मा पुराण

By: May 4th, 2019 12:05 am

हे बादशायन! इसको सुनने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को ब्राह्मण बुलवाकर पुराण सुनने के लिए योग्य दिन तय करना चाहिए। फिर जिस दिन इसे सुनना चाहिए उसके अगले दिन ब्राह्मण को बुलाना, ब्राह्मण को बुलाकर स्वस्तिवाचन पूर्ण गणपति का पूजन करना , जिससे मंगल कार्य में आने वाले विग्रह नाश पाते हैं। इसके बाद सफेद वस्त्र के ऊपर अक्षर का मंडल बनाना तथा उस मंडल पर मंत्रोच्चारपूर्वक एक तांबे का कलश रखना और कलश के ऊपर चांदी के अथवा तांबे के पात्र में प्रभु श्रीविश्वकर्मा की मूर्ति का स्थापन करना चाहिए।  प्रभु की मूर्ति सोने की होनी चाहिए…

बादशायन का इस प्रकार का धर्मयुक्त तथा नीति वाला प्रश्न सुनकर शेषनारायण बोले, श्री विश्वकर्मा पुराण ये प्रभु श्रीविश्वकर्मा का ही स्वरूप है। अब मैं तुमसे उस पुराण के श्रवण की सब विधि कहता हूं। वह तुम ध्यानपूर्वक सुनो। किसी भी मनुष्य को जब अपनी सर्वशक्ति से ऐसे ही उस समय में यह पुराण सुनने की इच्छा करनी चाहिए। फिर मन में प्रभु श्रीविश्वकर्मा की पूर्ण भक्ति हो तथा प्रभु के प्रति जब पूर्ण श्रद्धा हो, तो तब ही ये पुराण सुनना चाहिए। इसको सुनने के लिए खास करके किसी भी महीने की त्रयोदशी तथा पूर्णिमा के दिन से इसको आरंभ करना चाहिए।हे बादशायन! इसको सुनने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को ब्राह्मण बुलवाकर पुराण सुनने के लिए योग्य दिन तय करना चाहिए। फिर जिस दिन इसे सुनना चाहिए उसके अगले दिन ब्राह्मण को बुलाना, ब्राह्मण को बुलाकर स्वस्तिवाचन पूर्ण गणपति का पूजन करना, जिससे मंगल कार्य में आने वाले विग्रह नाश पाते हैं।  इसके बाद सफेद वस्त्र के ऊपर अक्षर का मंडल बनाना तथा उस मंडल पर मंत्रोच्चारपूर्वक एक तांबे का कलश रखना और कलश के ऊपर चांदी के अथवा तांबे के पात्र में प्रभु श्रीविश्वकर्मा की मूर्ति का स्थापन करना चाहिए। प्रभु की मूर्ति सोने की होनी चाहिए। इसके बाद भगवान के जेमनेहाथ की तरफ चांदी की वास्तु की मूर्ति बनानी चाहिए, दाएं हाथ की तरफ ध्यानस्थ पांच ब्रह्मर्षियों की स्वर्ण की अथवा चांदी की प्रतिमा बनाकर रखनी तथा प्रभु के सन्मुख चांदी के हंस की प्रतिमा पधरानी इसके बाद मंत्रोच्चार सहित क्रमपूर्वक उन सबकी पूजा करनी, उसमें सबसे पहले वास्तु की फिर पांचों ब्रह्मर्षियों की इसके बाद भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद सूक्षम में प्रभु के वाहन हंसराज का पूजन करना चारों दिशाओं में दस दिग्पालों सहित भगवान के दिव्य आयुधों का पूजन करना। उसके बाद अखंड दीपक की स्थापना करना फिर उस दीपक का भी परम ज्योति स्वरूप प्रभु का पूजन करना चाहिए।  इस तरह इन सब देवताओं का अनेक उपचारों से पूजन करने के बाद प्रभु की पुस्तक में ज्ञानदेह रूपी पुराण का पूजन करना चाहिए। इसके बाद वाचक के आसन रूपी व्यास पीठ के ऊपर बैठकर पुराण का श्रवण कराने वाले ब्राह्मण का व्यास स्वरूप अथवा मेरे स्वरूप को मानकर उसका पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण को उस दिन सब श्रोताओं को केवल पुराण के माहात्म्य का श्रवण करना और पुराण वाचने वाले के साथ में एवं ब्राह्मण को महामंत्र का जप करने के लिए बैठाना। इसके बाद पुराण श्रवण के पहले दिन पांच ब्रह्मर्षियों की कथा तब पुराण वाचना, दूसरे दिन इलाचल महात्म्य से शुरू करके बज्र रचना तक की रचना का श्रवण करना चाहिए। तीसरे दिन गुप्तक्षेत्र महात्म्य से शुरू करके शिल्प प्रतिष्ठा तक पुराण वाचना, सातवें अध्याय में प्रभु का पृथ्वी के ऊपर अवतार हो उस समय में उत्तम प्रकार से सब उपचारों से प्रभु का पूजन करना चाहिए।  बारहवें अध्याय में ब्रह्मर्षियों सहित प्रभु का पूजन करना तथा सत्तारहवें अध्याय में सूर्यनारायण तथा रत्नादि का तथा बत्तीसवें अध्याय में वास्तु सहित प्रभु का पूजन करना। ये सब पूजन प्रभु की पुस्तक के रूप में ही करना। इसके बाद दूसरे दिन यानी पुस्तक सुनने के चौथे दिन प्रातःकाल में प्रभु का पूजन करना इसके बाद ग्रहों का स्थापना करके उनका पूजन करना चाहिए।


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