ज्ञान और आस्था

By: Jun 29th, 2019 12:02 am

श्रीराम शर्मा

एक पंडित जी थे। उन्होंने एक नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया हुआ था। पंडित जी बहुत विद्वान थे। उनके आश्रम में दूर-दूर से लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे। नदी के दूसरे किनारे पर लक्ष्मी नाम की एक ग्वालिन अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी। पंडित जी के आश्रम में भी दूध लक्ष्मी के यहां से ही आता था। एक बार पंडित जी को किसी काम से शहर जाना था। उन्होंने लक्ष्मी से कहा कि उन्हें शहर जाना है इसलिए अगले दिन दूध उन्हें सुबह जल्दी ही चाहिए। लक्ष्मी अगले दिन जल्दी आने का वादा करके चली गई। अगले दिन लक्ष्मी ने सुबह जल्दी उठकर अपना सारा काम समाप्त किया और जल्दी से दूध उठाकर आश्रम की तरफ निकल पड़ी। नदी किनारे उसने आकर देखा कि कोई मल्लाह अभी तक आया ही नहीं था। लक्ष्मी को आश्रम तक पहुंचने में थोड़ी देर हो गई। आश्रम में पंडित जी जाने को तैयार खड़े थे। लक्ष्मी को देखते ही उन्होंने लक्ष्मी को डांटा और देरी से आने का कारण पूछा। लक्ष्मी ने भी बड़ी मासूमियत से पंडित जी से कह दिया कि नदी पर कोई मल्लाह नहीं था, मैं नदी कैसे पार करती? इसलिए आने में देर हो गई।पंडित जी गुस्से में तो थे ही, उन्हें लगा कि लक्ष्मी बहाने बना रही है। उन्होंने भी गुस्से में लक्ष्मी से कहा, क्यों बहाने बनाती है?

लोग तो जीवन सागर को भगवान का नाम लेकर पार कर जाते हैं, तुम एक छोटी सी नदी पार नहीं कर सकती? पंडित जी की बातों का लक्ष्मी पर बहुत गहरा असर हुआ।दूसरे दिन भी जब लक्ष्मी दूध लेकर आश्रम जाने निकली तो मल्लाह नहीं था। उसने भगवान को याद किया और मन में उनका नाम लिया और पानी की सतह पर चलकर आसानी से नदी पार कर ली।इतनी जल्दी लक्ष्मी को आश्रम में देख कर पंडित जी हैरान रह गए। उन्होंने लक्ष्मी से पूछा, तुमने आज नदी कैसे पार की है?लक्ष्मी ने बड़ी सरलता से कहा, पंडित जी आपके बताए हुए तरीके से ही मैंने नदी पार कर ली। मैंने अपने मन में भगवान का नाम लिया और पानी पर चलकर नदी पार कर ली। पंडित जी को लक्ष्मी की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने लक्ष्मी से फिर पानी पर चलने के लिए कहा। लक्ष्मी नदी के किनारे गई और उसने भगवान का नाम जपते-जपते बड़ी आसानी से नदी पार कर ली।पंडित जी हैरान रह गए। उन्होंने भी नदी पार करनी चाही। पर नदी में उतरते वक्त उनका ध्यान भगवान के नाम की बजाय अपनी धोती को गीली होने से बचाने में लगा था। वह पानी पर नहीं चल पाए और धड़ाम से पानी में गिर गए। कहने का मतलब यह है कि भगवान में सच्ची आस्था हो तो रास्ता चाहे कितना भी कांटों भरा क्यों न हो इनसान अपनी मंजिल पर पहुंच ही जाता है। उस गरीब ग्वालिन के मन में ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और विश्वास था, इसलिए वह आसानी से भगवान का नाम जपते-जपते पानी में उतर गई। उसके मन में भगवान पर अटूट विश्वास था इसलिए वह बिलकुल भी नहीं घबराई और आसानी से पार चली गई।


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