बढ़ती आबादी के खतरे

By: Jun 29th, 2019 12:03 am

जीवन धीमान

नालागढ़

‘भीड़’ और ‘लाइन’ हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनती जा रही है। आज आप कहीं भी चले जाएं- अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बैंक, बाजार, सिनेमा, मॉल, सरकारी संस्थानों आदि हर जगह भीड़ का एक सैलाब देखने को मिलता है। हमारा हाल यह है कि हम 3-जी, 4-जी मोबाइल, फेसबुक, व्हाट्सऐप, गूगल, नई गाडि़यों, कैमरे, मोबाइल ऐप्स, नए कपड़ों आदि के बारे में तो नई से नई जानकारी रखते हैं, परंतु बढ़ती जनसंख्या और उसके परिणामों के प्रति बिलकुल सजग नहीं हैं। इस कारण हमारे देश की आबादी प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। शिक्षा और जागरूगता में कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। आलम यह है कि भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्वि पर रोक नहीं लगाई, तो वह 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। भारत की जनसंख्या बीते एक दशक में 18.1 करोड़ बढ़कर अब 1.25 अरब हो गई है। जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में पुरुषों की संख्या अब 62.37 करोड़ और महिलाओं की संख्या 58.64 करोड़ है। भारत कितना भी प्रगति कर रहा हो या शिक्षित होने का दावा करता हो, पर जमीनी हकीकत में अब भी उसमें जागरूकता नाममात्र की है। जागरूकता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए। ‘हम दो, हमारे दो’ का नारा लगाया गया, लेकिन लोग ‘हम दो, हमारे दो’ का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं और तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। अब भारत सरकार ने नया नारा दिया है- ‘छोटा परिवार, संपूर्ण परिवार’। छोटे परिवार के कई फायदे हैं – बच्चों को अच्छी परवरिश मिलती है। अच्छी शिक्षा से एक बच्चा दो बच्चों के बराबर कमा सकता है। इसलिए दो बच्चे परिवार नियोजन, लड़का-लड़की भेदभाव, लड़की की शिक्षा जरूरी, सही उम्र में शादी, लिंग अनुपात की जानकारी आदि विषयों के प्रति हमें अपनी नौजवान पीढ़ी को सचेत भी करना होगा, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या ने बहुत सी भयानक और अनसुलझी समस्याओं को भी जन्म दिया है, जिससे वक्त रहते निजात पाने में हम शुरू से विफल रहे हैं। आइए संकल्प लें कि हम अपने और आसपास के लोगों में यह जागरूकता फैलाएं कि वे भी छोटा परिवार चुनें और देश की तरक्की में भागीदार बनें।


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