आधुनिक बयार में सिकुड़ा मेला स्थल

By: Jun 4th, 2019 12:05 am

नालागढ़—हंडूर रियासतकाल से करीब 500 सालों से मनाए जा रहे ऐतिहासिक मंगला दे मेले का स्थल औद्योगिकरण की बयार में कम पड़ गया है। मंदिर के आसपास ही छात्र स्कूल सहित दुकानें, बैंक व अन्य भवन बन गए हैं। आसपास भवनों व अन्य निर्माण होने के कारण इस स्थान के बचे भाग में ही दुकानदार अपनी दुकानें सजाने के लिए प्रयोग में लाते हैं, जबकि मेले का स्थल कम होने के कारण अब सड़कों पर मेला सजने लगा है। रामशहर मार्ग पूरी तरह से दुकानों से भरा रहता है, जिससे खरीददारों सहित श्रद्धालुओं को मंदिर में आने जाने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तीसरे मंगलवार को स्थानीय प्रशासन द्वारा लोकल हॉलीडे घोषित किया गया है और तीसरे मेले में खूब भीड़ रहती है, जिसके चलते मंगलवार को यहां तिल धरने को जगह नहीं रहेगी। जानकारी के अनुसार इस मेले में औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन के ही नहीं, अपितु पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा तक के लोग यहां शीश नवाने आते है। हंडूर रियासतकाल से करीब पांच सौ सालों से शुरू हुए इस ऐतिहासिक मंगला दे मेले में माता के मंदिर में शीश नवाने की चर्म रोगों से उपचार की मान्यता को लेकर बीबीएन क्षेत्र के लोग अपने परिवार सहित बच्चों को माता के दर्शन करवाने व शीश नवाने के लिए आते है, लेकिन तीसरे व चौथे मंगलवार को लोग भारी संख्या में यहां दर्शन करने आते है, लेकिन लोगों को यहां जगह कम पड़ जाती है। नालागढ़-रामशहर मार्ग पर शीतला माता मंदिर के पास चारों ओर मकान, दुकानें, स्कूल, बैंक, गेस्ट हाउस, भवन आदि स्थापित हैं, जिसके चलते मेले के लिए जगह कम पड़ गई है। बता दें कि हंडूर रियासतकाल से मनाए जा रहे ऐतिहासिक मंगला दे मेले का चलन करीब पांच सौ सालों से चला आ रहा है, लेकिन औद्योगिकरण और आधुनिकीकरण के चलते मेला स्थल सिकुड़ गया है और मेला स्थल पर अब लोगों ने नई कंस्ट्रक्शन कर दी है, जिससे मेला स्थल सिकुड़ गया है। मेला स्थल के समीप एक ओर, जहां छात्र स्कूल का निर्माण किया गया है, वहीं बैंक व अन्य दुकानों व भवनों का यहां निर्माण हुआ है, जिससे  मेला स्थल बहुत ही कम पड़ गया है। सुबह से ही लोग माता के दर्शनों के लिए आने शुरू हो जाते है और यहां भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि यहां मेला स्थल बहुत छोटा हो जाता है। नालागढ़ विकास मंच के अध्यक्ष नरेश घई ने कहा कि शीतला माता परिसर के पास वन विभाग की भूमि है, जिसे परिषद अपने नाम करवाने की मांग कर रही है। उन्होंने कहा कि भूमि परिषद के नाम स्थानांतरित होने के बाद इसी स्थल को मेले के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।


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