अपराध में प्रवासियों की भूमिका

By: Jun 24th, 2019 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

बैजनाथ

 

हिमाचल में होने वाले अनेक अपराधों की जड़ों में प्रवासियों की संलिप्तता से कहीं न कहीं शांत हिमाचल की वादियों के ईमानदार, अमन पसंद और कानून प्रिय नागरिकों के बीच भय का वातावरण निर्मित होता है, तो वहीं इन घटनाओं की प्रतिक्रिया स्वरूप लोगों का आक्रोशित होना स्वाभाविक भी है। विकास में क्षेत्रीय असमानता पलायन का मुख्य कारण है…

हिमाचल प्रदेश के सोलन में प्रवासी नेपाली द्वारा एक मासूम की हत्या प्रदेश की कोई इकलौती घटना नहीं है। इससे पहले भी महिलाओं से चेन स्नैचिंग, बच्चों का अपहरण, उनसे दुष्कर्म अथवा उनकी हत्याएं, वाहन चालकों से लूटपाट-हत्या, नशीले पदार्थों की सप्लाई जैसी खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं, लेकिन प्रदेश के माहौल को बिगाड़ने एवं कानून तथा व्यवस्था की स्थिति को तार-तार करने वाले अभी भी बेखौफ ऐसी वारदातों को लगातार अंजाम दे रहे हैं। पिछले दिनों देहरा कोर्ट में सेवाएं दे रही महिला न्यायाधीश पर एक प्रवासी युवक द्वारा दराट से हमला करने की कोशिश कोई सामान्य घटना नहीं है। हिमाचल में होने वाले अनेक अपराधों की जड़ों में प्रवासियों की संलिप्तता से कहीं न कहीं शांत हिमाचल की वादियों के ईमानदार, अमन पसंद और कानून प्रिय नागरिकों के बीच भय का वातावरण निर्मित होता है, तो वहीं इन घटनाओं की प्रतिक्रिया स्वरूप लोगों का आक्रोशित होना स्वाभाविक भी है। विकास में क्षेत्रीय असमानता पलायन का मुख्य कारण है। भारत में अंतर राज्य प्रवास और क्षेत्रीय विषमता पर एक अध्ययन में पाया गया है कि बीते कुछ दशकों में रोजगार के लिए पलायन बढ़ा है और इसके पीछे अविकसितता, गरीबी, स्थानीय अव्यवस्था, क्षेत्रीय विषमता, सामाजिक असमानता आदि मुख्य कारण रहे हैं। इसके अलावा गरीबी रेखा से नीचे होना, जातिगत विभाजन और असमानता, प्रति व्यक्ति आय में निम्नता,  सामाजिक-आर्थिक विषमता और रोजगार में कमी आदि अन्य कारक भी अंतर राज्य पलायन को बढ़ावा देते हैं।

भारत के आर्थिक सर्वे 2017 और नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 2011 की जनगणना के आधार पर देखें, तो आर्थिक कारणों की वजह से पिछले दशकों में भारत में एक राज्य से दूसरे राज्यों की तरफ प्रवासियों का प्रवाह बढ़ा है। 2001 में जहां यह संख्या 314.5 मिलियन थी, तो 2011 में यह आंकड़ा बढ़कर 453.6 मिलियन हो गया। औसतन हर साल 1 करोड़ 40 लाख लोगों का पलायन हो रहा है। अंतर राज्य प्रवासियों में हो रही बढ़ोतरी में 27 फीसदी उन लोगों की संख्या है, जो 20 से 29 वर्ष के आयुवर्ग के हैं। पिछले कई वर्षों से बिहार, झारखंड,  छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में आने वाले प्रवासियों का हिमाचल पसंदीदा ठिकाना बन चुका है। स्थानीय मिस्त्रियों और मजदूरों द्वारा निर्माण कार्यों से किनारा करने तथा निर्माण कला की नवीनतम बारीकियों को न सीखने और अपना काम तेजी से न निपटाने की आदत के चलते भी अब इन प्रवासियों ने संपूर्ण हिमाचल के गांव-कस्बों में अपने परमानेंट ठिकाने बना लिए हैं और मुंहमांगी दिहाड़ी मांगकर मोटी कमाई कर रहे हैं। निर्माण कार्य के अतिरिक्त दिन-प्रतिदिन बढ़ती इनकी आबादी ने बाजार के दूसरे छोटे-मोटे काम-धंधों यथा रेहड़ी-फड़ी, मूंगफली बेचना, सब्जियां-फल, पान-बीड़ी और रिक्शा-टैंपो आदि पर भी अपना प्रभुत्व कायम कर लिया है। यह सत्य है कि भारतीय संविधान देश के नागरिकों को पूरे देश में जाकर कहीं भी, किसी भी प्रकार का कार्य करने का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन आज हिमाचल प्रदेश में खुद जहां नौ लाख से ज्यादा बेरोजगार रोजगार पाने की बाट जोह रहे हों या पड़ोसी राज्यों में जाकर अपनी आजीविका कमा रहे हों, वहां पर प्रवासियों का अधिक संख्या में आकर हिमाचल के काम-धंधों पर अपना एकाधिकार स्थापित करना, हमारे युवा हिमाचलियों की रोजगार संभावनाओं को प्रभावित करता है। अंतर राज्य पलायन करके आए प्रवासियों की बढ़ती आबादी के बीच में आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों का भी घुस आना सामान्य बात है। यद्यपि थानों में इनके पंजीकरण आदि के निर्देश तो हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर पुलिस द्वारा स्वयं कितने प्रवासियों के रिकॉर्ड की छानबीन की जा रही है, यही विचारणीय विषय है। कई दफा नेपाली प्रवासियों द्वारा आपस में मारपीट, खून-खराबा और बलात्कार की खबरें अखबारों की सुर्खियों में पढ़ने को मिलती रहती हैं।

हिमाचल में स्थायी रूप से डेरा जमा चुके इन प्रवासियों की वजह से पर्यावरण संबंधी कई समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं। पिछले 35-40 वर्षों से राजस्थानी मजदूर अपने परिवारों के साथ पक्के घरों में न रहकर प्रदेश के लगभग सभी बड़े गांव-कस्बों और शहरों में झुग्गियां बसाकर निवास करते आ रहे हैं और अपनी दैनिक शौच-स्नान संबंधी गतिविधियों को खुले में अंजाम देते हैं। कुछ ऐसी ही समस्याएं अन्य राज्यों से आए मजदूरों द्वारा भी खड़ी की जा रही हैं, एक-एक कमरे में 10-12 लोगों का रहना, पर्याप्त पानी न होने अथवा गैस कनेक्शन न होने के चलते खुले में शौच करना और लकडि़यां जलाना तथा ऊंची-ऊंची आवाज में शोर करना, दारू पीकर आपस में मारपीट करना और झगड़ना इनकी सामान्य प्रवृत्ति है, जिस वजह से आस-पड़ोस के रहने वाले शांतिप्रिय हिमाचलियों को मानसिक संताप झेलना पड़ता है। शायद ही कभी स्थानीय पुलिस उनकी गतिविधियों और कार्य प्रणाली की छानबीन करती हो या गश्त करती मिले। ऐसा भी देखने में आता है कि हालांकि इनके बच्चे भी पढ़ने में तेज-तर्रार होते हैं, लेकिन प्रायः अपने ही काम-धंधों में जबरदस्ती लगाने के चक्कर में इनके अभिभावक आठवीं कक्षाओं से आगे अपने बच्चों को पढ़ने की इजाजत नहीं देते हैं और बालश्रम को भी बढ़ावा देते हैं।

आज अकेले बीबीएन में ही प्रवासियों की संख्या दो लाख से ज्यादा है, तो पूरे हिमाचल में कितनी होगी, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। यह सही है कि मानव विकास किसी भी लोकतंत्रात्मक स्वरूप में सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता में रहता आया है, लेकिन आज जरूरत इस बात की है कि राज्य या केंद्र सरकार के स्तर पर इनके लिए कोई राज्य स्तरीय अथवा राष्ट्रीय नीति बनाई जाए, ताकि स्थानीय आबादी और प्रवासी लोगों के बीच सामाजिक सौहार्द बरकरार रह सके, साथ ही स्थानीय युवाओं की रोजगार संबंधी चिंताओं का निराकरण भी हो सके।


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