इंस्टाग्राम पर पहाड़ी की पहचान ‘बांकी बिट्टी’

By: Jun 3rd, 2019 12:02 am

कुछ ही दिनों में तीन हजार के पार हुई फॉलोअर्ज की संख्या; फेसबुक पर पतरोड़े, धाम और नाटी की चर्चा

 पालमपुर —इंस्टाग्राम पर पंजाबी सहित देश की अन्य भाषा के अकाउंट्स के बीच पहाड़ी भाषा का एक अकाउंट तेजी से अपनी पहचान बनाता जा रहा है। ठेठ पहाड़ी नाम से बनाया गया ‘बांकी बिट्टी’ पेज फेसबुक पर खासकर हिमाचल की मिट्टी से जुड़े लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है, तो इंस्टाग्राम पर भी फोलोअर्ज की संख्या लगातार बढ़़ रही है। ऐसे तो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर हिमाचली नामों से जुड़े काफी अकाउंट हैं, लेकिन ‘बांकी बिट्टी’ अपने अलग नाम से खास पहचान कायम कर रही है। इस समय तक बांकी बिट्टी के फेसबुक पेज से तीन हजार के करीब लोग जुड़ चुके हैं, तो इंस्टाग्राम अकाउंट पर फोलोअर्ज की तादाद साढ़े तीन हजार को छू रही है। सोशल नेटवर्किंग के बढ़ते दौर में पहाड़ के लोगों को पहाड़ी से जोड़े रखने का यह बेहतरीन प्रयास है और पहाड़ व पहाड़ी भाषा से जुड़े शब्दों व व्यंग्यात्मक चित्रों को खूब पसंद किया जा रहा है। मसलन पतरोड़े शब्द जब पहले-पहल बांकी बिट्टी पर नजर आया, तो हिमाचल से कोसों दूर बैठे लोगों को भी घर की याद करवा गया। कभी यहां धाम से जुड़े व्यंजनों की जानकारी पर लोगों से सवाल पूछे जा रहे हैं, तो ‘चली पेयी लुर-लुर करना रड़काट’ और ‘लोकां क्या गलाना कदई बरुड़ी जनानी है’ जैसे व्यंग्य पहाड़ी लहजे का मजा दे रहे हैं। इतना ही नहीं, बांकी बिट्टी खासकर नई पीढ़ी को काफी कुछ नया भी सिखा रही है, मसलन पेज से जुड़े लोगों को अपने नाम को टांकरी में लिखने का अवसर दिया जा रहा है। इंस्टाग्राम पर बांकी बिट्टी से जुड़ी दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा रिया कहती हैं कि यहां पर बड़े सहज अंदाज व सलीके से पहाड़ी भाषा से रू-ब-रू होने का अवसर मिल रहा है। कुछ ऐसे पहाड़ी शब्द भी दिख रहे हैं, जो आम बोलचाल में सुनने को नहीं मिलते। यह पहाड़ी लोगों को पहाड़ी भाषा व संस्कृति से जोड़ने का एक अच्छा प्रयास है।

नगरोटा की अंजलि की पहल

पहाड़ी संस्कृति से रू-ब-रू करवा रही ‘बांकी बिट्टी’ का संचालन नगरोटा बगवां की अंजलि कर रही हैं। सैनिक परिवार से संबंध रखने वाली अंजलि की प्राथमिक शिक्षा योल के सेना स्कूल से हुई और उन्होंने कांगड़ा स्थित एनआईएफटी से फैशन कम्युनिकेशन का कोर्स किया है। यूरोप में इंटरनशिप करने के बाद अंजलि ने दो साल तक बंगलूर में नौकरी की ओर फिलवक्त वह अपने घर से ही फ्रीलांसर के तौर पर काम कर रही हैं। अंजली कहती हैं कि वह अनेक प्रदेशों में घूमीं और यह जाना कि हर प्रदेश के लोग अपनी संस्कृति से जुड़े होने पर गर्व और अपनी भाषा का उपयोग करने में गर्व महसूस करते हैं, जबकि हिमाचल में लोग विशेषकर युवा वर्ग पहाड़ी भाषा से दूर होता जा रहा है। इसका एक बड़ा कारण बच्चों का यहां से दूसरे प्रदेशों का रुख करना भी है। इसी बात से अंजलि को ख्याल आया कि वह पहाड़ी भाषा के लिए कुछ कर सकती हैं और इंस्टाग्राम पर ‘बांकी बिट्टी’ का जन्म हुआ।


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