श्री गोरख महापुराण

By: Jun 29th, 2019 12:02 am

सर्व प्रथम भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें मनोकामना सिद्धि का वरदान दिया। उसके बाद बाकी देवताओं ने भी दर्शन देकर इच्छापूर्ति के वरदान दिए। मछेंद्रनाथ ने सात महीने तेरह दिन में सभी देवता प्रसन्न कर लिए। देवी भवानी के आदेशानुसार वह अंजनी पर्वत पर भी गए। वहां जाकर महाकाली के दर्शन किए और नागरबेल संग लेकर सरोवर देखने के लिए गए। वहां उन्होंने देवी के बताए सौ सरोवरों को देखा। उन सरोवरों में उन्होंने नागरबेल को डाल दिया…

अगर यह कार्य एक बार में सिद्ध न हुआ तो छह माह तक बराबर इसी तरह करने से सब देवता अवश्य प्रसन्न होकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करेंगे।’ देवी माता के बताए अनुसार योगी मछेंद्रनाथ ने सारा कार्य श्रद्धापूर्वक तन-मन लगाकर किया, जिससे सात दिनों के भीतर सभी देवता प्रसन्न हो गए। सर्व प्रथम भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें मनोकामना सिद्धि का वरदान दिया। उसके बाद बाकी देवताओं ने भी दर्शन देकर इच्छापूर्ति के वरदान दिए। मछेंद्रनाथ ने सात महीने तेरह दिन में सभी देवता प्रसन्न कर लिए। देवी भवानी के आदेशानुसार वह अंजनी पर्वत पर भी गए। वहां जाकर महाकाली के दर्शन किए और नागरबेल संग लेकर सरोवर देखने के लिए गए।

वहां उन्होंने देवी के बताए सौ सरोवरों को देखा। उन सरोवरों में उन्होंने नागरबेल को डाल दिया। घूमकर आने पर उन्होंने देखा कि आदित्य नामक सरोवर में डाली गई बेल में पत्ते निकल आए हैं। जब उसमें स्नान कर उन्होंने आचमन लिया तो वे मूर्छित हो गए। थोड़ा होश आने पर उन्होंने देवी के कहे अनुसार जाप किया। तभी सूर्य देव उनके निकट आ गए और दया दृष्टि से उन्हें निहार कर, शीश पर हाथ रखकर योगी को मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। सूर्यदेव से वरदान पाकर और कांच की बोतल में जल भरकर मछेंद्रनाथ पर्वत पर पहुंचे। वहां उन्होंने आशतत्त्व के वृक्ष को प्रणाम किया और सूर्यदेव का स्मरण कर जल छोड़ दिया। जल छोड़ने के साथ ही सूर्य देव प्रकट हो गए और पूछा-‘मुझे कैसे स्मरण किया?’ तब मछेंद्रनाथ ने हाथ जोड़ प्रणाम कर कहा-‘प्रभु मेरी इच्छा सांवरी मंत्र की कविता करने की है सो आप कृपा कर मेरी विद्या को सफल करें। इतना सुन सूर्यदेव प्रसन्न हो मछेंद्रनाथ की इच्छा पूर्ति करने के लिए दिलोजान से सहायक हुए। इस तरह सात महीने तेरह दिन में सभी देवता प्रसन्न कर लिए और सांवरी मंत्र की पुस्तक कविता में तैयार हो गई।’

योगी मछेंद्रनाथ तीर्थ यात्रा करते हुए बंगला प्रांत की धारा नगरी में आ पहुंचे। वहां सूर्य दयाल नामक पंडित रहता था। वह ईश्वर भक्त साधु-संतों का सेवक था। उसकी पत्नी का नाम सरस्वती था। वह अपने नाम के अनुसार सुंदर, सुशील, पतिव्रता नारी थी, परंतु संतानहीन थी। वह दोनों प्राणी अपनी सामर्थ्य अनुसार नित्यप्रति साधु-संतों की सेवा तन, मन,धन से कर हरि भजन में मग्न रहते थे। अब जब भगवद कृपा का दिन आया, तो एक दिन योगी मछेंद्रनाथ भिक्षा पात्र उठाए, चिमटा बजाते, अलख-अलख उच्चारण करते सरस्वती के दरवाजे तक आ पहुंचे। सरस्वती ने जब योगी के बोल सुने, तो भीतर से भिक्षा लाकर उनके पात्र में डाल दी और मछेंद्रनाथ का सूर्य के समान चमकता चेहरा निहारने लगी। पतिव्रता की इच्छा समझते योगी को देर न लगी कि यह नारी बहुत दुःखी है। वह पूछने लगे-‘माता जी! आप कौन से दुःख से दुःखी हो? क्या मुझे बतलाने की कृपा करोगी।’ यह सुनकर सरस्वती बोली-‘संतजी!’ वैसे तो सब प्रकार से प्रभु की कृपा है। दुःख सिर्फ संतान का है। अगर आपके आशीर्वाद से मुझे एक बेटा हो जाए तो मैं सुखी हो जाऊंगी।’ योगी ने इतना कहकर उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। मछेंद्रनाथ ने जब नारी का निराश मुख देखा नहीं गया, तब प्रसन्न मन से अपनी झोली में हाथ डालकर भस्म निकाली और सरस्वती से बोले, इस भस्मी को ऋतु स्नान करने के बाद खीर में मिलाकर खा लेना। तुम्हारे यहां भगवान हरिनारायण का अंशी अवतार होगा।

 

 


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