सर्टिफाइड डाक्टर ही करे टेस्ट रिपोर्ट पर हस्ताक्षर

By: Jun 11th, 2019 12:02 am

शिमला  —निजी लैब्स से मिल रही टेस्ट रिपोर्ट पर आए दिन सवाल खड़े हो रहे हैं। ये वे लैब हैं, जिनमें टेस्ट रिपोर्ट देने वाला डाक्टर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से सर्टिफाइड नहीं होता है। अब एमसीआई ने भी प्रदेश सरकार को लिखा है कि ऐसी लैब्स की जांच की जाए, जो नियम के तहत काम नहीं कर रही हैं। लिहाज़ा प्रदेश सरकार ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य में कार्य कर रही निजी लैब्स की मान्यता जांचने के निर्देश जारी कर दिए हैं। जानकारी के मुताबिक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी स्वास्थ्य विभाग से प्रदेश में चल रही निजी लैब्स का ब्यौरा मांगा था, जिसमें पूछा गया था कि प्रदेश में जो निजी लैब्स चल रही हैं, उनमें टेस्ट रिपोर्ट पर किए जा रहे हस्ताक्षर ट्रेंड डाक्टर के हैं या नहीं। सूचना है कि पिछले वर्ष एमसीआई को पूछी गई जानकारी की पूरी रिपोर्ट नहीं मिल पाई थी, जिसके चलते अब दोबारा से निजी लैब्स की चैकिंंग की जानी तय की जा रही है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया  के मुताबिक लैब में रिपोर्ट्स पर उस डाक्टर के साइन होने चाहिएं, जो मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से सर्टिफाइड हो। इस पर आगामी कार्रवाई करते हुए प्रदेश सरकार ने जांच के लिए कहा है, जिसमें सभी लैब क ी मान्यता चैक क ी जानी है। हिमाचल की स्थिति पर गौर करें तो प्रदेश में हर वर्ष 20 से 25 निजी लैब्स खुल रही हैं। हालांकि ये स्वास्थ्य विभाग की मंजूरी के बाद ही खुल रही हैं, लेकिन जो डाक्टर रिपेर्ट्स के लिए सर्टिफाइड होने चाहिएं, उनकी जांच प्रदेश भी करने में असमर्थ है। इसकी अब बारीकी से जांच होगी। देखा जा रहा है कि कई अस्पताल के आसपास लैब्स खुली हुई हैं। कई बार अस्पतालों से ये भी शिकायतें आती हैं कि सरकारी अस्पताल के कुछ डाक्टरों के साथ निजी लैब क ी मिलीभगत है, जिस कारण डाक्टर ही मरीजां़ें को बाहर टेस्ट करवाने के लिए भेजते हैं।

रिपोर्ट्स में ये दिक्कतें

डाक्टरों की मानें तो निजी लैब्स, जिसमें बायोकेमिस्ट्री, पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी इन्वेस्टिगेशंस सबसे ज्यादा होती है। यही टेस्ट अधितकतर मरीज निजी लैब में करवा रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो डाक्टर तब ही मरीज़ का इलाज आगे बढ़ा सकता है, जब उसकी टेस्ट रिपोर्ट समय पर आए और वह सही भी हो।

ये आ रही शिकायतें

कई निजी लैब से ये शिकायतें आ रही हैं कि तकनीशियन लोगों के टेस्ट तो कर रहे हैं, लेकिन जो रिपोर्टस जनता को सौंपी जा रही है, उसकी पुख्ता पुष्टि नहीं हो पा रही है। जब वे टेस्ट किसी सरकारी अस्पताल में किए जाते हैं, तो रिपोर्ट बिलकुल अलग आती है।


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