पिपलू मेले में टमक की धमक आज भी कायम

By: Jun 14th, 2019 12:05 am

बंगाणा—निर्जला एकादशी को सोलह सिंगी धार के आंचल स्थित भगवान नरसिंह के ऐतिहासिक स्थान पिपलू में आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में आज भी पुरातन संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है। बड़ी ही श्रद्धा के साथ भगवान नरसिंह के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालु पुरातन समय से टोलियां बनाकर आज भी पिपलू पहुंचते हैं। नाच-गाकर भगवान नरसिंह के गुणगान करते हुए ये श्रद्धालु कुटलैहड़ क्षेत्र के विभिन्न गांवों से ढ़ोलकी-चिमटा व अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ चलकर मंदिर पहुंचते है तथा मंदिर की परिक्रमा कर प्राचीन पिपल के नीचे बैठकर भगवान की वंदना करते हैं। हरोट गांव से आई एक ऐसी ही टोली के सदस्य सतपाल ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है तथा जब से उन्होंने होश संभाला है तभी से वे स्थानीय लोगों को टोली बनाकर यहां आते देख रहे हैं। इसी तरह बैरी हटली गांव से आई एक अन्य टोली के सदस्य रोशन लाल ने बताया कि वह भी पिछले लगभग 30 वर्षों से लगातार टोली के साथ पिपलू मेले में आ रहे हैं। उनका कहना है कि यह परंपरा वर्षों पुरानी है तथा आज भी इसे जीवंत रखने का प्रयास किया जा रहा है। मेले में कोलका से आई टोली के सदस्य रमेश ने बताया कि बदलते वक्त के साथ यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी है। इसके संरक्षण की जरूरत पर बल दिया। पिपलू मेले में टमक की धमक आज भी है कायम है। मेले में जहां श्रद्धालु पिपलू की पूजा-अर्चना के साथ-साथ टमक बजाना भी नहीं भूलते हैं। टमक की यह परंपरा सदियों पुरानी है तथा अभी भी पिपलू मेले में इसे लोगों ने संजोए रखा है। स्थानीय निवासी महेंद्र कुमार का कहना है कि पिपलू मेले में वह टमक बजाना नहीं भूलते हैं तथा टमक की थाप पर झूमने का एक अलग अनुभव रहता है। उन्होंने कहा कि टमक बजाने को शुभ माना जाता है तथा कई महत्त्वपूर्ण कार्य भी टमक बजाकर ही शुरू होते हैं। उन्होंने कहा कि पिपलू मेले का भी शुभारंभ मुख्यातिथि द्वारा टमक बजाकर किया जाता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App