समरसता का पाठ पढ़ाता उपन्यास

By: May 26th, 2019 12:04 am

पुस्तक समीक्षा

उपन्यास का नाम :   अशोकसुंदरी

लेखक का नाम :     सुमितकुमारसंभव

प्रकाशक :            आथर्ज इंक पब्लिकेशंज

मूल्य :    275 रुपए

जया, विजया, लक्ष्मी, सुलक्षणा, दुर्गा, मांगी और माया। इन सभी पात्रों को काली और कालिका बनना है। और उपन्यास के अंत में सभी को ‘अशोकसुंदरी’ बन जाना है। यहां कई पुरुष पात्र भी हैं लेकिन चाकी के पाट में मुख्यतः स्त्री पात्रों की दलन गाथा प्रमुखता लिए हुए है। अरसे बाद एक उपन्यास समीक्षार्थ हाथ लगा।  ‘अशोकसुंदरी’। सुमितकुमारसंभव इसके लेखक हैं। रजाई में दुबके लेखक संभव ने कल्पनाओं को इतना उर्वर किया कि एक संपूर्ण उपन्यास आज पाठकों के हाथ है। उपन्यास के  आमुख में सुमित लिखते हैं कि 12 जनवरी, 2019 की रात 11 बजे हैं और बारिश हो रही है। और वह ख्यालों  के बादल में एक उपन्यास बुनते जा रहे हैं। उन्हें बिहार के धनबाद की सोनाली मुखर्जी का चेहरा बार-बार उत्तेजित कर रहा है। जोकि उन्होंने एक टीवी समाचार में देखा है। यह चेहरा तेजाब की आग में जला दिया गया था। और लेखक का गुस्सा लावा बनकर फूटा जा रहा था। तो सोनाली का चेहरा बिगाड़ने वालों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। तो कुमारसंभव ने भी कलम को खड़ग बनाकर समाज के उन भेडि़यों पर जोरदार चोट करने की ठानी। उपन्यास ‘अशोकसुंदरी’एक अति संवेदनशील विषय पर आधारित है और मानवता को बार-बार झकझोरता है। पाकिस्तान की एक टीवी पत्रकार के माध्यम से पूरी कहानी सुनाई जाती है। यही कि पत्रकार आबिदा परवीन जोकि अंतरराष्ट्रीय विषयों पर कवरेज करती हैं। एक दिन उसे भारत की लड़की का एक फोटो इंटरनेट पर मिलता है, वह उसे इत्मीनान से खंगालती है और अपने बोस के आदेश पर हिमाचल के धर्मशाला पहुंचती है। उपन्यास का सारा ताना-बाना धर्मशाला में बुना गया है। और अंत में कहानी यहीं पर मुकम्मल भी होती है। आबिदा परवीन धर्मशाला जेल में जया नाम की उस कैदी से मिलती है, जिसे दो दिन बाद फांसी पर लटकाया जाना है। जया का कसूर यही है कि तेजाब से उसका चेहरा जलाने वाले खुले घूम रहे हैं। उसके बाप को न्याय मांगते-मांगते खुदकुशी करनी पड़ती है और मां उसके गम में पागल हो जाती है। और एक दिन जया अपने गुनहगारों को मौत के घाट उतार देती है। पात्र जया को मुस्कराते हुए फांसी पर लटकाना फिर उसकी अस्थियों को पाकिस्तानी पत्रकार के हवाले कर देना, अपने आप में एक मुकम्मल ख्याल है, जो लेखक  को 12 जनवरी 2019 की रात को आया था । मैं समझता हूं कि सुमितकुमारसंभव ने अपने पात्रों से  वह संभव करवाया जो असंभव तो नहीं था लेकिन कठिन जरूर था। फिर भी प्रश्न उठ सकता है कि क़्या पाकिस्तानी पत्रकार धर्मशाला की जेल में आ सकती है। क्या धर्मशाला जेल में फांसी की व्यवस्था है और यह भी कि क्या हिंदोस्तान में महिला को फांसी होती है। खैर काली बनने को प्रेरित करते रहे लेखक के हर पक्ष का सामर्थ्य काबिल-ए-तारीफ है। उपन्यास अशोकसुंदरी को आथर्ज इंक पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। जिसमें 229 पन्ने हैं। मूल्य 275 रुपए है।


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