जमकर बरसे खूंदो के तीर
मतियाना-माहेश्वरी देवी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला मतियाना के खेल मैदान में आयोजित पारंपरिक ठोडा मेला सोमवार को संपन्न हुआ। मेले में ठोडा दल शाठी नगेइक बलसन तथा ठोडा दल पाशी कडैल हिमरी कोटखाइ के खूंदो ने तीर कमान का जौहर दिखाया। खंूदो के खिलाडि़यों ने एक दूसरे को ललकारते हुए तीर कमान के उमदा खेल का प्रदर्शन किया और शाठी और पाशी खूंदो ने जमकर एक दूसरे पर तीरो के प्रहार चलाए। मां माहेश्वरी पारंपरिक सांस्कृतिक ठोडा दल एवं कल्याण समिति शडी मतियाना द्वारा आयोजित मेले के समापन अवसर पर ठियोग के होटल व्यवसायी वेद प्रकाश गौतम मुख्यअतिथि के रूप में उपस्थित रहे। मुख्यातिथि ने कहा कि मेले हमारी प्रचीन संस्कृति की पहचान है और मेलो के आयोजन से प्राचीन परंपराओ के निर्वहन के साथ-साथ आपसी मेल जोल और भाइचारा बढ़ता है। उन्होंने सफल आयोजन के लिए क्लब को बधाई दी और 31 हजार की सहयोग राशि भी प्रदान की। क्लब के सलाहकार अधिवक्ता मदन चौहान ने मुख्यातिथि, अन्य गणमान्य लोगों तथा दोनो खूंदो सहित भारी संख्या में उपस्थित जनता का मेले में आने के लिए आभार जताया। इस अवसर पर एसडीएम ठियोग एमडी शर्मा, ग्राम पंचायत कलजार प्रधान सुमित्रा चंदेल, अधिवक्ता सुरेश वर्मा, बाल कृष्ण बाली, ठोडा दल के प्रधान रमेश केवला,दुर्गा सिंह ठाकुर,रंजीत ठाकुर,चिमना राम,नंद लाल सहित अन्य लोग उपस्थित रहे। ठोडा हिमाचल की प्राचीन पहाड़ी संस्कृति की पहचान है जोकि जिला शिमला, जिला सिरमौर में आज भी धूमधाम से मनाया जाता है। ठोडे का खेल महाभारत के युद्ध पर आधारित है प्राचीन काल से ही सभी परगनों के खूंदो को दो दलों शाठी (कौंरव) पाशी (पांडव) में बांटा गया है। नियमानुसार एक ही दल के दो खूंद आपस में ठोडे का खेल नहीं खेल सकते क्योंकि दल के नियम के अनुसार इनका आपस में भाईचारा होता है। नाचने के लिये प्रयोग होने वाले विशेष शस्त्र को डांगरू कहते है तथा खेलने के लिये प्रयोग होने वाले धनुष को धौंठी व तीर को शरी कहा जाता है। खिलाड़ी मोटे कपडे़ से बनी सलवार तथा चमडे के बूट लगा कर ठोडा खेलते है। नियम के अनुसार बारी-बारी से एक दूसरे के उपर केवल घुटनों से नीचे शरी से पीछे से प्रहार करना होता है अगर कोई ऊपर प्रहार करता है तो वो फाउल माना जाता है।
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App