सियासी कथनी और करनी में अंतर

By: May 8th, 2019 12:06 am

मौलिक सिसोदिया

स्वतंत्र लेखक

 

वर्ष 1986 में भारी-भरकम बजट के साथ तत्कालीन सरकार द्वारा चलाए गए ‘गंगा एक्शन प्लान’ और अब मौजूदा सरकार के ‘नमामि गंगे’ के बावजूद गंगा की हालत साल-दर-साल बिगड़ती जा रही है। मां गंगा को गहन चिकित्सा इकाई में इलाज की आवश्यकता है, लेकिन हम ब्यूटी-सैलून में उनका शांगार करते रहते हैं…

इन दिनों लोकतंत्र का महाकुंभ आम चुनाव हो रहा है, जिसमें आशा है कि करीब 90 करोड़ लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। क्या यह आम चुनाव आम जीवन के अनेक पर्यावरणीय सरोकारों पर कोई कारगर पहल बना पाएंगे? भारत के दो प्रमुख दलों, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संकल्प पत्र और  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) के ‘हम निभाएंगे’ नामक घोषणा-पत्रों से इसका कोई साफ उत्तर नहीं मिलता। भाजपा के घोषणा-पत्र में जलवायु परिवर्तन को समर्पित खंड ही नहीं है, लेकिन ऊर्जा खंड में आश्चर्यजनक रूप से जलवायु शब्द है। पृष्ठ 25 पर घोषणा-पत्र कहता है कि भारत प्रभावशाली और जरूरी रोकथाम करके जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को दुनिया के समक्ष अत्यंत प्रभावी रूप से प्रस्तुत कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि वर्ष 2019 के ‘ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स’ के अनुसार भारत ‘जलवायु परिवर्तन प्रभावों’ के मामले में 14वां सबसे कमजोर देश है। दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणा-पत्र में पृष्ठ 51/52 पर ‘पर्यावरण, जलवायु-परिवर्तन, जलवायु लचीलापन और आपदा प्रबंधन’ पर समर्पित एक खंड है। इसकी शुरुआत में ही लिखा गया है कि ‘यह एक कड़वा सच है कि भारत का पर्यावरण बुरी तरह से बिगड़ चुका है।

वर्ष 2018 के ‘वैश्विक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक’ में भारत को 180 देशों में से 177वें स्थान पर रखा गया है। भाजपा सरकार ने इस गिरावट को रोकने के लिए पिछले पांच वर्षों में लगभग कुछ भी नहीं किया।’ वैसे वास्तविकता यह है कि कांग्रेस की सरकार का भी पर्यावरण पर कोई बेहतर रिकॉर्ड नहीं रहा है। वर्ष 2014 में भारत इसी सूची में 155वें स्थान पर था। भाजपा का घोषणा-पत्र कहता है कि ‘हमने वन और पर्यावरण संबंधी मंजूरी जारी करने में गति और प्रभावशीलता सुनिश्चित की है।’ जाहिर है मौजूदा सरकार ने खुले परामर्श, जन-सुनवाई के कानूनों और पर्यावरण को अनदेखा करते हुए चुनिंदा लाभार्थियों के व्यावसायिक हितों की खातिर जंगल, वन्यजीवों, जलीय जीवन, पहाड़ों, नदियों सहित प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना आसान बना दिया है। शिकागो विश्वविद्यालय के ‘ऊर्जा नीति संस्थान’ का कहना है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। दोनों पार्टियों के घोषणा-पत्र में जल-प्रबंधन के सभी कार्यों को एक साथ लाने के लिए एक नए जल मंत्रालय का गठन लक्षित है। सभी घरों में सुरक्षित पेयजल पहुंचाना दोनों पार्टियों की प्राथमिकता है, लेकिन भाजपा ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2024 की स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की है। कांग्रेस का घोषणा-पत्र एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसमें कहा गया है कि पानी की पहुंच और लोकतांत्रिक बंटवारे पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। वह बांधों और जल निकायों में भंडारण पर ध्यान केंद्रित करके भू-जल को फिर से भरने और राज्य सरकारों, नागरिक संगठनों, किसानों, अन्य उपयोगकर्ताओं, पंचायतों तथा ग्राम सभाओं को शामिल करते हुए जल प्रबंधन का एक बड़ा भागीदारी कार्यक्रम बनाएंगे। इस कार्यक्रम का उपयोग सार्वजनिक कार्यों को निष्पादित करने और बाढ़ व सूखे जैसी आपदाओं के प्रभाव को कम करने में किया जाएगा। घोषणा-पत्रों के ये प्रस्ताव चिकने, मोटे, रंगीन कागजों पर मुद्रित होकर असाधारण दिखते हैं, लेकिन जमीन पर एक विपरीत तस्वीर बनती दिखती है। हाल ही में संसद ने ‘केंद्रीय भू-जल बोर्ड’ द्वारा भारत के लिए आसन्न जल संकट की ओर इशारा करते हुए एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2007 से 2017 के बीच (दोनों दलों के शासन में) भू-जल संसाधनों की अंधाधुंध खपत के कारण भारत के भू-जल स्तर में लगभग 61 प्रतिशत की गिरावट आई है और देश का 62 प्रतिशत हिस्सा सूखे की चपेट में है। भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में उल्लेख किया है कि ‘मंत्रालय देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी नदियों को जोड़ने का अटल जी का सोचा हुआ महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम द्रुत गति से आगे बढ़ाएगा’, लेकिन तथ्य इसके ठीक विपरीत बोलते दिखते हैं। मुंबई और चेन्नई के ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ (आईआईटी) के एक ताजा अध्ययन में 103 वर्षों के (वर्ष 1901 से 2004 तक) मौसम के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि पिछले कुछ वर्षों में वर्षा में दस प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। नतीजे में महानदी, गोदावरी, माही, ब्राह्मणी, मेघना जैसी बड़ी नदियां भी पानी की कमी झेल रही हैं। यूपी, बिहार, असम जैसे राज्यों के बारिश, बाढ़ से पीडि़त होने वाले जिले ग्रीष्मकाल में सूखे से भी पीडि़त होते हैं। ऐसी परिस्थिति में कोई राज्य अपने पानी की एक बूंद दूसरी नदियों या राज्यों में प्रवाहित नहीं होने देगा। क्या यह परियोजना देश के जल-संकट को हल करने वाली होगी या जल-टकराव को और बढ़ावा देगी? क्या नदी-जोड़ की यह परिकल्पना सदियों पुराने आंकड़ों पर आधारित है, जो देश के नदी पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह कर देगी? कांग्रेस ने गंगा सहित अन्य नदियों की सफाई के लिए बजट आवंटन को दोगुना करने का वादा किया है।

‘हम गंगा एक्शन प्लान को लोगों के कार्यक्रम में बदल देंगे और इसे लागू करेंगे।’ यहां कांग्रेस गंगा के निर्बाध प्रवाह के बारे में चुप है, जो उनकी ही सरकार के दौरान स्वीकृत कई विशाल पनबिजली परियोजनाओं के कारण लगभग मौत की कगार पर है। वर्ष 1986 में भारी-भरकम बजट के साथ तत्कालीन सरकार द्वारा चलाए गए ‘गंगा एक्शन प्लान’ और अब मौजूदा सरकार के ‘नमामि गंगे’ के बावजूद गंगा की हालत साल-दर-साल बिगड़ती जा रही है। मां गंगा को गहन चिकित्सा इकाई में इलाज की आवश्यकता है, लेकिन हम ब्यूटी-सैलून में उनका शृंगार करते रहते हैं। भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में स्वच्छ गंगा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 2022 की स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की है, लेकिन इसी भाजपा सरकार के दौरान विश्वप्रसिद्ध पर्यावरण गुरु स्वामी सानंद उर्फ डा. जीडी अग्रवाल की मृत्यु को भारत अभी भूला नहीं है, जिन्होंने सरकार की अनदेखी के चलते 111 दिनों के आमरण उपवास के बाद 10 अक्तूबर 2018 को अपने जीवन का बलिदान कर दिया था। वह मां गंगा के लिए एक विशेष कानून, गंगा में रेत खनन पर प्रतिबंध और गंगा की मृत्यु के लिए जिम्मेदार परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे। अब स्वामी सानंद की लड़ाई को जारी रखते हुए युवा स्वामी आत्मबोधानंद आमरण अनशन पर हैं, उन्होंने जल-त्याग की घोषणा भी कर दी है, लेकिन सरकार उनकी ओर भी ध्यान नहीं दे रही।

मौजूदा आम चुनाव के अवसर पर यदि भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दों पर राष्ट्र को बहकाना जारी रखा, तो इनके प्रतिकूल प्रभावों से सवा-सौ करोड़ जनता को बचा पाना नामुमकिन साबित हो जाएगा। इन चुनावों का फैसला जो भी हो, नई सरकार को पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकी बहाली के एक सकारात्मक कार्यक्रम को युद्ध स्तरीय रणनीति से बढ़ावा देने की सख्त जरूरत है, ऐसा कार्यक्रम जो जलवायु को लचीला बनाता हो, जलवायु परिवर्तन के दैनिक खतरों और चरम घटनाओं के प्रति अनुकूल करने की प्रणाली की क्षमता को बढ़ाता हो। हमें असली ‘चैंपियंस ऑफ अर्थ’ चाहिए जो विश्व स्तर पर सोच सकें और कार्य कर सकें।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App