खेलो इंडिया में खेल सुविधाओं की कमी

By: Jun 29th, 2019 12:05 am

राकेश शर्मा

लेखक, जसवां, कांगड़ा से हैं

इसके लिए बदलते हुए हालात के अनुरूप एक नई खेल नीति की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। पिछले लगभग आठ सालों से नई खेल नीति को लेकर अखबारों में दिए जाने वाले बयानों से ज्यादा और कुछ भी नहीं हुआ है। जब भी कोई खिलाड़ी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतता है, तो उसकी यह जीत कई आने वाले खिलाडि़यों के लिए प्रेरणा का साधन बन जाती है…

खेलों से भारत का पुराना नाता रहा है। कबड्डी, शतरंज और खो-खो जैसी खेलें दुनिया को देने वाले इस देश ने आजादी से पहले ही खेलों में अपना रुतबा कायम कर लिया था। आजादी से पहले ही पूरे विश्व में भारत की हाकी प्रसिद्ध थी। भारत ने विश्व में खेलों के सबसे बड़े  महाकुंभ ओलंपिक में 1920 से 1980 तक हुए 12 ओलंपिक खेलों में 11 पदक जीते थे। इससे भी बढ़कर भारतीय हाकी की दुनिया तब कायल हो गई थी, जब 1928 से 1956 तक  लगातार छह ओलंपिक स्वर्ण पदक भारतीय हाकी टीम द्वारा जीते गए। हाकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा मिलने में हाकी के इसी प्रदर्शन का योगदान रहा है। मेजर ध्यान चंद के शानदार खेल की दुनिया कायल थी। हिटलर जैसा तानाशाह भी हाकी के इस जादूगर का प्रशंसक था। उस समय देश में खेलों के प्रति कोई सकारात्मक माहौल नहीं था, क्योंकि  बंटवारे और तीन सौ सालों की गुलामी से देश अभी पूरी तरह से उबर नहीं पाया था। विपरीत हालात में भी खिलाडि़यों के संघर्ष और मेहनत ने भारत को खेलों के आकाश में एक सितारे की तरह चमका दिया था। इसके बाद सन् 1983 में भारत ने खेलों में एक और इतिहास रच दिया, जब भारतीय क्रिकेट टीम ने क्रिकेट विश्व कप अपने नाम कर लिया। उसके बाद तो जैसे खेल का दूसरा नाम ही क्रिकेट हो गया।

भारत में क्रिकेट की दीवानगी आज भी बहुत है। इसी दौरान एक समय ऐसा भी आया, जब सचिन तेंदुलकर और क्रिकेट एक-दूसरे के पर्यायवाची बन गए। बीते कुछ सालों में समय ने फिर करवट ली है। देश में हाकी और क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में भी देश के मेहनती और जुझारू खिलाडि़यों के द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया जाता रहा है। इन खेलों में मुख्य रूप से कबड्डी, बॉक्सिंग, रेस्लिंग, टेनिस, वेट लिफ्टिंग, निशानेबाजी, एथलेटिक्स और बैडमिंटन आदि प्रमुख हैं। खेलों और खिलाडि़यों के विकास के मद्देनजर जनवरी 2018 में केंद्र सरकार द्वारा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शुरुआत खेलो इंडिया कार्यक्रम के रूप में की गई। निशानेबाजी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाने के बाद राजनीति में आए देश के तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के प्रयासों से इस महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विभिन्न खेलों में देश के उभरते हुए खिलाडि़यों की पहचान करके उनको प्रशिक्षण की उच्च स्तरीय सुविधा देकर अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए तैयार करना है। ऐसे चयनित खिलाडि़यों को उनके प्रशिक्षण के लिए सरकार की तरफ से आठ वर्षों तक प्रतिवर्ष पांच लाख रुपए देने की घोषणा की गई, ताकि खिलाड़ी के विकास में कमजोर आर्थिकी कोई बाधा न बन सके। यह कार्यक्रम खेलो इंडिया के नाम से शुरू किया गया। सरकार द्वारा दी जाने वाली इस मदद को हासिल करने के लिए खिलाड़ी को कड़ी मेहनत करते हुए ब्लॉक स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता से शुरू करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करना होता है। यहीं से खिलाड़ी का या टीम का चयन खेलो इंडिया गेम्स के लिए होता है। इसके बाद खेलो इंडिया गेम्स में मेडल जीतने वाले ही इस सरकारी मदद के हकदार बनते हैं। शुरुआती वर्ष में इन खेलों में केवल अंडर 17 श्रेणी स्कूलों के विद्यार्थी ही हिस्सा ले सकते थे, लेकिन अब इसको दो श्रेणियों अंडर 17 और अंडर 21 में बांट दिया गया है, ताकि कालेज के विद्यार्थी भी इस योजना से लाभान्वित हो सकें। वर्ष 2019 से इन खेलों को खेलो इंडिया यूथ गेम्स का नाम दे दिया गया। पूरे भारत के साथ हिमाचल प्रदेश में भी इस योजना की शुरुआत की गई। पिछले दो वर्षोंमें हिमाचल प्रदेश का खेलो इंडिया गेम्स में कबड्डी को छोड़कर अन्य खेलों में प्रदर्शन औसत से कम रहा है। इस वर्ष हिमाचल प्रदेश ने मेडल टेली में तेइसवां स्थान हासिल किया था। हिमाचल में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, सिर्फ जरूरत है उनको तराशने की और सही प्लेटफार्म प्रदान करने की। हिमाचल प्रदेश अभी भी अपनी बीस वर्ष पुरानी खेल नीति के सहारे खेलों में मॉडल राज्य बन कर उभर रहे हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्य से प्रतियोगिता करके खेलो इंडिया में अच्छे प्रदर्शन की कल्पना कर रहा है। जब तक ग्रामीण स्तर पर  खेल सुविधाओं का विकास नहीं हो पाता, तब तक ऐसी कल्पना करना व्यर्थ है। समाज की सहभागिता से खेलों के उत्थान की जरूरत है। सरकारी विद्यालयों में जो खेल के मैदान बने हैं, वे विद्यालय बंद होने के साथ ही खिलाड़ी की पहुंच से दूर हो जाते हैं और निजी स्कूलों की खेलों के प्रति निष्क्रियता जगजाहिर है।

वर्तमान में इनडोर खेलों की प्रदेश में सबसे ज्यादा दुर्दशा हो रही है। इन खेलों में सुविधाओं की कमी खेलों के भविष्य पर सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। प्रदेश में  खेलों के विकास के लिए मैदानों के निर्माण के साथ अलग-अलग खेलों के कोच नियुक्त किए जाने चाहिएं, ताकि बच्चे किताबों में पढ़ना छोड़कर मैदान में जाकर खेलों को अपने जीवन में अपना सकें। खेलो इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत के समय खेलों के विकास के लिए कुछ अन्य उद्देश्यों की प्राप्ति का भी लक्ष्य रखा गया था। इनमें मुख्य रूप से खेल के मैदानों का विकास,  सामुदायिक कोचिंग का प्रावधान और राज्य स्तरीय खेलो इंडिया केंद्रों की स्थापना करना था। यह उद्देश्य खेलों के विकास और खिलाडि़यों के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए निश्चित किए गए थे, लेकिन अभी तक इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उठाए गए कदम अदृश्य हैं। हिमाचल प्रदेश की अगर बात की जाए, तो पिछले दो सालों में खेलो इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप खेलों के विकास के लिए कुछ भी देखने को नहीं मिल रहा है।

इसके लिए बदलते हुए हालात के अनुरूप एक नई खेल नीति की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। पिछले लगभग आठ सालों से नई खेल नीति को लेकर अखबारों में दिए जाने वाले बयानों से ज्यादा और कुछ भी नहीं हुआ है। जब भी कोई खिलाड़ी देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतता है, तो उसकी यह जीत कई आने वाले खिलाडि़यों के लिए प्रेरणा का साधन बन जाती है। यह प्रेरणा ही आज सबसे ज्यादा जरूरी है, ताकि खेलों की यह प्रथा जारी रह सके। नई-नई मोबाइल और इंटरनेट की तकनीकों के प्रति सजग और संवेदनशील हमारी युवा पीढ़ी  खेलों के प्रति अचेत होती जा रही है। खेलें मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक क्रियाओं को बढ़ाने  का एक अच्छा साधन हैं। इसलिए खेल सुविधाओं के विकास के प्रति सरकार को सक्रियता के साथ कार्य करके प्रदेश की युवा पीढ़ी को सही दिशा देने की जरूरत है।


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