पर्यावरण बचाने को सब आएं आगे

By: Jun 6th, 2019 12:01 am

पर्यावरण दिवस पर कार्यशाला में विशेषज्ञों ने रखे विचार 

शिमला – आम तौर पर लोग सोचते हैं कि पर्यावरण की समस्या केवल प्रदूषण है और पहाड़ों में पर्यावरण संबंधी समस्याएं शहरों के मुकाबले कम हैं। मगर असलियत इसके ठीक विपरीत है। वायु प्रदूषण तो केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा है। जब जल, जंगल, जमीन, जानवर और जन  इनके बीच का रिश्ता और संतुलन बिगड़ जाता है ,तो हम इसको पर्यावरण संकट मान सकते हैं  । इससे न केवल प्रकृति बल्कि मानव जीवन, समाज, अर्थव्यवस्था और यहाँ तक की हमारे मनोविज्ञान पर भी असर पड़ता है। यह विचार विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में बुधवार को शिमला में आयोजित वर्कशाप के दौैरान विशेषज्ञों ने रखें।  हिमधरा समूह की मांशी आशर और सुमित महर के साथ मुद्दे पर अपने विचार रखे । उन्होंने ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में काफी अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि हिमालय, जो दुनिया का सबसे बड़ा जल संग्रह है, जिस पर आठ देशों के सौ करोड़ से अधिक लोग निर्भर हैं, के हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं, नदियां और भू-जल के स्रोत सूख रहें हैं। हिमधरा समूह के सुमित महार ने किन्नौर के लिप्पा  का उदाहरण देते हुए बताया कि यहां का जनजातीय समाज अपने अस्तित्व और आजीविका को बचाने के लिए  दस वर्षों से काशंग बिजली परियोजना  के खिलाफ संघर्ष कर रहा है, परंतु सरकार स्थानीय लोगों के वन भूमि पर कानूनी अधिकार होने के बावजूद इस परियोजना को बनाने पर तुली हुई है। हिमधरा समूह के सदस्यों ने बताया कि  यदि वनों का संरक्षण करना है, तो स्थानीय लोगों को इन संसाधनों पर अधिकार देने होंगे। पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों की भागीदारी अनिवार्य है। परियोजना और नीति बनाने में भी जनता और   का पक्ष होना चाहिए।

 


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