मृत्युंजय जप कैसे करें

By: Jun 22nd, 2019 12:05 am

जब मायाशक्ति क्रियाशील रहती है, तब उसका अधिष्ठान महाशक्ति सगुण कहलाती है। जब वह महाशक्ति में मिली रहती है, तब महाशक्ति निर्गुण है। इन अनिर्वचनीया परमात्मारूपा महाशक्ति में परस्पर विरोधी गुणों का नित्य सम्राज्यस्य है। वे जिस समय निर्गुण हैं, उस समय भी उनमें गुणमयी मायाशक्ति छिपी हुई वर्तमान है और जब वे सगुण कहलाती हैं, उस समय भी वे गुणमयी मायाशक्ति की अधीश्रवरी और सर्वतंत्र-स्वतंत्र होने से वस्तुतः निर्गुण ही हैं। उनमें निर्गुण और सगुण दोनों लक्षण सभी समय वर्तमान हैं। जो जिस भाव से उन्हें देखता है, उसे उनका वैसा ही रूप भाग होता है…

-गतांक से आगे…

जब मायाशक्ति क्रियाशील रहती है, तब उसका अधिष्ठान महाशक्ति सगुण कहलाती है। जब वह महाशक्ति में मिली रहती है, तब महाशक्ति निर्गुण है। इन अनिर्वचनीया परमात्मारूपा महाशक्ति में परस्पर विरोधी गुणों का नित्य सम्राज्यस्य है। वे जिस समय निर्गुण हैं, उस समय भी उनमें गुणमयी मायाशक्ति छिपी हुई वर्तमान है और जब वे सगुण कहलाती हैं, उस समय भी वे गुणमयी मायाशक्ति की अधीश्रवरी और सर्वतंत्र-स्वतंत्र होने से वस्तुतः निर्गुण ही हैं। उनमें निर्गुण और सगुण दोनों लक्षण सभी समय वर्तमान हैं। जो जिस भाव से उन्हें देखता है, उसे उनका वैसा ही रूप भाग होता है। वास्तव में कैसी हैं, क्या हैं, इस बात को वे ही जानती हैं। दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, श्रद्धा, तृप्तिभक्ति, धृति, मति, तृष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्ति की शक्तियां हैं। ये ही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में श्री सीता, क्षीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गतिनाशिनी मेनकापुत्री दुर्गा हैं। ये ही वाणी, विद्या, सरस्वती, सावित्री और गायत्री हैं। ये महाशक्ति ही सर्वकारणरूपा प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सर्जन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं। परा और अपरा दोनों प्रकृतियां इन्हीं की हैं अथवा ये ही दो प्रकृतियों के रूप में प्रकाशित होती हैं। इनमें द्वैत, अद्वैत दोनों का समावेश है। ये ही वैष्णवों की श्रीनारायण और महालक्ष्मी, श्रीराम और सीता, श्रीकृष्ण और राधा, शैवों की श्रीशंकर और उमा, गाणपत्यों की श्री गणेश और ऋद्धि-सिद्धि, सौरों की श्रीसूर्य और उषा, ब्रह्मावियों की शुद्धब्रह्म और ब्रह्मविद्या तथा शास्त्रों की महादेवी हैं। ये ही पंचमहाशक्ति हैं। ये ही अन्नपूर्णा जगद्धात्री, काव्यामनी ललितांबा हैं। ये ही शक्तिमान और शक्ति हैं, ये ही नर और नारी हैं। ये ही माता, धाता पितामह हैं। सब कुछ ये ही हैं। यद्यपि श्री भगवती नित्य ही हैं और उन्हीं से चराचर-प्रपंच व्याप्त हैं। तथापि देवताओं के कार्य के लिए वे समय-समय पर अनेक रूपों में जब प्रकट होती हैं, तब वे नित्य होने पर भी देवी उत्पन्न हुई-प्रकट हो गईं, इस प्रकार से कही जाती हैं ः

नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्त्या सर्वमिदं ततम्।

तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम।।

देवानां कार्यसिद्धयर्थमाविर्भवति सा यदा।

उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते।  


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