विपत्तियों का घेरा

By: Jun 29th, 2019 12:02 am

स्वामी विवेकानंद

 गतांक से आगे…

सुख संपत्ति के समय जो लोग परम मित्र थे, संसार के चिरकाल के नियमानुसार दुःखी और विपत्ति के समय वो सब किनारा कर काट गए।

तीक्ष्ण बुद्धि नरेंद्र सब कुछ समझ गए, पर उन्होंने सुध-बुध कायम रखी, धैर्य के साथ वो निर्धनता की पीड़ा को सहन करने लगे। मित्रों को पारिवारिक दुःखद स्थिति की बात उन्होंने न जानने दी और कानून की परीक्षा की तैयारी करने लगे, साथ ही काम धंधे की भी तलाश करने लगे।

इस तरह तीन-चार महीने बीत गए, लेकिन फिर भी किसी तरह का सुभीता न हो सका। घर में कभी-कभी अन्न का एक दाना भी न होता, पूरा घर भूखा ही रहता था। जब नरेंद्र को यह भनक पड़ जाती कि घर में कोई खाद्य पदार्थ की कमी है, तो वह चुपचाप अपनी माता से जाकर कह देते कि आज मेरा बाहर निमंत्रण है और घर में भोजन न करते थे। वो एक प्रकार से उपवास करते या बहुत थोड़ा खाकर दिन बिताने लगे।

इस तरह लगातार उपवास से उनका शरीर दुर्बल व कृश हो गया था। यहां तक कि किसी-किसी दिन प्रबल क्षुधा की ज्वाला से वो बेहोश जैसे पड़े रहते थे। कुछ खास दोस्त इस मुसीबत की घड़ी में उनकी सहायता करने की कोशिश भी करते, तो नरेंद्र विनीत भाव से उन्हें इनकार करके टाल देते थे।

पेट की आग को शांत करने के लिए वो भिक्षा स्वीकार कर लेंगे, यह सोचना  तक उनके लिए असह्य था। मित्रगण नरेंद्र के गंभीर आत्मसम्मान को जानते थे। इसलिए प्रत्यक्ष रूप से सहायता करने में असमर्थ होकर बीच-बीच में उन्हें भोजन का निमंत्रण देते रहते थे। कभी-कभी नरेंद्र किसी खास काम का बहाना बनाकर उनके निमंत्रण को ठुकरा भी देते थे और किसी दिन बनावटी खुशी जाहिर करके आनंद के साथ आमोद-प्रमोद में सम्मिलित होते थे। मगर जब कोई उनसे दावत की बात कहता तो उनका चेहरा एकदम गंभीर हो जाता।

उनके दुःखी मन में परिवार के कष्ट एक-एक करके आने लगते थे, मन में आता था प्राणों से प्यारे घर के लोगों के मलिन मुख मंडल की उपेक्षा करके वो खुद किस प्रकार स्वादिष्ट भोजन कर सकते थे। आहत आत्माभिमान को निश्चल धीरता के साथ संयत रखते हुए युवक नरेंद्र नंगे सिर दोपहर की धूप में इधर-उधर नौकरी की तलाश में कलकत्ता की सड़कों पर घूमते रहते थे और शाम को दिन भर की निष्फल कोशिश की थकान से चूर-चूर होकर घर लौट आते। इसी प्रकार कठिनाइयों से उनके दिन बीत रहे थे।

जब विपत्ति आती है तो अपने परिवार के साथ ही आती है और चारों ओर से आ घेरती है। नरेंद्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक तो गरीबी की मार और उस पर अनेक विपत्तियों ने उन्हें आ घेरा।                        


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